سوره الكهف: تفاوت میان نسخهها
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{{ سوره | نام =سوره الكهف | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::69|٦٩]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::18|١٨]] | آیه = [[تعداد آیات::110|١١٠]] | بعدی = سوره مريم | قبلی = سوره الإسراء | کلمه = [[تعداد کلمات::1754|١٧٥٤]] | حرف = }} | {{ سوره | نام =سوره الكهف | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::69|٦٩]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::18|١٨]] | آیه = [[تعداد آیات::110|١١٠]] | بعدی = سوره مريم | قبلی = سوره الإسراء | کلمه = [[تعداد کلمات::1754|١٧٥٤]] | حرف = }} | ||
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|''' لیست آیات ''' | |||
[[ الكهف ١ | ١ ]] [[ الكهف ٢ | ٢ ]] [[ الكهف ٣ | ٣ ]] [[ الكهف ٤ | ٤ ]] [[ الكهف ٥ | ٥ ]] [[ الكهف ٦ | ٦ ]] [[ الكهف ٧ | ٧ ]] [[ الكهف ٨ | ٨ ]] [[ الكهف ٩ | ٩ ]] [[ الكهف ١٠ | ١٠ ]] [[ الكهف ١١ | ١١ ]] [[ الكهف ١٢ | ١٢ ]] [[ الكهف ١٣ | ١٣ ]] [[ الكهف ١٤ | ١٤ ]] [[ الكهف ١٥ | ١٥ ]] [[ الكهف ١٦ | ١٦ ]] [[ الكهف ١٧ | ١٧ ]] [[ الكهف ١٨ | ١٨ ]] [[ الكهف ١٩ | ١٩ ]] [[ الكهف ٢٠ | ٢٠ ]] [[ الكهف ٢١ | ٢١ ]] [[ الكهف ٢٢ | ٢٢ ]] [[ الكهف ٢٣ | ٢٣ ]] [[ الكهف ٢٤ | ٢٤ ]] [[ الكهف ٢٥ | ٢٥ ]] [[ الكهف ٢٦ | ٢٦ ]] [[ الكهف ٢٧ | ٢٧ ]] [[ الكهف ٢٨ | ٢٨ ]] [[ الكهف ٢٩ | ٢٩ ]] [[ الكهف ٣٠ | ٣٠ ]] [[ الكهف ٣١ | ٣١ ]] [[ الكهف ٣٢ | ٣٢ ]] [[ الكهف ٣٣ | ٣٣ ]] [[ الكهف ٣٤ | ٣٤ ]] [[ الكهف ٣٥ | ٣٥ ]] [[ الكهف ٣٦ | ٣٦ ]] [[ الكهف ٣٧ | ٣٧ ]] [[ الكهف ٣٨ | ٣٨ ]] [[ الكهف ٣٩ | ٣٩ ]] [[ الكهف ٤٠ | ٤٠ ]] [[ الكهف ٤١ | ٤١ ]] [[ الكهف ٤٢ | ٤٢ ]] [[ الكهف ٤٣ | ٤٣ ]] [[ الكهف ٤٤ | ٤٤ ]] [[ الكهف ٤٥ | ٤٥ ]] [[ الكهف ٤٦ | ٤٦ ]] [[ الكهف ٤٧ | ٤٧ ]] [[ الكهف ٤٨ | ٤٨ ]] [[ الكهف ٤٩ | ٤٩ ]] [[ الكهف ٥٠ | ٥٠ ]] [[ الكهف ٥١ | ٥١ ]] [[ الكهف ٥٢ | ٥٢ ]] [[ الكهف ٥٣ | ٥٣ ]] [[ الكهف ٥٤ | ٥٤ ]] [[ الكهف ٥٥ | ٥٥ ]] [[ الكهف ٥٦ | ٥٦ ]] [[ الكهف ٥٧ | ٥٧ ]] [[ الكهف ٥٨ | ٥٨ ]] [[ الكهف ٥٩ | ٥٩ ]] [[ الكهف ٦٠ | ٦٠ ]] [[ الكهف ٦١ | ٦١ ]] [[ الكهف ٦٢ | ٦٢ ]] [[ الكهف ٦٣ | ٦٣ ]] [[ الكهف ٦٤ | ٦٤ ]] [[ الكهف ٦٥ | ٦٥ ]] [[ الكهف ٦٦ | ٦٦ ]] [[ الكهف ٦٧ | ٦٧ ]] [[ الكهف ٦٨ | ٦٨ ]] [[ الكهف ٦٩ | ٦٩ ]] [[ الكهف ٧٠ | ٧٠ ]] [[ الكهف ٧١ | ٧١ ]] [[ الكهف ٧٢ | ٧٢ ]] [[ الكهف ٧٣ | ٧٣ ]] [[ الكهف ٧٤ | ٧٤ ]] [[ الكهف ٧٥ | ٧٥ ]] [[ الكهف ٧٦ | ٧٦ ]] [[ الكهف ٧٧ | ٧٧ ]] [[ الكهف ٧٨ | ٧٨ ]] [[ الكهف ٧٩ | ٧٩ ]] [[ الكهف ٨٠ | ٨٠ ]] [[ الكهف ٨١ | ٨١ ]] [[ الكهف ٨٢ | ٨٢ ]] [[ الكهف ٨٣ | ٨٣ ]] [[ الكهف ٨٤ | ٨٤ ]] [[ الكهف ٨٥ | ٨٥ ]] [[ الكهف ٨٦ | ٨٦ ]] [[ الكهف ٨٧ | ٨٧ ]] [[ الكهف ٨٨ | ٨٨ ]] [[ الكهف ٨٩ | ٨٩ ]] [[ الكهف ٩٠ | ٩٠ ]] [[ الكهف ٩١ | ٩١ ]] [[ الكهف ٩٢ | ٩٢ ]] [[ الكهف ٩٣ | ٩٣ ]] [[ الكهف ٩٤ | ٩٤ ]] [[ الكهف ٩٥ | ٩٥ ]] [[ الكهف ٩٦ | ٩٦ ]] [[ الكهف ٩٧ | ٩٧ ]] [[ الكهف ٩٨ | ٩٨ ]] [[ الكهف ٩٩ | ٩٩ ]] [[ الكهف ١٠٠ | ١٠٠ ]] [[ الكهف ١٠١ | ١٠١ ]] [[ الكهف ١٠٢ | ١٠٢ ]] [[ الكهف ١٠٣ | ١٠٣ ]] [[ الكهف ١٠٤ | ١٠٤ ]] [[ الكهف ١٠٥ | ١٠٥ ]] [[ الكهف ١٠٦ | ١٠٦ ]] [[ الكهف ١٠٧ | ١٠٧ ]] [[ الكهف ١٠٨ | ١٠٨ ]] [[ الكهف ١٠٩ | ١٠٩ ]] [[ الكهف ١١٠ | ١١٠ ]] | [[ الكهف ١ | ١ ]] [[ الكهف ٢ | ٢ ]] [[ الكهف ٣ | ٣ ]] [[ الكهف ٤ | ٤ ]] [[ الكهف ٥ | ٥ ]] [[ الكهف ٦ | ٦ ]] [[ الكهف ٧ | ٧ ]] [[ الكهف ٨ | ٨ ]] [[ الكهف ٩ | ٩ ]] [[ الكهف ١٠ | ١٠ ]] [[ الكهف ١١ | ١١ ]] [[ الكهف ١٢ | ١٢ ]] [[ الكهف ١٣ | ١٣ ]] [[ الكهف ١٤ | ١٤ ]] [[ الكهف ١٥ | ١٥ ]] [[ الكهف ١٦ | ١٦ ]] [[ الكهف ١٧ | ١٧ ]] [[ الكهف ١٨ | ١٨ ]] [[ الكهف ١٩ | ١٩ ]] [[ الكهف ٢٠ | ٢٠ ]] [[ الكهف ٢١ | ٢١ ]] [[ الكهف ٢٢ | ٢٢ ]] [[ الكهف ٢٣ | ٢٣ ]] [[ الكهف ٢٤ | ٢٤ ]] [[ الكهف ٢٥ | ٢٥ ]] [[ الكهف ٢٦ | ٢٦ ]] [[ الكهف ٢٧ | ٢٧ ]] [[ الكهف ٢٨ | ٢٨ ]] [[ الكهف ٢٩ | ٢٩ ]] [[ الكهف ٣٠ | ٣٠ ]] [[ الكهف ٣١ | ٣١ ]] [[ الكهف ٣٢ | ٣٢ ]] [[ الكهف ٣٣ | ٣٣ ]] [[ الكهف ٣٤ | ٣٤ ]] [[ الكهف ٣٥ | ٣٥ ]] [[ الكهف ٣٦ | ٣٦ ]] [[ الكهف ٣٧ | ٣٧ ]] [[ الكهف ٣٨ | ٣٨ ]] [[ الكهف ٣٩ | ٣٩ ]] [[ الكهف ٤٠ | ٤٠ ]] [[ الكهف ٤١ | ٤١ ]] [[ الكهف ٤٢ | ٤٢ ]] [[ الكهف ٤٣ | ٤٣ ]] [[ الكهف ٤٤ | ٤٤ ]] [[ الكهف ٤٥ | ٤٥ ]] [[ الكهف ٤٦ | ٤٦ ]] [[ الكهف ٤٧ | ٤٧ ]] [[ الكهف ٤٨ | ٤٨ ]] [[ الكهف ٤٩ | ٤٩ ]] [[ الكهف ٥٠ | ٥٠ ]] [[ الكهف ٥١ | ٥١ ]] [[ الكهف ٥٢ | ٥٢ ]] [[ الكهف ٥٣ | ٥٣ ]] [[ الكهف ٥٤ | ٥٤ ]] [[ الكهف ٥٥ | ٥٥ ]] [[ الكهف ٥٦ | ٥٦ ]] [[ الكهف ٥٧ | ٥٧ ]] [[ الكهف ٥٨ | ٥٨ ]] [[ الكهف ٥٩ | ٥٩ ]] [[ الكهف ٦٠ | ٦٠ ]] [[ الكهف ٦١ | ٦١ ]] [[ الكهف ٦٢ | ٦٢ ]] [[ الكهف ٦٣ | ٦٣ ]] [[ الكهف ٦٤ | ٦٤ ]] [[ الكهف ٦٥ | ٦٥ ]] [[ الكهف ٦٦ | ٦٦ ]] [[ الكهف ٦٧ | ٦٧ ]] [[ الكهف ٦٨ | ٦٨ ]] [[ الكهف ٦٩ | ٦٩ ]] [[ الكهف ٧٠ | ٧٠ ]] [[ الكهف ٧١ | ٧١ ]] [[ الكهف ٧٢ | ٧٢ ]] [[ الكهف ٧٣ | ٧٣ ]] [[ الكهف ٧٤ | ٧٤ ]] [[ الكهف ٧٥ | ٧٥ ]] [[ الكهف ٧٦ | ٧٦ ]] [[ الكهف ٧٧ | ٧٧ ]] [[ الكهف ٧٨ | ٧٨ ]] [[ الكهف ٧٩ | ٧٩ ]] [[ الكهف ٨٠ | ٨٠ ]] [[ الكهف ٨١ | ٨١ ]] [[ الكهف ٨٢ | ٨٢ ]] [[ الكهف ٨٣ | ٨٣ ]] [[ الكهف ٨٤ | ٨٤ ]] [[ الكهف ٨٥ | ٨٥ ]] [[ الكهف ٨٦ | ٨٦ ]] [[ الكهف ٨٧ | ٨٧ ]] [[ الكهف ٨٨ | ٨٨ ]] [[ الكهف ٨٩ | ٨٩ ]] [[ الكهف ٩٠ | ٩٠ ]] [[ الكهف ٩١ | ٩١ ]] [[ الكهف ٩٢ | ٩٢ ]] [[ الكهف ٩٣ | ٩٣ ]] [[ الكهف ٩٤ | ٩٤ ]] [[ الكهف ٩٥ | ٩٥ ]] [[ الكهف ٩٦ | ٩٦ ]] [[ الكهف ٩٧ | ٩٧ ]] [[ الكهف ٩٨ | ٩٨ ]] [[ الكهف ٩٩ | ٩٩ ]] [[ الكهف ١٠٠ | ١٠٠ ]] [[ الكهف ١٠١ | ١٠١ ]] [[ الكهف ١٠٢ | ١٠٢ ]] [[ الكهف ١٠٣ | ١٠٣ ]] [[ الكهف ١٠٤ | ١٠٤ ]] [[ الكهف ١٠٥ | ١٠٥ ]] [[ الكهف ١٠٦ | ١٠٦ ]] [[ الكهف ١٠٧ | ١٠٧ ]] [[ الكهف ١٠٨ | ١٠٨ ]] [[ الكهف ١٠٩ | ١٠٩ ]] [[ الكهف ١١٠ | ١١٠ ]] | ||
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==متن سوره== | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ الحَمدُ لِلَّهِ الَّذى أَنزَلَ عَلىٰ عَبدِهِ الكِتٰبَ وَ لَم يَجعَل لَهُ عِوَجا (١) ]] }} | |||
هر ستایش(شایسته) خدا را سزاست که (این) کتاب [:قرآن] را بر بنده (ی ویژه)اش فرو فرستاد و برایش (هیچ گونه) کژی ننهاد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢ | قَيِّمًا لِيُنذِرَ بَأسًا شَديدًا مِن لَدُنهُ وَ يُبَشِّرَ المُؤمِنينَ الَّذينَ يَعمَلونَ الصّٰلِحٰتِ أَنَّ لَهُم أَجرًا حَسَنًا (٢) ]] }} | |||
حال آنکه (این کتاب) پربها، محکم و استوار است، تا (خدا به وسیلهی قرآن) برخوردی شدید را از جانب خود (به کفار) هشدار دهد، و مؤمنان را که کارهای شایسته (ی ایمان) میکنند بسینویدبخشد،که براستی برایشان پاداشی نیکوست. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣ | مٰكِثينَ فيهِ أَبَدًا (٣) ]] }} | |||
حال آنکه در آن (پاداش نیکو) همیشه ماندگارند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤ | وَ يُنذِرَ الَّذينَ قالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا (٤) ]] }} | |||
و (همچنین) کسانی را که گفتند: «خدا فرزندی (برای خود) برگرفته» هشدار دهد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥ | ما لَهُم بِهِ مِن عِلمٍ وَ لا لِإبائِهِم كَبُرَت كَلِمَةً تَخرُجُ مِن أَفوٰهِهِم إِن يَقولونَ إِلّا كَذِبًا (٥) ]] }} | |||
نه برای آنان و نه برای پدرانشان بر این (ادعا) هیچ گونه دانشی (و بینشی) نیست. سخنی بس گران (و گزاف) است که از دهانشان(و نه از فطرتها و عقلانیتشان) برون میآید (و آنان) جز دروغ نمیگویند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦ | فَلَعَلَّكَ بٰخِعٌ نَفسَكَ عَلىٰ إثٰرِهِم إِن لَم يُؤمِنوا بِهٰذَا الحَديثِ أَسَفًا (٦) ]] }} | |||
پس شاید اگر به این سخن ایمان نیاورند، در حال تأسف بر پیامد کارشان خود را هلاک میکنی. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧ | إِنّا جَعَلنا ما عَلَى الأَرضِ زينَةً لَها لِنَبلُوَهُم أَيُّهُم أَحسَنُ عَمَلًا (٧) ]] }} | |||
در حقیقت، ما آنچه را که روی زمین است، زیوری برای آن قرار دادیم، تا آنان را بیازماییم، (که) کدام یک از ایشان نیکوکارترند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨ | وَ إِنّا لَجٰعِلونَ ما عَلَيها صَعيدًا جُرُزًا (٨) ]] }} | |||
و ما همانا آنچه را که برزمین (استوار) است بیگمان تپهای بیگیاه خواهیم کرد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩ | أَم حَسِبتَ أَنَّ أَصحٰبَ الكَهفِ وَ الرَّقيمِ كانوا مِن إيٰتِنا عَجَبًا (٩) ]] }} | |||
یا پنداشتی اصحاب کهف و رقیم [:خفتگان غار لوحهدار] از آیات شگفتانگیز ما بودهاند؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠ | إِذ أَوَى الفِتيَةُ إِلَى الكَهفِ فَقالوا رَبَّنا إتِنا مِن لَدُنكَ رَحمَةً وَ هَيِّئ لَنا مِن أَمرِنا رَشَدًا (١٠) ]] }} | |||
چون آن جوانمردان سوی آن غار پناه جستند، پس گفتند: «پروردگارمان! از جانب خود به ما رحمتی (بزرگ) بده، و از کارمان برایمان سامانی برسان.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١١ | فَضَرَبنا عَلىٰ إذانِهِم فِى الكَهفِ سِنينَ عَدَدًا (١١) ]] }} | |||
پس (در آن غار) سالیانی چند بر گوشهایشان پرده(ی خواب) زدیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٢ | ثُمَّ بَعَثنٰهُم لِنَعلَمَ أَىُّ الحِزبَينِ أَحصىٰ لِما لَبِثوا أَمَدًا (١٢) ]] }} | |||
سپس آنان را (از این خواب مرگبار) برانگیختیم، تا نشانه نهیم (که) کدام یک از آن دو دسته، زمان درنگشان را بهتر حساب کردهاند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٣ | نَحنُ نَقُصُّ عَلَيكَ نَبَأَهُم بِالحَقِّ إِنَّهُم فِتيَةٌ إمَنوا بِرَبِّهِم وَ زِدنٰهُم هُدًى (١٣) ]] }} | |||
ما خبر مهمشان را به (کمال) حقیقت بر تو حکایت میکنیم؛ آنان رادمردانی هستند که به پروردگارشان ایمان آوردند و ما بر هدایتشان افزودیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٤ | وَ رَبَطنا عَلىٰ قُلوبِهِم إِذ قاموا فَقالوا رَبُّنا رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ لَن نَدعُوَا۟ مِن دونِهِ إِلٰهًا لَقَد قُلنا إِذًا شَطَطًا (١٤) ]] }} | |||
و بر دلهایشان پیوند نهادیم (و استوارشان کردیم). چون (به قصد مخالفت با شرک) به پا خاستند، پس گفتند: «پروردگارمان، پروردگار آسمانها و زمین است. جز او هرگز معبودی را نخواهیم خواند که در این صورت قطعاً ناصواب و پراکنده گفتهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٥ | هٰؤُلاءِ قَومُنَا اتَّخَذوا مِن دونِهِ إلِهَةً لَولا يَأتونَ عَلَيهِم بِسُلطٰنٍ بَيِّنٍ فَمَن أَظلَمُ مِمَّنِ افتَرىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا (١٥) ]] }} | |||
اینان ]: مشرکان[گروه مایند (که) جز او معبودانی اختیار کردند. چرا بر (حقانیت) آنها برهانی آشکار نمیآورند؟ پس کیست ستمکارتر از آن کس که بر خدا دروغ بسته است؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٦ | وَ إِذِ اعتَزَلتُموهُم وَ ما يَعبُدونَ إِلَّا اللَّهَ فَأوۥا إِلَى الكَهفِ يَنشُر لَكُم رَبُّكُم مِن رَحمَتِهِ وَ يُهَيِّئ لَكُم مِن أَمرِكُم مِرفَقًا (١٦) ]] }} | |||
«و چون از آنها و از آنچه که جز خدا میپرستند کناره گرفتید، پس سوی غار پناه گیرید تا پروردگارتان از رحمت (ویژهی) خود بر (سرو سامان)تان بگستراند و برایتان از کارتان (گشایش و) تکیهگاهی فراهم سازد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٧ | وَ تَرَى الشَّمسَ إِذا طَلَعَت تَزٰوَرُ عَن كَهفِهِم ذاتَ اليَمينِ وَ إِذا غَرَبَت تَقرِضُهُم ذاتَ الشِّمالِ وَ هُم فى فَجوَةٍ مِنهُ ذٰلِكَ مِن إيٰتِ اللَّهِ مَن يَهدِ اللَّهُ فَهُوَ المُهتَدِ وَ مَن يُضلِل فَلَن تَجِدَ لَهُ وَلِيًّا مُرشِدًا (١٧) ]] }} | |||
و آفتاب را میبینی که چون بر میآید، از غارشان به سمت راست متمایل است. و چون فرو میشود از سمت چپشان (دامن) بر میچیند، حال آنکه آنان در جایی فراخ از آن غار قرار گرفتهاند. این از نشانههای (قدرت و حکمت و رحمت) خداست. خدا هر که را راهنمایی کند (هم) او راه یافته است. و هر که را بیراه واگذارد، هرگز برای او سرپرستی راهبر نخواهی یافت. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٨ | وَ تَحسَبُهُم أَيقاظًا وَ هُم رُقودٌ وَ نُقَلِّبُهُم ذاتَ اليَمينِ وَ ذاتَ الشِّمالِ وَ كَلبُهُم بٰسِطٌ ذِراعَيهِ بِالوَصيدِ لَوِ اطَّلَعتَ عَلَيهِم لَوَلَّيتَ مِنهُم فِرارًا وَ لَمُلِئتَ مِنهُم رُعبًا (١٨) ]] }} | |||
و (تو) پنداری ایشان بیدارند، حال آنکه خفتهاند. و آنان را به پهلوی راست و چپ میگردانیم، حال آنکه سگشان سر بر آستانه(ی غار) دو دست خود را باز کرده. اگر بر (حال) آنان آگاه شوی، بیگمان گریزان روی از آنان بر میتاختی، و بهراستی از (مشاهدهی) آنان آکنده از بیم میشوی. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٩ | وَ كَذٰلِكَ بَعَثنٰهُم لِيَتَساءَلوا بَينَهُم قالَ قائِلٌ مِنهُم كَم لَبِثتُم قالوا لَبِثنا يَومًا أَو بَعضَ يَومٍ قالوا رَبُّكُم أَعلَمُ بِما لَبِثتُم فَابعَثوا أَحَدَكُم بِوَرِقِكُم هٰذِهِ إِلَى المَدينَةِ فَليَنظُر أَيُّها أَزكىٰ طَعامًا فَليَأتِكُم بِرِزقٍ مِنهُ وَ ليَتَلَطَّف وَ لا يُشعِرَنَّ بِكُم أَحَدًا (١٩) ]] }} | |||
و اینچنین آنها را (از این خواب مرگبار) برانگیختیم، تا در میان خود از یکدیگر پرسش کنند. گویندهای از آنان گفت: «چقدر ماندهاید؟»گفتند: «روزی یا پارهای از روز (را ماندهایم).» (گروهی دیگر از ایشان) گفتند: «پروردگارتان به آنچه ماندهاید داناتر است. پس یکی از خودتان را با (این) پولتان به شهر بفرستید. پس باید بنگرد کجای شهر طعامش پاکیزهتر است، تا غذایی برایتان بیاورد. و باید نرمی و زیرکی به خرج دهد و هرگز هیچ کس را بر (حال) شما آگاه نگرداند.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٠ | إِنَّهُم إِن يَظهَروا عَلَيكُم يَرجُموكُم أَو يُعيدوكُم فى مِلَّتِهِم وَ لَن تُفلِحوا إِذًا أَبَدًا (٢٠) ]] }} | |||
«بیگمان اگر آنان بر شما دست یابند، سنگسارتان میکنند، یا شما را به کیش خویش باز میگردانند، و در آن هنگام (و هنگامه) هرگز (خود و دیگران را) رستگار نتوانید کرد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢١ | وَ كَذٰلِكَ أَعثَرنا عَلَيهِم لِيَعلَموا أَنَّ وَعدَ اللَّهِ حَقٌّ وَ أَنَّ السّاعَةَ لا رَيبَ فيها إِذ يَتَنٰزَعونَ بَينَهُم أَمرَهُم فَقالُوا ابنوا عَلَيهِم بُنيٰنًا رَبُّهُم أَعلَمُ بِهِم قالَ الَّذينَ غَلَبوا عَلىٰ أَمرِهِم لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيهِم مَسجِدًا (٢١) ]] }} | |||
و بدینسان (مردمان آن دیار را) بر حالشان آگاه ساختیم، تا بدانند (که) همانا وعدهی خدا حق است و (اینکه) بهراستی در (فرا رسیدن) ساعت (قیامت) هیچ شک مستندی نیست. چون میان خود در کارشان با یکدیگر نزاع میکنند، پس (اینان) گفتند: «بر روی آنها ساختمانی بنا کنید، پروردگارشان به (حال) آنان داناتر است.» (سرانجام) کسانی که بر جریانشان آگاه شدند گفتند: «بهراستی حتماً فرارویشان مسجدی برخواهیم گرفت.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٢ | سَيَقولونَ ثَلٰثَةٌ رابِعُهُم كَلبُهُم وَ يَقولونَ خَمسَةٌ سادِسُهُم كَلبُهُم رَجمًا بِالغَيبِ وَ يَقولونَ سَبعَةٌ وَ ثامِنُهُم كَلبُهُم قُل رَبّى أَعلَمُ بِعِدَّتِهِم ما يَعلَمُهُم إِلّا قَليلٌ فَلا تُمارِ فيهِم إِلّا مِراءً ظٰهِرًا وَ لا تَستَفتِ فيهِم مِنهُم أَحَدًا (٢٢) ]] }} | |||
خواهند گفت: «سه تناند، چهارمینشان سگشان.» و میگویند: «پنج تناند، ششمینشان سگشان.» (این دو گفته) تیری در تاریکی انداختن است؛ و (عدهای هم) میگویند: «هفت تن بودند و هشتمینشان سگشان.» بگو: «پروردگارم به شمارشان آگاهتر است. جز اندکی (کسی شمار) آنان را نمیداند.» پس دربارهی ایشان جز به صورت ظاهر جدال مکن و در مورد آنان از هیچ کس فتوایی مجوی. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٣ | وَ لا تَقولَنَّ لِشَا۟يءٍ إِنّى فاعِلٌ ذٰلِكَ غَدًا (٢٣) ]] }} | |||
و زنهار در مورد چیزی مگوی که من آن را محققاً فردا انجام خواهم داد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٤ | إِلّا أَن يَشاءَ اللَّهُ وَ اذكُر رَبَّكَ إِذا نَسيتَ وَ قُل عَسىٰ أَن يَهدِيَنِ رَبّى لِأَقرَبَ مِن هٰذا رَشَدًا (٢٤) ]] }} | |||
مگر آنکه خدا بخواهد. و چون فراموش کردی، پروردگارت را یاد کن و بگو: «امید که پروردگارم مرا به راهی که نزدیکتر از این به صواب است، رهنمون گردد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٥ | وَ لَبِثوا فى كَهفِهِم ثَلٰثَ مِا۟ئَةٍ سِنينَ وَ ازدادوا تِسعًا (٢٥) ]] }} | |||
و سیصد سال در غارشان درنگ کردند. و نُه سال (نیز) بر آن افزون خواستند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٦ | قُلِ اللَّهُ أَعلَمُ بِما لَبِثوا لَهُ غَيبُ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ أَبصِر بِهِ وَ أَسمِع ما لَهُم مِن دونِهِ مِن وَلِىٍّ وَ لا يُشرِكُ فى حُكمِهِ أَحَدًا (٢٦) ]] }} | |||
بگو: «خدا به آنچه درنگ کردند داناتر است. (علم و قدرت بر) نهان آسمانها و زمین به او اختصاص دارد. وه! چه بینا و شنواست! برای آنان سروری جز او نیست و هیچ کس را در (هیچگونه) حکمش (در تکوین و تشریع) هرگز شریک نمیکند.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٧ | وَ اتلُ ما أوحِىَ إِلَيكَ مِن كِتابِ رَبِّكَ لا مُبَدِّلَ لِكَلِمٰتِهِ وَ لَن تَجِدَ مِن دونِهِ مُلتَحَدًا (٢٧) ]] }} | |||
و آنچه را که از کتاب پروردگارت سویت وحی شده است (برایشان) بخوان و پیروی کن. کلمات او [:خدا و قرآن] را هیچگاه تبدیلکنندهای نیست . جز او [:خدا و کتابش] هرگز پایگاه و پناهگاهی (وحیانی) نتوانی یافت. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٨ | وَ اصبِر نَفسَكَ مَعَ الَّذينَ يَدعونَ رَبَّهُم بِالغَدوٰةِ وَ العَشِىِّ يُريدونَ وَجهَهُ وَ لا تَعدُ عَيناكَ عَنهُم تُريدُ زينَةَ الحَيوٰةِ الدُّنيا وَ لا تُطِع مَن أَغفَلنا قَلبَهُ عَن ذِكرِنا وَ اتَّبَعَ هَوىٰهُ وَ كانَ أَمرُهُ فُرُطًا (٢٨) ]] }} | |||
و با کسانی که پروردگارشان را صبح و شام میخوانند (و همواره) خشنودی او را میخواهند، خود را شکیبا کن، و هرگز دو دیدهات از آنان (سوی دیگران) بر نگردد، حال آنکه زیور زندگی دنیا را بخواهی. و از آن کس که قلبش را از یاد خود غافل ساختهایم و از هوس خود پیروی کرده و (اساس) کارش بر زیادهروی بوده است، اطاعت مکن. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٢٩ | وَ قُلِ الحَقُّ مِن رَبِّكُم فَمَن شاءَ فَليُؤمِن وَ مَن شاءَ فَليَكفُر إِنّا أَعتَدنا لِلظّٰلِمينَ نارًا أَحاطَ بِهِم سُرادِقُها وَ إِن يَستَغيثوا يُغاثوا بِماءٍ كَالمُهلِ يَشوِى الوُجوهَ بِئسَ الشَّرابُ وَ ساءَت مُرتَفَقًا (٢٩) ]] }} | |||
و بگو: «(تمامی) حق از پروردگار شماست. پس هر کس (حق را) بخواهد باید (به پروردگارش) ایمان آورد و هر که (ناحق را) بخواهد (همو) کافر شود. بیگمان ما برای ستمگران آتشی آماده کردهایم که سراپردههایش آنان را در بر گرفته و اگر فریادرسی جویند به آبی، چون تهماندهی روغن زیتون جوشان - که چهرهها را بریان میکند - فریادرسی میشوند. چه بد آشامیدنی و چه زشت تکیهگاه و آرامشگاهی است.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٠ | إِنَّ الَّذينَ إمَنوا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ إِنّا لا نُضيعُ أَجرَ مَن أَحسَنَ عَمَلًا (٣٠) ]] }} | |||
بیگمان کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته(ی ایمان) کردهاند، ما بهراستی پاداش کسی را که کاری را به نیکی انجام داده است تباه نمیکنیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣١ | أُولٰئِكَ لَهُم جَنّٰتُ عَدنٍ تَجرى مِن تَحتِهِمُ الأَنهٰرُ يُحَلَّونَ فيها مِن أَساوِرَ مِن ذَهَبٍ وَ يَلبَسونَ ثِيابًا خُضرًا مِن سُندُسٍ وَ إِستَبرَقٍ مُتَّكِـٔينَ فيها عَلَى الأَرائِكِ نِعمَ الثَّوابُ وَ حَسُنَت مُرتَفَقًا (٣١) ]] }} | |||
آنانند که باغهای ماندگار ویژهی ایشان است، (که) از زیر (درختان)شان نهرها روان است. در آنجا با دستبندهایی از طلا بسی آراسته میشوند و جامههایی سبز از حریر نازک و حریر ستبر میپوشند و در آن بر تختها تکیه میزنند. چه خوش پاداش و نیکوتکیهگاهی است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٢ | وَ اضرِب لَهُم مَثَلًا رَجُلَينِ جَعَلنا لِأَحَدِهِما جَنَّتَينِ مِن أَعنٰبٍ وَ حَفَفنٰهُما بِنَخلٍ وَ جَعَلنا بَينَهُما زَرعًا (٣٢) ]] }} | |||
و برای آنان، دو مرد را مَثَل بزن، که به یکی از آنها دو باغ انگور دادیم و پیرامون آن دو (باغ) را با درختان خرما پوشاندیم، و میان آن دو کشتزاری قرار دادیم؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٣ | كِلتَا الجَنَّتَينِ إتَت أُكُلَها وَ لَم تَظلِم مِنهُ شَيـًٔا وَ فَجَّرنا خِلٰلَهُما نَهَرًا (٣٣) ]] }} | |||
هر دو باغ خوراکی خود را (به شایستگی) آوردند و از آن چیزی را نکاستند. و میان آن دو باغ نهری شکافتیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٤ | وَ كانَ لَهُ ثَمَرٌ فَقالَ لِصٰحِبِهِ وَ هُوَ يُحاوِرُهُ أَنا۠ أَكثَرُ مِنكَ مالًا وَ أَعَزُّ نَفَرًا (٣٤) ]] }} | |||
و برای آن ثمری فراوان بود. پس به همراهش - در حالی که با او گفتوگو میکرد - گفت: «مال من از مال تو بیشتر است و از حیث افراد توانمند (هم) از تو نیرومندترم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٥ | وَ دَخَلَ جَنَّتَهُ وَ هُوَ ظالِمٌ لِنَفسِهِ قالَ ما أَظُنُّ أَن تَبيدَ هٰذِهِ أَبَدًا (٣٥) ]] }} | |||
و داخل باغش شد در حالی که بر خویشتن ستمکار بود، (و) گفت: «گمان نمیبرم این (باغ) هرگز زوال پذیرد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٦ | وَ ما أَظُنُّ السّاعَةَ قائِمَةً وَ لَئِن رُدِدتُ إِلىٰ رَبّى لَأَجِدَنَّ خَيرًا مِنها مُنقَلَبًا (٣٦) ]] }} | |||
«و گمان (هم) نمیکنم که ساعت (قیامت) بر پا باشد و اگر (هم) سوی پروردگارم بازگردانده شوم، همانا بیچون جایگاهی نوین (و) بهتر (از این) خواهم یافت.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٧ | قالَ لَهُ صاحِبُهُ وَ هُوَ يُحاوِرُهُ أَكَفَرتَ بِالَّذى خَلَقَكَ مِن تُرابٍ ثُمَّ مِن نُطفَةٍ ثُمَّ سَوّىٰكَ رَجُلًا (٣٧) ]] }} | |||
همراهش - در حالیکه با او گفتوگو میکرد - به او گفت: «آیا به آن کس که تو را از خاک (و) سپس از نطفه آفرید (و) آنگاه تو را مردی بساخت، کافر شدی؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٨ | لٰكِنّا۠ هُوَ اللَّهُ رَبّى وَ لا أُشرِكُ بِرَبّى أَحَدًا (٣٨) ]] }} | |||
لیکن ما (میگوییم) : «اوست خدا، پروردگار من و هیچ کس را با پروردگارم شریک نمیسازم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٣٩ | وَ لَولا إِذ دَخَلتَ جَنَّتَكَ قُلتَ ما شاءَ اللَّهُ لا قُوَّةَ إِلّا بِاللَّهِ إِن تَرَنِ أَنا۠ أَقَلَّ مِنكَ مالًا وَ وَلَدًا (٣٩) ]] }} | |||
و چون داخل باغت شدی، چرا نگفتی: «(تنها) آنچه خدا خواسته (شدنی است). هرگز نیرویی جز به (وسیلهی) خدا نیست. اگر مرا از حیث مال و فرزند کمتر از خود میبینی،» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٠ | فَعَسىٰ رَبّى أَن يُؤتِيَنِ خَيرًا مِن جَنَّتِكَ وَ يُرسِلَ عَلَيها حُسبانًا مِنَ السَّماءِ فَتُصبِحَ صَعيدًا زَلَقًا (٤٠) ]] }} | |||
«پس امید است که پروردگارم بهتر از باغ تو به من بدهد و بر باغ تو آفتی از آسمان فرو فرستد، تا به تپهای بیگیاه تبدیل گردد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤١ | أَو يُصبِحَ ماؤُها غَورًا فَلَن تَستَطيعَ لَهُ طَلَبًا (٤١) ]] }} | |||
«یا آبش فروکش کند، پس هرگز نتوانی آن را بجویی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٢ | وَ أُحيطَ بِثَمَرِهِ فَأَصبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيهِ عَلىٰ ما أَنفَقَ فيها وَ هِىَ خاوِيَةٌ عَلىٰ عُروشِها وَ يَقولُ يٰلَيتَنى لَم أُشرِك بِرَبّى أَحَدًا (٤٢) ]] }} | |||
(تا به او رسید آنچه باید برسد) و ثمرهاش فرو گرفته شد، پس برای (از کف دادن) آنچه در آن باغ هزینه کرده بود، دستهایش را زیر و رو میکرد و برهم میزد -در حالی که داربستهای آن فرو ریخته بود- و (با حسرت) میگفت: «ای کاش هیچ کس را شریک پروردگارم نمیساختم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٣ | وَ لَم تَكُن لَهُ فِئَةٌ يَنصُرونَهُ مِن دونِ اللَّهِ وَ ما كانَ مُنتَصِرًا (٤٣) ]] }} | |||
و او را پس از خدا هیچ گروهی نبود تا یاریش کنند و توانی (هم) نداشت تا از کسی یاریگیرنده باشد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٤ | هُنالِكَ الوَلٰيَةُ لِلَّهِ الحَقِّ هُوَ خَيرٌ ثَوابًا وَ خَيرٌ عُقبًا (٤٤) ]] }} | |||
(سرانجام) در آنجا (همهی) ولایت(ها) در انحصار خدای تمام حق است. اوست بهترین پاداشدهنده و (اوست) بهترین فرجام (کار). | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٥ | وَ اضرِب لَهُم مَثَلَ الحَيوٰةِ الدُّنيا كَماءٍ أَنزَلنٰهُ مِنَ السَّماءِ فَاختَلَطَ بِهِ نَباتُ الأَرضِ فَأَصبَحَ هَشيمًا تَذروهُ الرِّيٰحُ وَ كانَ اللَّهُ عَلىٰ كُلِّ شَيءٍ مُقتَدِرًا (٤٥) ]] }} | |||
و برای آنان زندگی دنیا را مَثَل بزن: مانند آبی است که آن را از آسمان فرو فرستادیم؛ پس روییدنی زمین با آن درآمیخت. پس (از آن، چنان) خشک گردید که بادها پراکندهاش میکنند. و خدا همواره بر همه چیزی توانا بوده است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٦ | المالُ وَ البَنونَ زينَةُ الحَيوٰةِ الدُّنيا وَ البٰقِيٰتُ الصّٰلِحٰتُ خَيرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوابًا وَ خَيرٌ أَمَلًا (٤٦) ]] }} | |||
مال و فرزندان، زیور زندگی دنیایند و نیکیهای ماندگار از نظر پاداش نزد پروردگارت بهتر و از نظر آرزومندی (نیز) بهتر است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٧ | وَ يَومَ نُسَيِّرُ الجِبالَ وَ تَرَى الأَرضَ بارِزَةً وَ حَشَرنٰهُم فَلَم نُغادِر مِنهُم أَحَدًا (٤٧) ]] }} | |||
و روزی را یاد کن که کوهها را به شدت روان سازیم و زمین را آشکارا (و صاف) ببینی و آنان را گرد (هم) آوردیم، پس هیچ یک را فروگذار نکردیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٨ | وَ عُرِضوا عَلىٰ رَبِّكَ صَفًّا لَقَد جِئتُمونا كَما خَلَقنٰكُم أَوَّلَ مَرَّةٍ بَل زَعَمتُم أَلَّن نَجعَلَ لَكُم مَوعِدًا (٤٨) ]] }} | |||
و (در آن روز که) ایشان به صف بر پروردگارت عرضه شدند (به آنها میفرماید:) «بهراستی همان گونه که نخستین بار شما را آفریدیم سوی ما آمدید، بلکه پنداشتید هرگز برای شما وعدهگاهی مقرر نکردیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٤٩ | وَ وُضِعَ الكِتٰبُ فَتَرَى المُجرِمينَ مُشفِقينَ مِمّا فيهِ وَ يَقولونَ يٰوَيلَتَنا مالِ هٰذَا الكِتٰبِ لا يُغادِرُ صَغيرَةً وَ لا كَبيرَةً إِلّا أَحصىٰها وَ وَجَدوا ما عَمِلوا حاضِرًا وَ لا يَظلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا (٤٩) ]] }} | |||
و کتاب (اعمال) گزارده شد. آنگاه بزهکاران را از آنچه در آن است با بزرگداشتش بیمناک میبینی، و (همی) گویند: «ای وای بر ما! این نامه را چه برنامهای است که هیچ کوچک و بزرگی را فرو نمیگذارد جز اینکه همه را بر شمرده است!» و آنچه را انجام دادند حاضر یافتند و پروردگار تو به هیچ کس ستم روا نمیدارد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٠ | وَ إِذ قُلنا لِلمَلٰئِكَةِ اسجُدوا لِإدَمَ فَسَجَدوا إِلّا إِبليسَ كانَ مِنَ الجِنِّ فَفَسَقَ عَن أَمرِ رَبِّهِ أَفَتَتَّخِذونَهُ وَ ذُرِّيَّتَهُ أَولِياءَ مِن دونى وَ هُم لَكُم عَدُوٌّ بِئسَ لِلظّٰلِمينَ بَدَلًا (٥٠) ]] }} | |||
و چون به فرشتگان گفتیم: «برای (شکر دربارهی) آدم (برایخدا) سجده کنید.» پس (همه) سجده کردند، جز ابلیس (که) از (گروه) جنیان [:پنهانگران] بود. پس، از فرمان پروردگارش سرپیچید. آیا پس (از این) او و نسلش را به جای من اولیای خود بر میگیرید؟ حال آنکه آنان دشمنان شمایند. شیطان چه بد بدلی (از رحمان بیبدیل) برای ستمگران است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥١ | ما أَشهَدتُهُم خَلقَ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ وَ لا خَلقَ أَنفُسِهِم وَ ما كُنتُ مُتَّخِذَ المُضِلّينَ عَضُدًا (٥١) ]] }} | |||
من نه آفرینش آسمانها و زمین را بدیشان نشان دادم و نه آفرینش خودهاشان را. و من (آن) نبودهام که کمک گیرنده از گمراهکنندگان باشم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٢ | وَ يَومَ يَقولُ نادوا شُرَكاءِىَ الَّذينَ زَعَمتُم فَدَعَوهُم فَلَم يَستَجيبوا لَهُم وَ جَعَلنا بَينَهُم مَوبِقًا (٥٢) ]] }} | |||
و روزی را که (خدا) میگوید: «آنهایی راکه شریکان من پنداشتید، بخوانید». پس آنان را خواندند، و(لی) اجابتشان نکردند، و ما میانشان جایگاه تباهی قرار دادیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٣ | وَ رَءَا المُجرِمونَ النّارَ فَظَنّوا أَنَّهُم مُواقِعوها وَ لَم يَجِدوا عَنها مَصرِفًا (٥٣) ]] }} | |||
و مجرمان آتش (دوزخ) را دیدند. پس گمان بردند که برخوردکنندگان آنند، و از آن گریزگاهی نیافتند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٤ | وَ لَقَد صَرَّفنا فى هٰذَا القُرإنِ لِلنّاسِ مِن كُلِّ مَثَلٍ وَ كانَ الإِنسٰنُ أَكثَرَ شَيءٍ جَدَلًا (٥٤) ]] }} | |||
و بهراستی در این قرآن، برای مردمان بیگمان از هر (گونه) مَثَلی آوردیم، و (اما) انسان بیش از هر چیز (سر) جدال داشته است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٥ | وَ ما مَنَعَ النّاسَ أَن يُؤمِنوا إِذ جاءَهُمُ الهُدىٰ وَ يَستَغفِروا رَبَّهُم إِلّا أَن تَأتِيَهُم سُنَّةُ الأَوَّلينَ أَو يَأتِيَهُمُ العَذابُ قُبُلًا (٥٥) ]] }} | |||
و چیزی مانع مردم نشد از اینکه - چون هدایت سویشان آمد - ایمان بیاورند، و از پروردگارشان پوشش بخواهند، بجز اینکه سنت (خدا در مورد عذاب) پیشینیان، دربارهی آنان (نیز) به کار رود، یا عذاب رویارویشان بیاید. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٦ | وَ ما نُرسِلُ المُرسَلينَ إِلّا مُبَشِّرينَ وَ مُنذِرينَ وَ يُجٰدِلُ الَّذينَ كَفَروا بِالبٰطِلِ لِيُدحِضوا بِهِ الحَقَّ وَ اتَّخَذوا إيٰتى وَ ما أُنذِروا هُزُوًا (٥٦) ]] }} | |||
و (ما) پیامبران (خود) را جز بشارتدهندگان و بیمدهندگان گسیل نمیداریم. و کسانی که کافر شدند، به باطل مجادله میکنند، تا به (وسیلهی) آن، حق را پایمال نمایند. و نشانههای مرا و آنچه را (بدان) بیم داده شدهاند به ریشخند گرفتند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٧ | وَ مَن أَظلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـٔايٰتِ رَبِّهِ فَأَعرَضَ عَنها وَ نَسِىَ ما قَدَّمَت يَداهُ إِنّا جَعَلنا عَلىٰ قُلوبِهِم أَكِنَّةً أَن يَفقَهوهُ وَ فى إذانِهِم وَقرًا وَ إِن تَدعُهُم إِلَى الهُدىٰ فَلَن يَهتَدوا إِذًا أَبَدًا (٥٧) ]] }} | |||
و کیست ستمکارتر از آن کس که به آیات پروردگارش تذکر داده شده، پس از آن روی برتافته و دستاورد پیشینهی خود را که از پیش فرستاده فراموش کند؟ ما بر دلهایشان پوششهایی سخت قرار دادیم، تا آن را در نیابند و در گوشهایشان سنگینی (نهادیم). و اگر آنها را سوی هدایت فراخوانی هرگز راه نیابند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٨ | وَ رَبُّكَ الغَفورُ ذُو الرَّحمَةِ لَو يُؤاخِذُهُم بِما كَسَبوا لَعَجَّلَ لَهُمُ العَذابَ بَل لَهُم مَوعِدٌ لَن يَجِدوا مِن دونِهِ مَوئِلًا (٥٨) ]] }} | |||
و پروردگارت بسی پوشانندهی کانون رحمت است. اگر به (جرم) دستاوردهاشان، آنان را مؤاخذه کند، بیگمان در عذابشان تعجیل مینماید. (ولی چنین نمیکند) بلکه برای آنها سررسیدی است که هرگز پس از آن راه گریزی نمییابند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٥٩ | وَ تِلكَ القُرىٰ أَهلَكنٰهُم لَمّا ظَلَموا وَ جَعَلنا لِمَهلِكِهِم مَوعِدًا (٥٩) ]] }} | |||
و چون آن گروهها بیدادگری کردند، هلاکشان کردیم، و برای هلاکتشان موعدی مقرر داشتیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٠ | وَ إِذ قالَ موسىٰ لِفَتىٰهُ لا أَبرَحُ حَتّىٰ أَبلُغَ مَجمَعَ البَحرَينِ أَو أَمضِىَ حُقُبًا (٦٠) ]] }} | |||
و چون موسی به جوان [:دستیار] خود گفت: «از این جا دستبردار نیستم تا به محل برخورد دو دریا برسم یا زمانهایی سیر کنم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦١ | فَلَمّا بَلَغا مَجمَعَ بَينِهِما نَسِيا حوتَهُما فَاتَّخَذَ سَبيلَهُ فِى البَحرِ سَرَبًا (٦١) ]] }} | |||
پس چون به محل برخورد دو (دریا) رسیدند، ماهیشان را فراموش کردند. پس ماهی راه راهوارش را به سراشیبی دریا پیش گرفت . | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٢ | فَلَمّا جاوَزا قالَ لِفَتىٰهُ إتِنا غَداءَنا لَقَد لَقينا مِن سَفَرِنا هٰذا نَصَبًا (٦٢) ]] }} | |||
و هنگامی که (از آنجا) گذشتند (موسی) به جوان [:دستیار] خود گفت: «غذایمان را بیاور، بهراستی ما از این سفر به رنجی بسیار دچار شدیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٣ | قالَ أَرَءَيتَ إِذ أَوَينا إِلَى الصَّخرَةِ فَإِنّى نَسيتُ الحوتَ وَ ما أَنسىٰنيهُ إِلَّا الشَّيطٰنُ أَن أَذكُرَهُ وَ اتَّخَذَ سَبيلَهُ فِى البَحرِ عَجَبًا (٦٣) ]] }} | |||
گفت: «آیا دیدی؟ چون سوی آن صخره پناه جستیم، من بیگمان آن ماهی را فراموش کردم و جز شیطان (کسی) آن را از یادم نبرد، که به یادش باشم، و به گونهای شگفتانگیز خود راه راهوارش در دریا را پیش گرفت.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٤ | قالَ ذٰلِكَ ما كُنّا نَبغِ فَارتَدّا عَلىٰ إثارِهِما قَصَصًا (٦٤) ]] }} | |||
گفت: «این (جریان) همان بود که ما آن را میجستهایم.» پس جستجوکنان برگشته(و) دنبال ردّ پاهایشان را گرفتند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٥ | فَوَجَدا عَبدًا مِن عِبادِنا إتَينٰهُ رَحمَةً مِن عِندِنا وَ عَلَّمنٰهُ مِن لَدُنّا عِلمًا (٦٥) ]] }} | |||
پس بندهای از بندگان ما را یافتند که رحمتی (ویژه) از خود به او دادیم، و از نزد خود بدو دانشی (ویژه) آموختیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٦ | قالَ لَهُ موسىٰ هَل أَتَّبِعُكَ عَلىٰ أَن تُعَلِّمَنِ مِمّا عُلِّمتَ رُشدًا (٦٦) ]] }} | |||
موسی بدو گفت: «آیا تو را بر این مبنا که از دانشی (شایسته) که آموخته شدهای به من رشیدانه یاد دهی پیروی کنم؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٧ | قالَ إِنَّكَ لَن تَستَطيعَ مَعِىَ صَبرًا (٦٧) ]] }} | |||
گفت: «تو هرگز نتوانی همپای من (در این راه) صبر کنی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٨ | وَ كَيفَ تَصبِرُ عَلىٰ ما لَم تُحِط بِهِ خُبرًا (٦٨) ]] }} | |||
«و چگونه میتوانی بر چیزی که به شناخت آن احاطهای نداری صبر کنی؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٦٩ | قالَ سَتَجِدُنى إِن شاءَ اللَّهُ صابِرًا وَ لا أَعصى لَكَ أَمرًا (٦٩) ]] }} | |||
گفت: «اگر خدا خواهد مرا شکیبا خواهی یافت، و (در) هیچ کاری (که انجام میدهی) تو را نافرمانی نخواهم کرد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٠ | قالَ فَإِنِ اتَّبَعتَنى فَلا تَسـَٔلنى عَن شَيءٍ حَتّىٰ أُحدِثَ لَكَ مِنهُ ذِكرًا (٧٠) ]] }} | |||
گفت: «اگر مرا پیروی میکنی، از چیزی مرا مپرس تا (خود) از آن برایت یادی آغاز کنم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧١ | فَانطَلَقا حَتّىٰ إِذا رَكِبا فِى السَّفينَةِ خَرَقَها قالَ أَخَرَقتَها لِتُغرِقَ أَهلَها لَقَد جِئتَ شَيـًٔا إِمرًا (٧١) ]] }} | |||
پس (از آنجا خستند و) رستند تا وقتی که سوار (آن) کشتی شدند. (وی) آن را درید. (موسی) گفت: «آیا کشتی را دریدی تا سرنشینانش را غرق کنی؟ بیگمان کاری منکر[:نابسامان و ناروا] به بار آوردی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٢ | قالَ أَلَم أَقُل إِنَّكَ لَن تَستَطيعَ مَعِىَ صَبرًا (٧٢) ]] }} | |||
گفت: «آیا نگفتم تو هرگز نتوانی همپای من صبر کنی؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٣ | قالَ لا تُؤاخِذنى بِما نَسيتُ وَ لا تُرهِقنى مِن أَمرى عُسرًا (٧٣) ]] }} | |||
(موسی) گفت: «به (سبب) آنچه فراموش کردم، مرا مؤاخذه مکن، و از (این) کارم، مرا به سختی مینداز.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٤ | فَانطَلَقا حَتّىٰ إِذا لَقِيا غُلٰمًا فَقَتَلَهُ قالَ أَقَتَلتَ نَفسًا زَكِيَّةً بِغَيرِ نَفسٍ لَقَد جِئتَ شَيـًٔا نُكرًا (٧٤) ]] }} | |||
پس (همچنان خستند و) رستند، تا هنگامی که به نوجوانی برخورد کردند. پس وی او را کشت. (موسی بدو) گفت: «آیا شخص پاکی را- بدون اینکه کسی را به (ناپاکی) کشته باشد- کشتی؟ بیچون همواره منکری (به بار) آوردی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٥ | قالَ أَلَم أَقُل لَكَ إِنَّكَ لَن تَستَطيعَ مَعِىَ صَبرًا (٧٥) ]] }} | |||
گفت: «آیا به تو نگفتم هرگز نتوانی –همواره- پایاپای من صبری کنی؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٦ | قالَ إِن سَأَلتُكَ عَن شَيءٍ بَعدَها فَلا تُصٰحِبنى قَد بَلَغتَ مِن لَدُنّى عُذرًا (٧٦) ]] }} | |||
(موسی) گفت: «اگر از این پس چیزی (دربارهی آنچه کردی) از تو بپرسم، دیگر با من همراهی مکن. از سوی من بیچون به عذری رسیدهای.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٧ | فَانطَلَقا حَتّىٰ إِذا أَتَيا أَهلَ قَريَةٍ استَطعَما أَهلَها فَأَبَوا أَن يُضَيِّفوهُما فَوَجَدا فيها جِدارًا يُريدُ أَن يَنقَضَّ فَأَقامَهُ قالَ لَو شِئتَ لَتَّخَذتَ عَلَيهِ أَجرًا (٧٧) ]] }} | |||
پس (از اینجا هم خستند و) رستند تا هنگامی که به اهل قریهای رسیدند. از مردم با اهلیَتَش خوراکی خواستند (ولی) آنها از مهمان نمودن آن دو خودداری کردند. پس در آنجا دیواری یافتند که میخواست فرو ریزد. آن را استوار کرد. (موسی) گفت: «اگر میخواستی بیچون بر (کارکرد) آن مزدی میگرفتی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٨ | قالَ هٰذا فِراقُ بَينى وَ بَينِكَ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأويلِ ما لَم تَستَطِع عَلَيهِ صَبرًا (٧٨) ]] }} | |||
گفت: «این (بار، دیگر وقت) جدایی میان من و تو است. تو را از تأویل [:دستاورد حقیقی و پنهان] آنچه که نتوانستی بر آن صبری کنی آگاهی مهمی خواهم داد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٧٩ | أَمَّا السَّفينَةُ فَكانَت لِمَسٰكينَ يَعمَلونَ فِى البَحرِ فَأَرَدتُ أَن أَعيبَها وَ كانَ وَراءَهُم مَلِكٌ يَأخُذُ كُلَّ سَفينَةٍ غَصبًا (٧٩) ]] }} | |||
«اما کشتی؛ از بینوایانی بود که در دریا کار میکردند، پس خواستم آن را معیوب کنم. حال آنکه از پشت آنان پادشاهی بود که هر کشتی (سالمی) را به زور میگرفت.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٠ | وَ أَمَّا الغُلٰمُ فَكانَ أَبَواهُ مُؤمِنَينِ فَخَشينا أَن يُرهِقَهُما طُغيٰنًا وَ كُفرًا (٨٠) ]] }} | |||
«و اما (آن) نوجوان؛ پدر و مادرش مؤمن بودند، پس ترسیدیم (مبادا) آن دو را ناخواسته و بهناچار به طغیان و کفر بکشد. » | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨١ | فَأَرَدنا أَن يُبدِلَهُما رَبُّهُما خَيرًا مِنهُ زَكوٰةً وَ أَقرَبَ رُحمًا (٨١) ]] }} | |||
«پس خواستیم که پروردگارشان آن دو را به پاکیزهتر و رحمتوارتر از او عوض دهد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٢ | وَ أَمَّا الجِدارُ فَكانَ لِغُلٰمَينِ يَتيمَينِ فِى المَدينَةِ وَ كانَ تَحتَهُ كَنزٌ لَهُما وَ كانَ أَبوهُما صٰلِحًا فَأَرادَ رَبُّكَ أَن يَبلُغا أَشُدَّهُما وَ يَستَخرِجا كَنزَهُما رَحمَةً مِن رَبِّكَ وَ ما فَعَلتُهُ عَن أَمرى ذٰلِكَ تَأويلُ ما لَم تَسطِع عَلَيهِ صَبرًا (٨٢) ]] }} | |||
«و اما دیوار؛ پس از آنِ دو پسر (بچهی) یتیم در آن شهر بود و زیر آن، گنجی متعلق به آن دو بود و پدرشان (مردی) شایسته بود. پس پروردگارت خواست آن دو (یتیم) به حدّ رشدهاشان رسند و گنجینهی خود را – به رحمت پروردگارت – با کاوش بیرون آورند. و این (کارها) را من خودسرانه انجام ندادم. این بود تأویل آنچه که نتوانستی بر آن شکیبایی ورزی.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٣ | وَ يَسـَٔلونَكَ عَن ذِى القَرنَينِ قُل سَأَتلوا عَلَيكُم مِنهُ ذِكرًا (٨٣) ]] }} | |||
و از تو دربارهی ذوالقرنین میپرسند. بگو: «از او برای شما یادی خواهم نمود.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٤ | إِنّا مَكَّنّا لَهُ فِى الأَرضِ وَ إتَينٰهُ مِن كُلِّ شَيءٍ سَبَبًا (٨٤) ]] }} | |||
ما بیگمان در زمین برایش امکان [:توان] نهادیم، و از هر چیزی وسیلهای به او دادیم | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٥ | فَأَتبَعَ سَبَبًا (٨٥) ]] }} | |||
تا وسیلهای (ربانی) را [:از] پی [:خود] آورد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٦ | حَتّىٰ إِذا بَلَغَ مَغرِبَ الشَّمسِ وَجَدَها تَغرُبُ فى عَينٍ حَمِئَةٍ وَ وَجَدَ عِندَها قَومًا قُلنا يٰذَا القَرنَينِ إِمّا أَن تُعَذِّبَ وَ إِمّا أَن تَتَّخِذَ فيهِم حُسنًا (٨٦) ]] }} | |||
تا آنگاه که به غروبگاه خورشید رسید (و) آن را (چنان) یافت که در چشمهای گلآلود و سیاه غروب میکند. و نزد آن طایفهای را یافت. گفتیم: «ذوالقرنین! (اختیار با توست) یا عذاب(شان) کنی، یا در میانشان (روش) نیکویی پیش گیری.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٧ | قالَ أَمّا مَن ظَلَمَ فَسَوفَ نُعَذِّبُهُ ثُمَّ يُرَدُّ إِلىٰ رَبِّهِ فَيُعَذِّبُهُ عَذابًا نُكرًا (٨٧) ]] }} | |||
گفت: «اما هر کس ستم کرده، در آیندهای دور عذابش خواهم کرد. سپس سوی پروردگارش بازگردانیده میشود. آنگاه او را عذابی منکرخواهد کرد.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٨ | وَ أَمّا مَن إمَنَ وَ عَمِلَ صٰلِحًا فَلَهُ جَزاءً الحُسنىٰ وَ سَنَقولُ لَهُ مِن أَمرِنا يُسرًا (٨٨) ]] }} | |||
«و اما هر کس ایمان آورد و کار شایستهای کرد، پس برایش پاداشی نیکوتر است، و زودا (که) از کارمان برایش (جریان) آسانی خواهیم گفت.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٨٩ | ثُمَّ أَتبَعَ سَبَبًا (٨٩) ]] }} | |||
سپس وسیلهای (دیگر) را از پی خود در آورد | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٠ | حَتّىٰ إِذا بَلَغَ مَطلِعَ الشَّمسِ وَجَدَها تَطلُعُ عَلىٰ قَومٍ لَم نَجعَل لَهُم مِن دونِها سِترًا (٩٠) ]] }} | |||
تا آنگاه که به جایگاه بر آمدن خورشید رسید (و) آن را (چنان) یافت که بر قومی طلوع میکرد، که برایشان در برابر آن پوششی قرار ندادیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩١ | كَذٰلِكَ وَ قَد أَحَطنا بِما لَدَيهِ خُبرًا (٩١) ]] }} | |||
این چنین (میرفت) در حالیکه به آنچه نزد او بود همانا احاطهی علمی داشتیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٢ | ثُمَّ أَتبَعَ سَبَبًا (٩٢) ]] }} | |||
سپس وسیلهای (دیگر) را [:از] پی [:خود] آورد. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٣ | حَتّىٰ إِذا بَلَغَ بَينَ السَّدَّينِ وَجَدَ مِن دونِهِما قَومًا لا يَكادونَ يَفقَهونَ قَولًا (٩٣) ]] }} | |||
تا وقتی به میان آن دو سدّ رسید (و) در برابر آن دو، طایفهای را یافت که نزدیک نیستند (تا) هیچ سخنی (شایستهی تفکر) را بفهمند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٤ | قالوا يٰذَا القَرنَينِ إِنَّ يَأجوجَ وَ مَأجوجَ مُفسِدونَ فِى الأَرضِ فَهَل نَجعَلُ لَكَ خَرجًا عَلىٰ أَن تَجعَلَ بَينَنا وَ بَينَهُم سَدًّا (٩٤) ]] }} | |||
گفتند: «ذوالقرنین! یأجوج و مأجوج سخت در زمین افساد کنندهاند. پس آیا خرجیای در اختیار تو قرار دهیم تا میان ما و آنان سدّی قرار دهی؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٥ | قالَ ما مَكَّنّى فيهِ رَبّى خَيرٌ فَأَعينونى بِقُوَّةٍ أَجعَل بَينَكُم وَ بَينَهُم رَدمًا (٩٥) ]] }} | |||
گفت: «آنچه پروردگارم به من در آن تمکّن داده (از کمک مالی شما) بهتر است. (تنها) مرا با نیرویی (جسمانی) یاری کنید تا میان شما و آنان سدی آهنین قرار دهم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٦ | إتونى زُبَرَ الحَديدِ حَتّىٰ إِذا ساوىٰ بَينَ الصَّدَفَينِ قالَ انفُخوا حَتّىٰ إِذا جَعَلَهُ نارًا قالَ إتونى أُفرِغ عَلَيهِ قِطرًا (٩٦) ]] }} | |||
«برایم قطعات بزرگ آهن بیاورید.» (آوردند) تا آنگاه که میان دو قلهی کوه برابر شد. گفت: «بدمید تا وقتی که آن قطعات را آتش گردانید.» (پس) گفت: «مس گداخته برایم بیاورید تا روی آن بریزم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٧ | فَمَا اسطٰعوا أَن يَظهَروهُ وَ مَا استَطٰعوا لَهُ نَقبًا (٩٧) ]] }} | |||
پس [:یأجوج و مأجوج] نتوانستند از آن بالا بروند و (هم) نتوانستند آن را سوراخی کنند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٨ | قالَ هٰذا رَحمَةٌ مِن رَبّى فَإِذا جاءَ وَعدُ رَبّى جَعَلَهُ دَكّاءَ وَ كانَ وَعدُ رَبّى حَقًّا (٩٨) ]] }} | |||
(ذوالقرنین) گفت: «این رحمتی بزرگ از (جانب) پروردگار من است. پس هنگامیکه وعدهی پروردگارم فرا رسد، آن سدّ را از هم فرو پاشد. و وعدهی هراسناک پروردگارم حق بوده است.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ٩٩ | وَ تَرَكنا بَعضَهُم يَومَئِذٍ يَموجُ فى بَعضٍ وَ نُفِخَ فِى الصّورِ فَجَمَعنٰهُم جَمعًا (٩٩) ]] }} | |||
و (در آن روز) آنان را رها کنیم، تا موجآسا بعضی با بعضی دیگر درآمیزند، و در صور [:بوق جانافزا] دمیده شود. پس همهی آنها را گرد (هم) آوریم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٠ | وَ عَرَضنا جَهَنَّمَ يَومَئِذٍ لِلكٰفِرينَ عَرضًا (١٠٠) ]] }} | |||
و آن روز، جهنم را آشکارا به کافران بنمایانیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠١ | الَّذينَ كانَت أَعيُنُهُم فى غِطاءٍ عَن ذِكرى وَ كانوا لا يَستَطيعونَ سَمعًا (١٠١) ]] }} | |||
(به) همانان که چشمان (بصیرت)شان از یاد من غرق در پردهای (ضخیم) بود، و هرگز توان شنیدن (حق) را نداشتند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٢ | أَفَحَسِبَ الَّذينَ كَفَروا أَن يَتَّخِذوا عِبادى مِن دونى أَولِياءَ إِنّا أَعتَدنا جَهَنَّمَ لِلكٰفِرينَ نُزُلًا (١٠٢) ]] }} | |||
آیا پس کسانی که کفر ورزیدند، پنداشتند که به جای من، بندگانم را سرپرست برگیرند؟ ما بیگمان جهنم را برای کافران آماده کردهایم. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٣ | قُل هَل نُنَبِّئُكُم بِالأَخسَرينَ أَعمٰلًا (١٠٣) ]] }} | |||
بگو: «آیا شما را از زیانکارترین مردم آگاه گردانیم؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٤ | الَّذينَ ضَلَّ سَعيُهُم فِى الحَيوٰةِ الدُّنيا وَ هُم يَحسَبونَ أَنَّهُم يُحسِنونَ صُنعًا (١٠٤) ]] }} | |||
کسانی که کوشششان در (ژرفای) زندگی دنیا گم گشته، حال آنکه میپندارند کاری خوب انجام میدهند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٥ | أُولٰئِكَ الَّذينَ كَفَروا بِـٔايٰتِ رَبِّهِم وَ لِقائِهِ فَحَبِطَت أَعمٰلُهُم فَلا نُقيمُ لَهُم يَومَ القِيٰمَةِ وَزنًا (١٠٥) ]] }} | |||
ایشان کسانیاند که آیات پروردگارشان و لقای او را انکار کردند؛ در نتیجه اعمالشان تباه گردید. پس روز قیامت برایشان هیچ وزنی (:میزانی) به پا نخواهیم داشت. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٦ | ذٰلِكَ جَزاؤُهُم جَهَنَّمُ بِما كَفَروا وَ اتَّخَذوا إيٰتى وَ رُسُلى هُزُوًا (١٠٦) ]] }} | |||
این (جهنم) سزای آنان است، در پیامد (اینکه) کافر شدند، و آیات من و پیامبرانم را به مسخره گرفتند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٧ | إِنَّ الَّذينَ إمَنوا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ كانَت لَهُم جَنّٰتُ الفِردَوسِ نُزُلًا (١٠٧) ]] }} | |||
بیگمان کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته(ی ایمان) کردند، باغهای سردرهم فردوس جایگاه پذیرایی آنان بوده است. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٨ | خٰلِدينَ فيها لا يَبغونَ عَنها حِوَلًا (١٠٨) ]] }} | |||
جاودانه در آن خواهند بود (و) از آنجا درخواست انتقال و تحولی (به جایی دیگر) نکنند. | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١٠٩ | قُل لَو كانَ البَحرُ مِدادًا لِكَلِمٰتِ رَبّى لَنَفِدَ البَحرُ قَبلَ أَن تَنفَدَ كَلِمٰتُ رَبّى وَ لَو جِئنا بِمِثلِهِ مَدَدًا (١٠٩) ]] }} | |||
بگو: «اگر دریا برای نبشتن کلمات پروردگارم مرکّب بود، پیش از آنکه کلمات پروردگارم پایان پذیرد، بیگمان دریا پایان مییافت هر چند نظیرش را به مدد(ش) بیاوریم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الكهف ١١٠ | قُل إِنَّما أَنا۠ بَشَرٌ مِثلُكُم يوحىٰ إِلَىَّ أَنَّما إِلٰهُكُم إِلٰهٌ وٰحِدٌ فَمَن كانَ يَرجوا لِقاءَ رَبِّهِ فَليَعمَل عَمَلًا صٰلِحًا وَ لا يُشرِك بِعِبادَةِ رَبِّهِ أَحَدًا (١١٠) ]] }} | |||
بگو: «من تنها بشری همانند شمایم. (اما) به من وحی میشود که خدای شما خدایی یگانه است. پس هر کس به لقای پروردگار خود امید دارد، باید کاری شایسته کند و هیچ کس را، در پرستش پروردگارش (با او) شریک نسازد.» | |||
==محتوای سوره== | ==محتوای سوره== |
نسخهٔ کنونی تا ۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۱:۳۷
سوره الإسراء | سوره الكهف | سوره مريم | |||||||||||||||||||||||
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متن سوره
هر ستایش(شایسته) خدا را سزاست که (این) کتاب [:قرآن] را بر بنده (ی ویژه)اش فرو فرستاد و برایش (هیچ گونه) کژی ننهاد.
حال آنکه (این کتاب) پربها، محکم و استوار است، تا (خدا به وسیلهی قرآن) برخوردی شدید را از جانب خود (به کفار) هشدار دهد، و مؤمنان را که کارهای شایسته (ی ایمان) میکنند بسینویدبخشد،که براستی برایشان پاداشی نیکوست.
حال آنکه در آن (پاداش نیکو) همیشه ماندگارند.
و (همچنین) کسانی را که گفتند: «خدا فرزندی (برای خود) برگرفته» هشدار دهد.
نه برای آنان و نه برای پدرانشان بر این (ادعا) هیچ گونه دانشی (و بینشی) نیست. سخنی بس گران (و گزاف) است که از دهانشان(و نه از فطرتها و عقلانیتشان) برون میآید (و آنان) جز دروغ نمیگویند.
پس شاید اگر به این سخن ایمان نیاورند، در حال تأسف بر پیامد کارشان خود را هلاک میکنی.
در حقیقت، ما آنچه را که روی زمین است، زیوری برای آن قرار دادیم، تا آنان را بیازماییم، (که) کدام یک از ایشان نیکوکارترند.
و ما همانا آنچه را که برزمین (استوار) است بیگمان تپهای بیگیاه خواهیم کرد.
یا پنداشتی اصحاب کهف و رقیم [:خفتگان غار لوحهدار] از آیات شگفتانگیز ما بودهاند؟
چون آن جوانمردان سوی آن غار پناه جستند، پس گفتند: «پروردگارمان! از جانب خود به ما رحمتی (بزرگ) بده، و از کارمان برایمان سامانی برسان.»
پس (در آن غار) سالیانی چند بر گوشهایشان پرده(ی خواب) زدیم.
سپس آنان را (از این خواب مرگبار) برانگیختیم، تا نشانه نهیم (که) کدام یک از آن دو دسته، زمان درنگشان را بهتر حساب کردهاند.
ما خبر مهمشان را به (کمال) حقیقت بر تو حکایت میکنیم؛ آنان رادمردانی هستند که به پروردگارشان ایمان آوردند و ما بر هدایتشان افزودیم.
و بر دلهایشان پیوند نهادیم (و استوارشان کردیم). چون (به قصد مخالفت با شرک) به پا خاستند، پس گفتند: «پروردگارمان، پروردگار آسمانها و زمین است. جز او هرگز معبودی را نخواهیم خواند که در این صورت قطعاً ناصواب و پراکنده گفتهایم.»
اینان ]: مشرکان[گروه مایند (که) جز او معبودانی اختیار کردند. چرا بر (حقانیت) آنها برهانی آشکار نمیآورند؟ پس کیست ستمکارتر از آن کس که بر خدا دروغ بسته است؟
«و چون از آنها و از آنچه که جز خدا میپرستند کناره گرفتید، پس سوی غار پناه گیرید تا پروردگارتان از رحمت (ویژهی) خود بر (سرو سامان)تان بگستراند و برایتان از کارتان (گشایش و) تکیهگاهی فراهم سازد.»
و آفتاب را میبینی که چون بر میآید، از غارشان به سمت راست متمایل است. و چون فرو میشود از سمت چپشان (دامن) بر میچیند، حال آنکه آنان در جایی فراخ از آن غار قرار گرفتهاند. این از نشانههای (قدرت و حکمت و رحمت) خداست. خدا هر که را راهنمایی کند (هم) او راه یافته است. و هر که را بیراه واگذارد، هرگز برای او سرپرستی راهبر نخواهی یافت.
و (تو) پنداری ایشان بیدارند، حال آنکه خفتهاند. و آنان را به پهلوی راست و چپ میگردانیم، حال آنکه سگشان سر بر آستانه(ی غار) دو دست خود را باز کرده. اگر بر (حال) آنان آگاه شوی، بیگمان گریزان روی از آنان بر میتاختی، و بهراستی از (مشاهدهی) آنان آکنده از بیم میشوی.
و اینچنین آنها را (از این خواب مرگبار) برانگیختیم، تا در میان خود از یکدیگر پرسش کنند. گویندهای از آنان گفت: «چقدر ماندهاید؟»گفتند: «روزی یا پارهای از روز (را ماندهایم).» (گروهی دیگر از ایشان) گفتند: «پروردگارتان به آنچه ماندهاید داناتر است. پس یکی از خودتان را با (این) پولتان به شهر بفرستید. پس باید بنگرد کجای شهر طعامش پاکیزهتر است، تا غذایی برایتان بیاورد. و باید نرمی و زیرکی به خرج دهد و هرگز هیچ کس را بر (حال) شما آگاه نگرداند.»
«بیگمان اگر آنان بر شما دست یابند، سنگسارتان میکنند، یا شما را به کیش خویش باز میگردانند، و در آن هنگام (و هنگامه) هرگز (خود و دیگران را) رستگار نتوانید کرد.»
و بدینسان (مردمان آن دیار را) بر حالشان آگاه ساختیم، تا بدانند (که) همانا وعدهی خدا حق است و (اینکه) بهراستی در (فرا رسیدن) ساعت (قیامت) هیچ شک مستندی نیست. چون میان خود در کارشان با یکدیگر نزاع میکنند، پس (اینان) گفتند: «بر روی آنها ساختمانی بنا کنید، پروردگارشان به (حال) آنان داناتر است.» (سرانجام) کسانی که بر جریانشان آگاه شدند گفتند: «بهراستی حتماً فرارویشان مسجدی برخواهیم گرفت.»
خواهند گفت: «سه تناند، چهارمینشان سگشان.» و میگویند: «پنج تناند، ششمینشان سگشان.» (این دو گفته) تیری در تاریکی انداختن است؛ و (عدهای هم) میگویند: «هفت تن بودند و هشتمینشان سگشان.» بگو: «پروردگارم به شمارشان آگاهتر است. جز اندکی (کسی شمار) آنان را نمیداند.» پس دربارهی ایشان جز به صورت ظاهر جدال مکن و در مورد آنان از هیچ کس فتوایی مجوی.
و زنهار در مورد چیزی مگوی که من آن را محققاً فردا انجام خواهم داد.
مگر آنکه خدا بخواهد. و چون فراموش کردی، پروردگارت را یاد کن و بگو: «امید که پروردگارم مرا به راهی که نزدیکتر از این به صواب است، رهنمون گردد.»
و سیصد سال در غارشان درنگ کردند. و نُه سال (نیز) بر آن افزون خواستند.
بگو: «خدا به آنچه درنگ کردند داناتر است. (علم و قدرت بر) نهان آسمانها و زمین به او اختصاص دارد. وه! چه بینا و شنواست! برای آنان سروری جز او نیست و هیچ کس را در (هیچگونه) حکمش (در تکوین و تشریع) هرگز شریک نمیکند.»
و آنچه را که از کتاب پروردگارت سویت وحی شده است (برایشان) بخوان و پیروی کن. کلمات او [:خدا و قرآن] را هیچگاه تبدیلکنندهای نیست . جز او [:خدا و کتابش] هرگز پایگاه و پناهگاهی (وحیانی) نتوانی یافت.
و با کسانی که پروردگارشان را صبح و شام میخوانند (و همواره) خشنودی او را میخواهند، خود را شکیبا کن، و هرگز دو دیدهات از آنان (سوی دیگران) بر نگردد، حال آنکه زیور زندگی دنیا را بخواهی. و از آن کس که قلبش را از یاد خود غافل ساختهایم و از هوس خود پیروی کرده و (اساس) کارش بر زیادهروی بوده است، اطاعت مکن.
و بگو: «(تمامی) حق از پروردگار شماست. پس هر کس (حق را) بخواهد باید (به پروردگارش) ایمان آورد و هر که (ناحق را) بخواهد (همو) کافر شود. بیگمان ما برای ستمگران آتشی آماده کردهایم که سراپردههایش آنان را در بر گرفته و اگر فریادرسی جویند به آبی، چون تهماندهی روغن زیتون جوشان - که چهرهها را بریان میکند - فریادرسی میشوند. چه بد آشامیدنی و چه زشت تکیهگاه و آرامشگاهی است.»
بیگمان کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته(ی ایمان) کردهاند، ما بهراستی پاداش کسی را که کاری را به نیکی انجام داده است تباه نمیکنیم.
آنانند که باغهای ماندگار ویژهی ایشان است، (که) از زیر (درختان)شان نهرها روان است. در آنجا با دستبندهایی از طلا بسی آراسته میشوند و جامههایی سبز از حریر نازک و حریر ستبر میپوشند و در آن بر تختها تکیه میزنند. چه خوش پاداش و نیکوتکیهگاهی است.
و برای آنان، دو مرد را مَثَل بزن، که به یکی از آنها دو باغ انگور دادیم و پیرامون آن دو (باغ) را با درختان خرما پوشاندیم، و میان آن دو کشتزاری قرار دادیم؛
هر دو باغ خوراکی خود را (به شایستگی) آوردند و از آن چیزی را نکاستند. و میان آن دو باغ نهری شکافتیم.
و برای آن ثمری فراوان بود. پس به همراهش - در حالی که با او گفتوگو میکرد - گفت: «مال من از مال تو بیشتر است و از حیث افراد توانمند (هم) از تو نیرومندترم.»
و داخل باغش شد در حالی که بر خویشتن ستمکار بود، (و) گفت: «گمان نمیبرم این (باغ) هرگز زوال پذیرد.»
«و گمان (هم) نمیکنم که ساعت (قیامت) بر پا باشد و اگر (هم) سوی پروردگارم بازگردانده شوم، همانا بیچون جایگاهی نوین (و) بهتر (از این) خواهم یافت.»
همراهش - در حالیکه با او گفتوگو میکرد - به او گفت: «آیا به آن کس که تو را از خاک (و) سپس از نطفه آفرید (و) آنگاه تو را مردی بساخت، کافر شدی؟»
لیکن ما (میگوییم) : «اوست خدا، پروردگار من و هیچ کس را با پروردگارم شریک نمیسازم.»
و چون داخل باغت شدی، چرا نگفتی: «(تنها) آنچه خدا خواسته (شدنی است). هرگز نیرویی جز به (وسیلهی) خدا نیست. اگر مرا از حیث مال و فرزند کمتر از خود میبینی،»
«پس امید است که پروردگارم بهتر از باغ تو به من بدهد و بر باغ تو آفتی از آسمان فرو فرستد، تا به تپهای بیگیاه تبدیل گردد.»
«یا آبش فروکش کند، پس هرگز نتوانی آن را بجویی.»
(تا به او رسید آنچه باید برسد) و ثمرهاش فرو گرفته شد، پس برای (از کف دادن) آنچه در آن باغ هزینه کرده بود، دستهایش را زیر و رو میکرد و برهم میزد -در حالی که داربستهای آن فرو ریخته بود- و (با حسرت) میگفت: «ای کاش هیچ کس را شریک پروردگارم نمیساختم.»
و او را پس از خدا هیچ گروهی نبود تا یاریش کنند و توانی (هم) نداشت تا از کسی یاریگیرنده باشد.
(سرانجام) در آنجا (همهی) ولایت(ها) در انحصار خدای تمام حق است. اوست بهترین پاداشدهنده و (اوست) بهترین فرجام (کار).
و برای آنان زندگی دنیا را مَثَل بزن: مانند آبی است که آن را از آسمان فرو فرستادیم؛ پس روییدنی زمین با آن درآمیخت. پس (از آن، چنان) خشک گردید که بادها پراکندهاش میکنند. و خدا همواره بر همه چیزی توانا بوده است.
مال و فرزندان، زیور زندگی دنیایند و نیکیهای ماندگار از نظر پاداش نزد پروردگارت بهتر و از نظر آرزومندی (نیز) بهتر است.
و روزی را یاد کن که کوهها را به شدت روان سازیم و زمین را آشکارا (و صاف) ببینی و آنان را گرد (هم) آوردیم، پس هیچ یک را فروگذار نکردیم.
و (در آن روز که) ایشان به صف بر پروردگارت عرضه شدند (به آنها میفرماید:) «بهراستی همان گونه که نخستین بار شما را آفریدیم سوی ما آمدید، بلکه پنداشتید هرگز برای شما وعدهگاهی مقرر نکردیم.»
و کتاب (اعمال) گزارده شد. آنگاه بزهکاران را از آنچه در آن است با بزرگداشتش بیمناک میبینی، و (همی) گویند: «ای وای بر ما! این نامه را چه برنامهای است که هیچ کوچک و بزرگی را فرو نمیگذارد جز اینکه همه را بر شمرده است!» و آنچه را انجام دادند حاضر یافتند و پروردگار تو به هیچ کس ستم روا نمیدارد.
و چون به فرشتگان گفتیم: «برای (شکر دربارهی) آدم (برایخدا) سجده کنید.» پس (همه) سجده کردند، جز ابلیس (که) از (گروه) جنیان [:پنهانگران] بود. پس، از فرمان پروردگارش سرپیچید. آیا پس (از این) او و نسلش را به جای من اولیای خود بر میگیرید؟ حال آنکه آنان دشمنان شمایند. شیطان چه بد بدلی (از رحمان بیبدیل) برای ستمگران است.
من نه آفرینش آسمانها و زمین را بدیشان نشان دادم و نه آفرینش خودهاشان را. و من (آن) نبودهام که کمک گیرنده از گمراهکنندگان باشم.
و روزی را که (خدا) میگوید: «آنهایی راکه شریکان من پنداشتید، بخوانید». پس آنان را خواندند، و(لی) اجابتشان نکردند، و ما میانشان جایگاه تباهی قرار دادیم.
و مجرمان آتش (دوزخ) را دیدند. پس گمان بردند که برخوردکنندگان آنند، و از آن گریزگاهی نیافتند.
و بهراستی در این قرآن، برای مردمان بیگمان از هر (گونه) مَثَلی آوردیم، و (اما) انسان بیش از هر چیز (سر) جدال داشته است.
و چیزی مانع مردم نشد از اینکه - چون هدایت سویشان آمد - ایمان بیاورند، و از پروردگارشان پوشش بخواهند، بجز اینکه سنت (خدا در مورد عذاب) پیشینیان، دربارهی آنان (نیز) به کار رود، یا عذاب رویارویشان بیاید.
و (ما) پیامبران (خود) را جز بشارتدهندگان و بیمدهندگان گسیل نمیداریم. و کسانی که کافر شدند، به باطل مجادله میکنند، تا به (وسیلهی) آن، حق را پایمال نمایند. و نشانههای مرا و آنچه را (بدان) بیم داده شدهاند به ریشخند گرفتند.
و کیست ستمکارتر از آن کس که به آیات پروردگارش تذکر داده شده، پس از آن روی برتافته و دستاورد پیشینهی خود را که از پیش فرستاده فراموش کند؟ ما بر دلهایشان پوششهایی سخت قرار دادیم، تا آن را در نیابند و در گوشهایشان سنگینی (نهادیم). و اگر آنها را سوی هدایت فراخوانی هرگز راه نیابند.
و پروردگارت بسی پوشانندهی کانون رحمت است. اگر به (جرم) دستاوردهاشان، آنان را مؤاخذه کند، بیگمان در عذابشان تعجیل مینماید. (ولی چنین نمیکند) بلکه برای آنها سررسیدی است که هرگز پس از آن راه گریزی نمییابند.
و چون آن گروهها بیدادگری کردند، هلاکشان کردیم، و برای هلاکتشان موعدی مقرر داشتیم.
و چون موسی به جوان [:دستیار] خود گفت: «از این جا دستبردار نیستم تا به محل برخورد دو دریا برسم یا زمانهایی سیر کنم.»
پس چون به محل برخورد دو (دریا) رسیدند، ماهیشان را فراموش کردند. پس ماهی راه راهوارش را به سراشیبی دریا پیش گرفت .
و هنگامی که (از آنجا) گذشتند (موسی) به جوان [:دستیار] خود گفت: «غذایمان را بیاور، بهراستی ما از این سفر به رنجی بسیار دچار شدیم.»
گفت: «آیا دیدی؟ چون سوی آن صخره پناه جستیم، من بیگمان آن ماهی را فراموش کردم و جز شیطان (کسی) آن را از یادم نبرد، که به یادش باشم، و به گونهای شگفتانگیز خود راه راهوارش در دریا را پیش گرفت.»
گفت: «این (جریان) همان بود که ما آن را میجستهایم.» پس جستجوکنان برگشته(و) دنبال ردّ پاهایشان را گرفتند.
پس بندهای از بندگان ما را یافتند که رحمتی (ویژه) از خود به او دادیم، و از نزد خود بدو دانشی (ویژه) آموختیم.
موسی بدو گفت: «آیا تو را بر این مبنا که از دانشی (شایسته) که آموخته شدهای به من رشیدانه یاد دهی پیروی کنم؟»
گفت: «تو هرگز نتوانی همپای من (در این راه) صبر کنی.»
«و چگونه میتوانی بر چیزی که به شناخت آن احاطهای نداری صبر کنی؟»
گفت: «اگر خدا خواهد مرا شکیبا خواهی یافت، و (در) هیچ کاری (که انجام میدهی) تو را نافرمانی نخواهم کرد.»
گفت: «اگر مرا پیروی میکنی، از چیزی مرا مپرس تا (خود) از آن برایت یادی آغاز کنم.»
پس (از آنجا خستند و) رستند تا وقتی که سوار (آن) کشتی شدند. (وی) آن را درید. (موسی) گفت: «آیا کشتی را دریدی تا سرنشینانش را غرق کنی؟ بیگمان کاری منکر[:نابسامان و ناروا] به بار آوردی.»
گفت: «آیا نگفتم تو هرگز نتوانی همپای من صبر کنی؟»
(موسی) گفت: «به (سبب) آنچه فراموش کردم، مرا مؤاخذه مکن، و از (این) کارم، مرا به سختی مینداز.»
پس (همچنان خستند و) رستند، تا هنگامی که به نوجوانی برخورد کردند. پس وی او را کشت. (موسی بدو) گفت: «آیا شخص پاکی را- بدون اینکه کسی را به (ناپاکی) کشته باشد- کشتی؟ بیچون همواره منکری (به بار) آوردی.»
گفت: «آیا به تو نگفتم هرگز نتوانی –همواره- پایاپای من صبری کنی؟»
(موسی) گفت: «اگر از این پس چیزی (دربارهی آنچه کردی) از تو بپرسم، دیگر با من همراهی مکن. از سوی من بیچون به عذری رسیدهای.»
پس (از اینجا هم خستند و) رستند تا هنگامی که به اهل قریهای رسیدند. از مردم با اهلیَتَش خوراکی خواستند (ولی) آنها از مهمان نمودن آن دو خودداری کردند. پس در آنجا دیواری یافتند که میخواست فرو ریزد. آن را استوار کرد. (موسی) گفت: «اگر میخواستی بیچون بر (کارکرد) آن مزدی میگرفتی.»
گفت: «این (بار، دیگر وقت) جدایی میان من و تو است. تو را از تأویل [:دستاورد حقیقی و پنهان] آنچه که نتوانستی بر آن صبری کنی آگاهی مهمی خواهم داد.»
«اما کشتی؛ از بینوایانی بود که در دریا کار میکردند، پس خواستم آن را معیوب کنم. حال آنکه از پشت آنان پادشاهی بود که هر کشتی (سالمی) را به زور میگرفت.»
«و اما (آن) نوجوان؛ پدر و مادرش مؤمن بودند، پس ترسیدیم (مبادا) آن دو را ناخواسته و بهناچار به طغیان و کفر بکشد. »
«پس خواستیم که پروردگارشان آن دو را به پاکیزهتر و رحمتوارتر از او عوض دهد.»
«و اما دیوار؛ پس از آنِ دو پسر (بچهی) یتیم در آن شهر بود و زیر آن، گنجی متعلق به آن دو بود و پدرشان (مردی) شایسته بود. پس پروردگارت خواست آن دو (یتیم) به حدّ رشدهاشان رسند و گنجینهی خود را – به رحمت پروردگارت – با کاوش بیرون آورند. و این (کارها) را من خودسرانه انجام ندادم. این بود تأویل آنچه که نتوانستی بر آن شکیبایی ورزی.»
و از تو دربارهی ذوالقرنین میپرسند. بگو: «از او برای شما یادی خواهم نمود.»
ما بیگمان در زمین برایش امکان [:توان] نهادیم، و از هر چیزی وسیلهای به او دادیم
تا وسیلهای (ربانی) را [:از] پی [:خود] آورد.
تا آنگاه که به غروبگاه خورشید رسید (و) آن را (چنان) یافت که در چشمهای گلآلود و سیاه غروب میکند. و نزد آن طایفهای را یافت. گفتیم: «ذوالقرنین! (اختیار با توست) یا عذاب(شان) کنی، یا در میانشان (روش) نیکویی پیش گیری.»
گفت: «اما هر کس ستم کرده، در آیندهای دور عذابش خواهم کرد. سپس سوی پروردگارش بازگردانیده میشود. آنگاه او را عذابی منکرخواهد کرد.»
«و اما هر کس ایمان آورد و کار شایستهای کرد، پس برایش پاداشی نیکوتر است، و زودا (که) از کارمان برایش (جریان) آسانی خواهیم گفت.»
سپس وسیلهای (دیگر) را از پی خود در آورد
تا آنگاه که به جایگاه بر آمدن خورشید رسید (و) آن را (چنان) یافت که بر قومی طلوع میکرد، که برایشان در برابر آن پوششی قرار ندادیم.
این چنین (میرفت) در حالیکه به آنچه نزد او بود همانا احاطهی علمی داشتیم.
سپس وسیلهای (دیگر) را [:از] پی [:خود] آورد.
تا وقتی به میان آن دو سدّ رسید (و) در برابر آن دو، طایفهای را یافت که نزدیک نیستند (تا) هیچ سخنی (شایستهی تفکر) را بفهمند.
گفتند: «ذوالقرنین! یأجوج و مأجوج سخت در زمین افساد کنندهاند. پس آیا خرجیای در اختیار تو قرار دهیم تا میان ما و آنان سدّی قرار دهی؟»
گفت: «آنچه پروردگارم به من در آن تمکّن داده (از کمک مالی شما) بهتر است. (تنها) مرا با نیرویی (جسمانی) یاری کنید تا میان شما و آنان سدی آهنین قرار دهم.»
«برایم قطعات بزرگ آهن بیاورید.» (آوردند) تا آنگاه که میان دو قلهی کوه برابر شد. گفت: «بدمید تا وقتی که آن قطعات را آتش گردانید.» (پس) گفت: «مس گداخته برایم بیاورید تا روی آن بریزم.»
پس [:یأجوج و مأجوج] نتوانستند از آن بالا بروند و (هم) نتوانستند آن را سوراخی کنند.
(ذوالقرنین) گفت: «این رحمتی بزرگ از (جانب) پروردگار من است. پس هنگامیکه وعدهی پروردگارم فرا رسد، آن سدّ را از هم فرو پاشد. و وعدهی هراسناک پروردگارم حق بوده است.»
و (در آن روز) آنان را رها کنیم، تا موجآسا بعضی با بعضی دیگر درآمیزند، و در صور [:بوق جانافزا] دمیده شود. پس همهی آنها را گرد (هم) آوریم.
و آن روز، جهنم را آشکارا به کافران بنمایانیم.
(به) همانان که چشمان (بصیرت)شان از یاد من غرق در پردهای (ضخیم) بود، و هرگز توان شنیدن (حق) را نداشتند.
آیا پس کسانی که کفر ورزیدند، پنداشتند که به جای من، بندگانم را سرپرست برگیرند؟ ما بیگمان جهنم را برای کافران آماده کردهایم.
بگو: «آیا شما را از زیانکارترین مردم آگاه گردانیم؟»
کسانی که کوشششان در (ژرفای) زندگی دنیا گم گشته، حال آنکه میپندارند کاری خوب انجام میدهند.
ایشان کسانیاند که آیات پروردگارشان و لقای او را انکار کردند؛ در نتیجه اعمالشان تباه گردید. پس روز قیامت برایشان هیچ وزنی (:میزانی) به پا نخواهیم داشت.
این (جهنم) سزای آنان است، در پیامد (اینکه) کافر شدند، و آیات من و پیامبرانم را به مسخره گرفتند.
بیگمان کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته(ی ایمان) کردند، باغهای سردرهم فردوس جایگاه پذیرایی آنان بوده است.
جاودانه در آن خواهند بود (و) از آنجا درخواست انتقال و تحولی (به جایی دیگر) نکنند.
بگو: «اگر دریا برای نبشتن کلمات پروردگارم مرکّب بود، پیش از آنکه کلمات پروردگارم پایان پذیرد، بیگمان دریا پایان مییافت هر چند نظیرش را به مدد(ش) بیاوریم.»
بگو: «من تنها بشری همانند شمایم. (اما) به من وحی میشود که خدای شما خدایی یگانه است. پس هر کس به لقای پروردگار خود امید دارد، باید کاری شایسته کند و هیچ کس را، در پرستش پروردگارش (با او) شریک نسازد.»