سوره طه: تفاوت میان نسخه‌ها

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{{قاب | متن = [[ طه ١ | طه‌ (١)]] [[ طه ٢ | مَا أَنْزَلْنَا عَلَيْکَ‌ الْقُرْآنَ‌ لِتَشْقَى‌ (٢)]] [[ طه ٣ | إِلاَّ تَذْکِرَةً لِمَنْ‌ يَخْشَى‌ (٣)]] [[ طه ٤ | تَنْزِيلاً مِمَّنْ‌ خَلَقَ‌ الْأَرْضَ‌ وَ... (٤)]] [[ طه ٥ | الرَّحْمٰنُ‌ عَلَى‌ الْعَرْشِ‌ اسْتَوَى‌ (٥)]] [[ طه ٦ | لَهُ‌ مَا فِي‌ السَّمَاوَاتِ‌ وَ مَا فِي‌... (٦)]] [[ طه ٧ | وَ إِنْ‌ تَجْهَرْ بِالْقَوْلِ‌ فَإِنَّهُ‌... (٧)]] [[ طه ٨ | ... ]]  }} {{سخ}}
__TOC__
  {{ سوره | نام =سوره طه | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::45|٤٥]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::20|٢٠]]  | آیه = [[تعداد آیات::135|١٣٥]] | بعدی = سوره الأنبياء | قبلی = سوره مريم | کلمه = [[تعداد کلمات::1510|١٥١٠]] | حرف =  }}
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|''' لیست آیات '''
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==متن سوره==
{{قاب | متن = [[ طه ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ طه (١) ]] }}
طه [:ای طاهر هادی!].
{{قاب | متن = [[ طه ٢ | ما أَنزَلنا عَلَيكَ القُرإنَ لِتَشقىٰ (٢) ]] }}
ما قرآن را بر تو نازل نکردیم تا به رنج افتی،
{{قاب | متن = [[ طه ٣ | إِلّا تَذكِرَةً لِمَن يَخشىٰ (٣) ]] }}
جز اینکه برای هر که (از خدا) می‌هراسد یادواره‌ای (بزرگ) باشد.
{{قاب | متن = [[ طه ٤ | تَنزيلًا مِمَّن خَلَقَ الأَرضَ وَ السَّمٰوٰتِ العُلَى (٤) ]] }}
در حالی که فرود آمده‌ای است به تدریج از جانب کسی که زمین و آسمان‌های بلند را آفریده است.
{{قاب | متن = [[ طه ٥ | الرَّحمٰنُ عَلَى العَرشِ استَوىٰ (٥) ]] }}
(خدای) رحمتگر بر آفریدگان بر عرش (ربوبیت ) چیره شده است.
{{قاب | متن = [[ طه ٦ | لَهُ ما فِى السَّمٰوٰتِ وَ ما فِى الأَرضِ وَ ما بَينَهُما وَ ما تَحتَ الثَّرىٰ (٦) ]] }}
آنچه در آسمان‌ها و آنچه در زمین و آنچه میان آن دو و آنچه زیر خاک است از اوست.
{{قاب | متن = [[ طه ٧ | وَ إِن تَجهَر بِالقَولِ فَإِنَّهُ يَعلَمُ السِّرَّ وَ أَخفَى (٧) ]] }}
و اگر سخن آشکار گویی پس او نهان و نهان‌تر را می‌داند.
{{قاب | متن = [[ طه ٨ | اللَّهُ لا إِلٰهَ إِلّا هُوَ لَهُ الأَسماءُ الحُسنىٰ (٨) ]] }}
خدایی که جز او معبودی نیست (و) نیکوترین نام‌ها (ونشانه‌ها) ویژه‌ی اوست.
{{قاب | متن = [[ طه ٩ | وَ هَل أَتىٰكَ حَديثُ موسىٰ (٩) ]] }}
و آیا گزارش (وحیانی) موسی تو را رسید؟
{{قاب | متن = [[ طه ١٠ | إِذ رَإ نارًا فَقالَ لِأَهلِهِ امكُثوا إِنّى إنَستُ نارًا لَعَلّى إتيكُم مِنها بِقَبَسٍ أَو أَجِدُ عَلَى النّارِ هُدًى (١٠) ]] }}
چون آتشی دید، پس به خانواده‌ی خود گفت: «درنگ کنید، همانا من با آتشی مأنوس شدم. امید که شعله‌ای از آن برایتان بیاورم یا در پرتو آتش راهی بیابم.»
{{قاب | متن = [[ طه ١١ | فَلَمّا أَتىٰها نودِىَ يٰموسىٰ (١١) ]] }}
پس چون بدان رسید ندا داده شد: «موسی!»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢ | إِنّى أَنا۠ رَبُّكَ فَاخلَع نَعلَيكَ إِنَّكَ بِالوادِ المُقَدَّسِ طُوًى (١٢) ]] }}
«بی‌گمان منم، من، پروردگارت، پس دو پای‌پوشت را برکن، که در حقیقت تو پیچیده در پوشش وادی مقدسی.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٣ | وَ أَنَا اختَرتُكَ فَاستَمِع لِما يوحىٰ (١٣) ]] }}
«و من تو را (برای خودم) برگزیدم. پس برای آنچه (به تو) وحی می‌شود گوش فرادار.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٤ | إِنَّنى أَنَا اللَّهُ لا إِلٰهَ إِلّا أَنا۠ فَاعبُدنى وَ أَقِمِ الصَّلوٰةَ لِذِكرى (١٤) ]] }}
«(این) منم، من، (همان) خدایی که جز من خدایی نیست. پس مرا بپرست و برای یادم نماز را بر پا بدار.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٥ | إِنَّ السّاعَةَ إتِيَةٌ أَكادُ أُخفيها لِتُجزىٰ كُلُّ نَفسٍ بِما تَسعىٰ (١٥) ]] }}
«به‌راستی ساعت [:قیامت] آمدنی است. نزدیک است آن را (بر خود هم) پوشیده دارم، تا هر کسی به (موجب) آنچه می‌کوشد جزا یابد.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٦ | فَلا يَصُدَّنَّكَ عَنها مَن لا يُؤمِنُ بِها وَ اتَّبَعَ هَوىٰهُ فَتَردىٰ (١٦) ]] }}
«پس هرگز نکند کسی که به آن ایمان ندارد و از هوس خویش پیروی کرده است، تو را از (ایمان به) آن باز دارد، پس سقوط کنی.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٧ | وَ ما تِلكَ بِيَمينِكَ يٰموسىٰ (١٧) ]] }}
«و ای موسی! این چیست در دست راستت؟»
{{قاب | متن = [[ طه ١٨ | قالَ هِىَ عَصاىَ أَتَوَكَّؤُا۟ عَلَيها وَ أَهُشُّ بِها عَلىٰ غَنَمى وَ لِىَ فيها مَـٔارِبُ أُخرىٰ (١٨) ]] }}
گفت: «این عصای من است. بر آن تکیه می‌دهم و با آن بر گوسفندانم (برگ) می‌تکانم، و در آن برای من نیازهای مهم دیگری (نیز) هست.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٩ | قالَ أَلقِها يٰموسىٰ (١٩) ]] }}
فرمود: «موسی! (هم) آن را بیفکن.»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٠ | فَأَلقىٰها فَإِذا هِىَ حَيَّةٌ تَسعىٰ (٢٠) ]] }}
پس آن را افکند. پس ناگهان، (هم)آن ماری شد که به سرعت می‌خزد.
{{قاب | متن = [[ طه ٢١ | قالَ خُذها وَ لا تَخَف سَنُعيدُها سيرَتَهَا الأولىٰ (٢١) ]] }}
فرمود: «آن را برگیر و مترس، به زودی آن را به حال واقعی نخستین‌(اش) باز می‌گردانیم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٢ | وَ اضمُم يَدَكَ إِلىٰ جَناحِكَ تَخرُج بَيضاءَ مِن غَيرِ سوءٍ إيَةً أُخرىٰ (٢٢) ]] }}
«و دست خود را به پهلویت ببر تا سپیدی بی‌گزند بر آید. حال آنکه (این) نشانه‌ای دیگر (بر رسالت تو) است،»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٣ | لِنُرِيَكَ مِن إيٰتِنَا الكُبرَى (٢٣) ]] }}
«برای اینکه به تو از بزرگ‌ترین نشانه‌های (چشمگیر)‌مان بنماییم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٤ | اذهَب إِلىٰ فِرعَونَ إِنَّهُ طَغىٰ (٢٤) ]] }}
«سوی فرعون برو که همواره او به سرکشی برخاسته است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٥ | قالَ رَبِّ اشرَح لى صَدرى (٢٥) ]] }}
گفت: «پروردگارم! سینه‌ام را گشاده گردان،»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٦ | وَ يَسِّر لى أَمرى (٢٦) ]] }}
«و کارم را برایم آسان گردان،»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٧ | وَ احلُل عُقدَةً مِن لِسانى (٢٧) ]] }}
«و از زبانم گرهی بگشای»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٨ | يَفقَهوا قَولى (٢٨) ]] }}
«تا سخنم را با بررسی بفهمند،»
{{قاب | متن = [[ طه ٢٩ | وَ اجعَل لى وَزيرًا مِن أَهلى (٢٩) ]] }}
«و برایم دستیاری از کسانم قرار ده:»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٠ | هٰرونَ أَخِى (٣٠) ]] }}
«هارون برادرم را.»
{{قاب | متن = [[ طه ٣١ | اشدُد بِهِ أَزرى (٣١) ]] }}
«پشتم را به او استوار گردان،»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٢ | وَ أَشرِكهُ فى أَمرى (٣٢) ]] }}
«و او را در کارم شریک کن،»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٣ | كَى نُسَبِّحَكَ كَثيرًا (٣٣) ]] }}
«تا تو را فراوان تسبیح کنیم،»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٤ | وَ نَذكُرَكَ كَثيرًا (٣٤) ]] }}
«و بسیار تو را یاد کنیم،»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٥ | إِنَّكَ كُنتَ بِنا بَصيرًا (٣٥) ]] }}
«بی‌گمان تو همواره به (حال) ما بسی بینا بوده‌ای.»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٦ | قالَ قَد أوتيتَ سُؤلَكَ يٰموسىٰ (٣٦) ]] }}
فرمود: «موسی! به‌راستی خواسته‌ات به تو داده شد.»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٧ | وَ لَقَد مَنَنّا عَلَيكَ مَرَّةً أُخرىٰ (٣٧) ]] }}
«و همواره به‌راستی بار دیگر (هم) بر تو منت نهادیم،»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٨ | إِذ أَوحَينا إِلىٰ أُمِّكَ ما يوحىٰ (٣٨) ]] }}
«چون به مادرت آنچه را که وحی می‌شود وحی کردیم:»
{{قاب | متن = [[ طه ٣٩ | أَنِ اقذِفيهِ فِى التّابوتِ فَاقذِفيهِ فِى اليَمِّ فَليُلقِهِ اليَمُّ بِالسّاحِلِ يَأخُذهُ عَدُوٌّ لى وَ عَدُوٌّ لَهُ وَ أَلقَيتُ عَلَيكَ مَحَبَّةً مِنّى وَ لِتُصنَعَ عَلىٰ عَينى (٣٩) ]] }}
«که او را در صندوق بیفکن، پس در دریایش بینداز. پس (آنگاه) دریا بایستی او را به کرانه و کناره افکند تا دشمنی برای من و دشمنی برای وی، او را برگیرد. و مهری (بزرگ) از خودم بر تو افکندم. و تا زیر نظر من سازمان (و سامان) یابی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٠ | إِذ تَمشى أُختُكَ فَتَقولُ هَل أَدُلُّكُم عَلىٰ مَن يَكفُلُهُ فَرَجَعنٰكَ إِلىٰ أُمِّكَ كَى تَقَرَّ عَينُها وَ لا تَحزَنَ وَ قَتَلتَ نَفسًا فَنَجَّينٰكَ مِنَ الغَمِّ وَ فَتَنّٰكَ فُتونًا فَلَبِثتَ سِنينَ فى أَهلِ مَديَنَ ثُمَّ جِئتَ عَلىٰ قَدَرٍ يٰموسىٰ (٤٠) ]] }}
«چون خواهرت می‌رود پس می‌گوید: آیا شما را بر کسی که او را کفالت کند دلالت کنم‌؟ پس تو را سوی مادرت بازگردانیدیم تا دیده‌اش (با دیدار تو) روشن شود و غم نخورد. و شخصی را کُشتی. پس (ما) تو را از اندوه رهانیدیم، و تو را بارها (به) آزمایش‌هایی آتشبار آزمودیم. پس سالیانی چند در میان اهل مَدْیَن ماندی. سپس، موسی! بر (زمانی) مقدر (و مقتضی برای رسالت) آمدی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤١ | وَ اصطَنَعتُكَ لِنَفسِى (٤١) ]] }}
«و تو را برای خود به شایستگی همی ساختم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٢ | اذهَب أَنتَ وَ أَخوكَ بِـٔايٰتى وَ لا تَنِيا فى ذِكرِى (٤٢) ]] }}
«تو و برادرت با نشانه‌های (رسالتی) من برو، و در یاد کردن من سستی مکنید.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٣ | اذهَبا إِلىٰ فِرعَونَ إِنَّهُ طَغىٰ (٤٣) ]] }}
«سوی فرعون بروید که او همواره به سرکشی برخاسته‌.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٤ | فَقولا لَهُ قَولًا لَيِّنًا لَعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَو يَخشىٰ (٤٤) ]] }}
«پس برایش سخنی نرم بگویید، شاید تذکر یابد یا بهراسد.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٥ | قالا رَبَّنا إِنَّنا نَخافُ أَن يَفرُطَ عَلَينا أَو أَن يَطغىٰ (٤٥) ]] }}
(آن دو) گفتند: «پروردگارمان! ما بی‌گمان می‌ترسیم که (او) در زیان رساندن بر ما زیاده‌روی کند یا که سرکشی نماید.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٦ | قالَ لا تَخافا إِنَّنى مَعَكُما أَسمَعُ وَ أَرىٰ (٤٦) ]] }}
فرمود: «مترسید. من همواره با شمایم، می‌شنوم و می‌بینم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٧ | فَأتِياهُ فَقولا إِنّا رَسولا رَبِّكَ فَأَرسِل مَعَنا بَنى إِسرٰءيلَ وَ لا تُعَذِّبهُم قَد جِئنٰكَ بِـٔايَةٍ مِن رَبِّكَ وَ السَّلٰمُ عَلىٰ مَنِ اتَّبَعَ الهُدىٰ (٤٧) ]] }}
«پس سوی او بروید و بگویید: “ما به‌راستی دو فرستاده‌ی پروردگار توایم. پس فرزندان اسرائیل را با ما بفرست و عذابشان مکن. به‌راستی ما برای تو از جانب پروردگارت نشانه‌ای (رسالتی)آورده‌ایم، و سلام (و سلامتی) بر کسی است که هدایت را پیروی کند.”»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٨ | إِنّا قَد أوحِىَ إِلَينا أَنَّ العَذابَ عَلىٰ مَن كَذَّبَ وَ تَوَلّىٰ (٤٨) ]] }}
«به‌راستی سوی ما وحی شده که عذاب محققاً بر کسی است که (حق را) تکذیب کرد و (از آن) روی گردانید.»
{{قاب | متن = [[ طه ٤٩ | قالَ فَمَن رَبُّكُما يٰموسىٰ (٤٩) ]] }}
(فرعون) گفت: «موسی! پس پروردگار شما دوتن کیست‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٥٠ | قالَ رَبُّنَا الَّذى أَعطىٰ كُلَّ شَيءٍ خَلقَهُ ثُمَّ هَدىٰ (٥٠) ]] }}
گفت: «پروردگار ما کسی است که آفرینش هر چیزی را بدو بخشود؛ سپس (آن را) هدایت فرمود. »
{{قاب | متن = [[ طه ٥١ | قالَ فَما بالُ القُرونِ الأولىٰ (٥١) ]] }}
گفت: «پس نسل‌های گذشته را چه خاطره‌ی مهمی بود (که کافر بوده‌ا‌ند)؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٥٢ | قالَ عِلمُها عِندَ رَبّى فى كِتٰبٍ لا يَضِلُّ رَبّى وَ لا يَنسَى (٥٢) ]] }}
گفت: «علمش در کتابی (ربانی) نزد پروردگار من است. پروردگارم نه گمراه می‌شود و نه فراموش می‌کند.»
{{قاب | متن = [[ طه ٥٣ | الَّذى جَعَلَ لَكُمُ الأَرضَ مَهدًا وَ سَلَكَ لَكُم فيها سُبُلًا وَ أَنزَلَ مِنَ السَّماءِ ماءً فَأَخرَجنا بِهِ أَزوٰجًا مِن نَباتٍ شَتّىٰ (٥٣) ]] }}
(همان) کسی که زمین را برایتان گهواره‌ای ساخت و برای شما در آن راه‌هایی (راهوار) گشود و از آسمان آبی فرود آورد. پس با آن رستنی‌های گوناگون، بیرون آوردیم.
{{قاب | متن = [[ طه ٥٤ | كُلوا وَ ارعَوا أَنعٰمَكُم إِنَّ فى ذٰلِكَ لَإيٰتٍ لِأُولِى النُّهىٰ (٥٤) ]] }}
بخورید و دام‌هایتان را بچرانید. بی‌گمان در اینها برای بازدارندگان عاقلانه از زشتی‌ها، نشانه‌هایی است.
{{قاب | متن = [[ طه ٥٥ | مِنها خَلَقنٰكُم وَ فيها نُعيدُكُم وَ مِنها نُخرِجُكُم تارَةً أُخرىٰ (٥٥) ]] }}
از این (زمین) شما را آفریدیم و در آن شما را باز می‌گردانیم و بار دیگر شما را از آن بیرون می‌آوریم.
{{قاب | متن = [[ طه ٥٦ | وَ لَقَد أَرَينٰهُ إيٰتِنا كُلَّها فَكَذَّبَ وَ أَبىٰ (٥٦) ]] }}
و بی‌چون به‌راستی (ما) همه‌ی آیات (متناسب)مان را به او [:فرعون] نشان دادیم، پس (آنها را) تکذیب نمود و (از پذیرفتنشان) خودداری کرد.
{{قاب | متن = [[ طه ٥٧ | قالَ أَجِئتَنا لِتُخرِجَنا مِن أَرضِنا بِسِحرِكَ يٰموسىٰ (٥٧) ]] }}
گفت: «موسی! آیا نزد ما آمده‌ای تا با سحرت ما را از سرزمینمان بیرون برانی‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٥٨ | فَلَنَأتِيَنَّكَ بِسِحرٍ مِثلِهِ فَاجعَل بَينَنا وَ بَينَكَ مَوعِدًا لا نُخلِفُهُ نَحنُ وَ لا أَنتَ مَكانًا سُوًى (٥٨) ]] }}
پس ما همانا برای تو به‌راستی سحری همانند آن خواهیم آورد. پس میان ما و خودت موعدی بگذار که نه ما از آن تخلف کنیم، و نه تو: در مکانی برابر و یکسان.»
{{قاب | متن = [[ طه ٥٩ | قالَ مَوعِدُكُم يَومُ الزّينَةِ وَ أَن يُحشَرَ النّاسُ ضُحًى (٥٩) ]] }}
(موسی) گفت: «موعد شما روز آرایش (و جشن) عمومی است، و اینکه مردم در روشنایی روز گردآورده شوند.»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٠ | فَتَوَلّىٰ فِرعَونُ فَجَمَعَ كَيدَهُ ثُمَّ أَتىٰ (٦٠) ]] }}
پس فرعون پشت کرد. پس نیرنگ خود را گرد آورد. سپس (باز) آمد.
{{قاب | متن = [[ طه ٦١ | قالَ لَهُم موسىٰ وَيلَكُم لا تَفتَروا عَلَى اللَّهِ كَذِبًا فَيُسحِتَكُم بِعَذابٍ وَ قَد خابَ مَنِ افتَرىٰ (٦١) ]] }}
موسی به آنان گفت: «وای بر شما! به خدا دروغ نبندید که شما را به عذابی سخت از بن برمی‌کند. و هر که (به خدا) افترا زد بی‌گمان زیان کرده است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٢ | فَتَنٰزَعوا أَمرَهُم بَينَهُم وَ أَسَرُّوا النَّجوىٰ (٦٢) ]] }}
پس ساحران میان خود، درباره‌ی کارشان به تبادل رأی برخاستند و نجوا(شان) را پنهان کردند.
{{قاب | متن = [[ طه ٦٣ | قالوا إِن هٰذٰنِ لَسٰحِرٰنِ يُريدانِ أَن يُخرِجاكُم مِن أَرضِكُم بِسِحرِهِما وَ يَذهَبا بِطَريقَتِكُمُ المُثلىٰ (٦٣) ]] }}
(فرعونیان) گفتند: «قطعاً این دو تن ساحرند، (و) می‌خواهند شما را با سحرشان از سرزمینتان بیرون برانند و والاترین راهتان را (از میانتان) بردارند.»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٤ | فَأَجمِعوا كَيدَكُم ثُمَّ ائتوا صَفًّا وَ قَد أَفلَحَ اليَومَ مَنِ استَعلىٰ (٦٤) ]] }}
«پس نیرنگتان را گرد آورید، سپس در صفی (پیراسته و آراسته) پیش آیید. حال آنکه به‌راستی امروز هر کس پیروزی جست (همو) رستگار کرده است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٥ | قالوا يٰموسىٰ إِمّا أَن تُلقِىَ وَ إِمّا أَن نَكونَ أَوَّلَ مَن أَلقىٰ (٦٥) ]] }}
(ساحران) گفتند: «موسی! یا اینکه تو می‌افکنی یا (ما) نخستین کس باشیم که افکنده است‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٦ | قالَ بَل أَلقوا فَإِذا حِبالُهُم وَ عِصِيُّهُم يُخَيَّلُ إِلَيهِ مِن سِحرِهِم أَنَّها تَسعىٰ (٦٦) ]] }}
گفت: « (نه،) بلکه شما بیفکنید.» پس ناگهان ریسمان‌ها و چوب‌دستی‌هایشان از (اثر) سحرشان، در خیال او (چنان) می‌نمود که به‌راستی آنها می‌‌شتابند.
{{قاب | متن = [[ طه ٦٧ | فَأَوجَسَ فى نَفسِهِ خيفَةً موسىٰ (٦٧) ]] }}
پس موسی در درونش بیمی احساس کرد .
{{قاب | متن = [[ طه ٦٨ | قُلنا لا تَخَف إِنَّكَ أَنتَ الأَعلىٰ (٦٨) ]] }}
گفتیم: «مترس، تو بی‌گمان خود (از اینان) برتری،»
{{قاب | متن = [[ طه ٦٩ | وَ أَلقِ ما فى يَمينِكَ تَلقَف ما صَنَعوا إِنَّما صَنَعوا كَيدُ سٰحِرٍ وَ لا يُفلِحُ السّاحِرُ حَيثُ أَتىٰ (٦٩) ]] }}
«و آنچه در دست راستت داری بیفکن تا هر چه را ساختند با چالاکی ببلعد. آنچه ساختند تنها مکر افسونگر است، و افسونگر هر جا (و هرگونه) آید رستگار نمی‌کند.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧٠ | فَأُلقِىَ السَّحَرَةُ سُجَّدًا قالوا إمَنّا بِرَبِّ هٰرونَ وَ موسىٰ (٧٠) ]] }}
پس ساحران (بی‌اختیار و بی‌قرار) به سجده افکنده شدند.گفتند: «به پروردگار هارون و موسی ایمان آوردیم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧١ | قالَ إمَنتُم لَهُ قَبلَ أَن إذَنَ لَكُم إِنَّهُ لَكَبيرُكُمُ الَّذى عَلَّمَكُمُ السِّحرَ فَلَأُقَطِّعَنَّ أَيدِيَكُم وَ أَرجُلَكُم مِن خِلٰفٍ وَ لَأُصَلِّبَنَّكُم فى جُذوعِ النَّخلِ وَ لَتَعلَمُنَّ أَيُّنا أَشَدُّ عَذابًا وَ أَبقىٰ (٧١) ]] }}
(فرعون) گفت: «آیا پیش از آنکه برایتان اجازه دهم به او ایمان آوردید؟ به‌راستی او بزرگِ شماست که به شما سحر آموخته. پس بی‌مهابا دست‌هایتان و پاهایتان را -بی‌چون- بر خلاف (یکدیگر) قطع می‌کنم، و شما را بی‌امان همچنان در شاخسارهای درختان خرما به دار می‌آویزم و همواره به راستی خواهید دانست کدامین (از) ما عذابش سخت‌تر و پایدارتر است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧٢ | قالوا لَن نُؤثِرَكَ عَلىٰ ما جاءَنا مِنَ البَيِّنٰتِ وَ الَّذى فَطَرَنا فَاقضِ ما أَنتَ قاضٍ إِنَّما تَقضى هٰذِهِ الحَيوٰةَ الدُّنيا (٧٢) ]] }}
گفتند: «ما هرگز تو را بر نشانه‌های روشنی که سویمان آمده و (بر) آن کس که ما را (با فطرت توحیدی) پدید آورده است، ترجیح نخواهیم داد. پس تو هر حکمی (که) می‌خواهی بکن؛ تنها (در این) زندگی دنیاست که (در آن) حکم می‌رانی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧٣ | إِنّا إمَنّا بِرَبِّنا لِيَغفِرَ لَنا خَطٰيٰنا وَ ما أَكرَهتَنا عَلَيهِ مِنَ السِّحرِ وَ اللَّهُ خَيرٌ وَ أَبقىٰ (٧٣) ]] }}
«ما به‌راستی به پروردگارمان ایمان آوردیم تا خطاهایمان را- و آن سحری که ما را بدان واداشتی- بر ما بپوشاند. و خدا بهتر و پاینده‌تر است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧٤ | إِنَّهُ مَن يَأتِ رَبَّهُ مُجرِمًا فَإِنَّ لَهُ جَهَنَّمَ لا يَموتُ فيها وَ لا يَحيىٰ (٧٤) ]] }}
حال چنان است (که) بی‌چون هر کس نزد پروردگارش گنهکار آید، بی‌گمان جهنم برای اوست. در آن نه می‌میرد و نه زندگی می‌کند.
{{قاب | متن = [[ طه ٧٥ | وَ مَن يَأتِهِ مُؤمِنًا قَد عَمِلَ الصّٰلِحٰتِ فَأُولٰئِكَ لَهُمُ الدَّرَجٰتُ العُلىٰ (٧٥) ]] }}
و هر کس به حال ایمان نزدش آید که به‌راستی کارهای شایسته‌(ی ایمان) انجام داده باشد، ایشان برایشان عالی‌ترین درجات است.
{{قاب | متن = [[ طه ٧٦ | جَنّٰتُ عَدنٍ تَجرى مِن تَحتِهَا الأَنهٰرُ خٰلِدينَ فيها وَ ذٰلِكَ جَزاءُ مَن تَزَكّىٰ (٧٦) ]] }}
باغ‌های پای‌برجا که از زیر (درختان)شان نهرها روان است، (جایی است که) جاودانه در آن می‌مانند، و این پاداش کسی است که به پاکی گراید.
{{قاب | متن = [[ طه ٧٧ | وَ لَقَد أَوحَينا إِلىٰ موسىٰ أَن أَسرِ بِعِبادى فَاضرِب لَهُم طَريقًا فِى البَحرِ يَبَسًا لا تَخٰفُ دَرَكًا وَ لا تَخشىٰ (٧٧) ]] }}
و به‌راستی و درستی سوی موسی وحی کردیم که: « بندگانم را شبانه کوچ ده، پس راهی خشک در دریا برایشان (با عصایت) برزن (حال آنکه) نه از فرا رسیدن (دشمن) بترسی و نه از غرق شدن، و نه بیمی داشته باشی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٧٨ | فَأَتبَعَهُم فِرعَونُ بِجُنودِهِ فَغَشِيَهُم مِنَ اليَمِّ ما غَشِيَهُم (٧٨) ]] }}
پس فرعون با لشکریانش آنها را پی گرفت. پس، از دریا آنچه آنان را فرو پوشانید، فرو پوشانیدشان.
{{قاب | متن = [[ طه ٧٩ | وَ أَضَلَّ فِرعَونُ قَومَهُ وَ ما هَدىٰ (٧٩) ]] }}
و فرعون قوم خود را گمراه کرد و هدایت نکرد.
{{قاب | متن = [[ طه ٨٠ | يٰبَنى إِسرٰءيلَ قَد أَنجَينٰكُم مِن عَدُوِّكُم وَ وٰعَدنٰكُم جانِبَ الطّورِ الأَيمَنَ وَ نَزَّلنا عَلَيكُمُ المَنَّ وَ السَّلوىٰ (٨٠) ]] }}
«فرزندان اسرائیل! ما بی‌گمان شما را از (دست) دشمنتان رهانیدیم. و در پربرکت‌ترین جانب (کوه) طور با شما وعده نهادیم. و بر شما ترنجبین و امنیت فرو فرستادیم.»
{{قاب | متن = [[ طه ٨١ | كُلوا مِن طَيِّبٰتِ ما رَزَقنٰكُم وَ لا تَطغَوا فيهِ فَيَحِلَّ عَلَيكُم غَضَبى وَ مَن يَحلِل عَلَيهِ غَضَبى فَقَد هَوىٰ (٨١) ]] }}
«(و گفتیم) از خوراکی‌های پاکیزه‌ای که روزیتان دادیم بخورید، و در آن طغیان نکنید که خشم من بر شما فرود آید. و هرکس خشم من بر او فرود آید بی‌چون سقوط کرده است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٢ | وَ إِنّى لَغَفّارٌ لِمَن تابَ وَ إمَنَ وَ عَمِلَ صٰلِحًا ثُمَّ اهتَدىٰ (٨٢) ]] }}
و من بی‌گمان برا‌ی کسی که توبه کرده و ایمان آورده و کاری شایسته(ی‌ایمان) انجام داده، سپس راه یافته؛ به‌درستی بسی پوشاننده‌ام.
{{قاب | متن = [[ طه ٨٣ | وَ ما أَعجَلَكَ عَن قَومِكَ يٰموسىٰ (٨٣) ]] }}
«موسی! چه چیز تورا از (برابر) قومت (سوی طور) شتابان کرد؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٤ | قالَ هُم أُولاءِ عَلىٰ أَثَرى وَ عَجِلتُ إِلَيكَ رَبِّ لِتَرضىٰ (٨٤) ]] }}
گفت: «هم اینان بر پی من‌اند، و - پروردگارم!- سویت شتافتم تا (از من) خشنود شوی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٥ | قالَ فَإِنّا قَد فَتَنّا قَومَكَ مِن بَعدِكَ وَ أَضَلَّهُمُ السّامِرِىُّ (٨٥) ]] }}
فرمود: «پس ما به‌راستی و درستی قوم تو را پس از (عزیمت) تو آزمایشی آتشبار کردیم، و سامری آنها را گمراه ساخت.»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٦ | فَرَجَعَ موسىٰ إِلىٰ قَومِهِ غَضبٰنَ أَسِفًا قالَ يٰقَومِ أَلَم يَعِدكُم رَبُّكُم وَعدًا حَسَنًا أَفَطالَ عَلَيكُمُ العَهدُ أَم أَرَدتُم أَن يَحِلَّ عَلَيكُم غَضَبٌ مِن رَبِّكُم فَأَخلَفتُم مَوعِدى (٨٦) ]] }}
پس موسی خشمگین (و) اندوهناک سوی قومش بازگشت (و) گفت: «ای قوم من! آیا پروردگارتان به شما وعده‌ای نیکو نداد؟ آیا پس این مدت بر شما طولانی بود، یا خواستید خشمی از پروردگارتان بر شما درآید، پس با وعده‌ی من مخالفت کردید؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٧ | قالوا ما أَخلَفنا مَوعِدَكَ بِمَلكِنا وَ لٰكِنّا حُمِّلنا أَوزارًا مِن زينَةِ القَومِ فَقَذَفنٰها فَكَذٰلِكَ أَلقَى السّامِرِىُّ (٨٧) ]] }}
گفتند: «ما به اختیار خود از وعده‌‌ات تخلف نکردیم، ولی از زینت‌آلات قوم، بارهایی سنگین همواره بر دوشمان نهاده شد. پس آنها را افکندیم. پس سامری (هم زینت‌آلاتش را) همین گونه بیفکند.»
{{قاب | متن = [[ طه ٨٨ | فَأَخرَجَ لَهُم عِجلًا جَسَدًا لَهُ خُوارٌ فَقالوا هٰذا إِلٰهُكُم وَ إِلٰهُ موسىٰ فَنَسِىَ (٨٨) ]] }}
پس برایشان پیکر گوساله‌ای که صدای گوساله داشت بیرون آورد. پس (او و پیروانش) گفتند: «این خدای شما و خدای موسی است.» پس (خدا را) فراموش کرد.
{{قاب | متن = [[ طه ٨٩ | أَفَلا يَرَونَ أَلّا يَرجِعُ إِلَيهِم قَولًا وَ لا يَملِكُ لَهُم ضَرًّا وَ لا نَفعًا (٨٩) ]] }}
پس مگر نمی‌بینند که (گوساله) سخنی فرا سویشان بر نمی‌گرداند، و برایشان سود و زیانی ندارد؟
{{قاب | متن = [[ طه ٩٠ | وَ لَقَد قالَ لَهُم هٰرونُ مِن قَبلُ يٰقَومِ إِنَّما فُتِنتُم بِهِ وَ إِنَّ رَبَّكُمُ الرَّحمٰنُ فَاتَّبِعونى وَ أَطيعوا أَمرى (٩٠) ]] }}
و به‌راستی بی‌گمان هارون از پیش به آنان گفت: «ای قوم من! جز این نیست (که) شما به وسیله‌ی این (گوساله) مورد آزمایشی آتشین قرار گرفته‌اید، و پروردگارتان به‌راستی خدای رحمتگر بر آفریدگان است، پس از پی من آیید و فرمانم را پیروی کنید.
{{قاب | متن = [[ طه ٩١ | قالوا لَن نَبرَحَ عَلَيهِ عٰكِفينَ حَتّىٰ يَرجِعَ إِلَينا موسىٰ (٩١) ]] }}
گفتند: «ما هرگز در پرستشی ماندگار از آن دست برنخواهیم داشت، تا موسی سوی ما بازگردد.»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٢ | قالَ يٰهٰرونُ ما مَنَعَكَ إِذ رَأَيتَهُم ضَلّوا (٩٢) ]] }}
(موسی) گفت: «هارون! چون دیدی آنها گمراه شدند چه چیز مانع تو شد،»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٣ | أَلّا تَتَّبِعَنِ أَفَعَصَيتَ أَمرى (٩٣) ]] }}
«که از من پیروی نکنی‌؟ آیا از فرمانم سر باز زدی‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٤ | قالَ يَبنَؤُمَّ لا تَأخُذ بِلِحيَتى وَ لا بِرَأسى إِنّى خَشيتُ أَن تَقولَ فَرَّقتَ بَينَ بَنى إِسرٰءيلَ وَ لَم تَرقُب قَولى (٩٤) ]] }}
گفت: «پسر مادرم! نه ریش مرا بگیر و نه سرم را، من به‌راستی ترسیدم که بگویی میان بنی‌اسرائیل تفرقه انداختی، و سخنم را مراقبت نکردی.»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٥ | قالَ فَما خَطبُكَ يٰسٰمِرِىُّ (٩٥) ]] }}
(موسی) گفت: «سامری! پس هدف مهم تو (از این کار) چه بود؟»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٦ | قالَ بَصُرتُ بِما لَم يَبصُروا بِهِ فَقَبَضتُ قَبضَةً مِن أَثَرِ الرَّسولِ فَنَبَذتُها وَ كَذٰلِكَ سَوَّلَت لى نَفسى (٩٦) ]] }}
گفت: «به چیزی که آنان به آن پی نبردند پی بردم، پس مشتی از اثر (رسالتی آن) رسول [:موسی] برگرفتم، سپس آن را فرو انداختم (که حق را به چهره‌ی باطل نمودم و با این آنان را از توحید به شرک افکندم) و نفس اماره‌ام برایم اینچنین فریبکاری کرد.»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٧ | قالَ فَاذهَب فَإِنَّ لَكَ فِى الحَيوٰةِ أَن تَقولَ لا مِساسَ وَ إِنَّ لَكَ مَوعِدًا لَن تُخلَفَهُ وَ انظُر إِلىٰ إِلٰهِكَ الَّذى ظَلتَ عَلَيهِ عاكِفًا لَنُحَرِّقَنَّهُ ثُمَّ لَنَنسِفَنَّهُ فِى اليَمِّ نَسفًا (٩٧) ]] }}
گفت: «پس برو که بهره‌ی تو بی‌گمان در زندگی این باشد که (به هر که نزدیک تو آمد) بگویی (با من) هیچ‌گونه تماسی نیست.” و بی‌گمان برایت وعده‌گاهی است که هرگز از آن بازداشته نخواهی شد. و (اینک) به آن خدایی که پیوسته برایش سر فرود آوردی بنگر. همانا آن را به شدت همی سوزانیم، سپس همانا به خاکسترش همواره تبدیل می‌کنیم، پس آن‌گاه در دریا غباروار فرو می‌پاشیم، فرو پاشیدنی (چشمگیر)
{{قاب | متن = [[ طه ٩٨ | إِنَّما إِلٰهُكُمُ اللَّهُ الَّذى لا إِلٰهَ إِلّا هُوَ وَسِعَ كُلَّ شَيءٍ عِلمًا (٩٨) ]] }}
«معبود شما تنها (آن) خدایی است که جز او هرگز معبودی نیست. و علمش همه چیز را در برگرفته است.»
{{قاب | متن = [[ طه ٩٩ | كَذٰلِكَ نَقُصُّ عَلَيكَ مِن أَنباءِ ما قَد سَبَقَ وَ قَد إتَينٰكَ مِن لَدُنّا ذِكرًا (٩٩) ]] }}
این گونه (ما) از اخبار مهم گذشته، بر تو گزینش می‌کنیم، و بی‌گمان تو را از جانب خودمان یادواره‌ای (روشنگر) دادیم.
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٠ | مَن أَعرَضَ عَنهُ فَإِنَّهُ يَحمِلُ يَومَ القِيٰمَةِ وِزرًا (١٠٠) ]] }}
هر کس از (پیروی) آن روی گرداند، او بی‌گمان روز قیامت باری گران بر دوش می‌گیرد.
{{قاب | متن = [[ طه ١٠١ | خٰلِدينَ فيهِ وَ ساءَ لَهُم يَومَ القِيٰمَةِ حِملًا (١٠١) ]] }}
حال آنکه در آن ماندگارند و روز رستاخیز چه بد باری است برایشان.
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٢ | يَومَ يُنفَخُ فِى الصّورِ وَ نَحشُرُ المُجرِمينَ يَومَئِذٍ زُرقًا (١٠٢) ]] }}
(همان) روزی که در صور [:بوق جان‌افزا] دمیده می‌شود و در آن روز مجرمان را کبودچشم - بدون برگشت- گردآوری می‌کنیم.
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٣ | يَتَخٰفَتونَ بَينَهُم إِن لَبِثتُم إِلّا عَشرًا (١٠٣) ]] }}
میان خود، پنهانی با یکدیگر می‌گویند: «پیش از این (در برزخ) بیش از ده روز نمانده‌اید.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٤ | نَحنُ أَعلَمُ بِما يَقولونَ إِذ يَقولُ أَمثَلُهُم طَريقَةً إِن لَبِثتُم إِلّا يَومًا (١٠٤) ]] }}
ما به آنچه می‌گویند داناتریم. چون شایسته‌ترین (و) راهوارترینشان می‌گوید: «بیش از یک روز نمانده‌اید.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٥ | وَ يَسـَٔلونَكَ عَنِ الجِبالِ فَقُل يَنسِفُها رَبّى نَسفًا (١٠٥) ]] }}
و از تو درباره‌ی کوه‌ها می‌پرسند. پس بگو: «پروردگارم آنها را (در قیامت) غباری سخت پراکنده خواهد ساخت،»
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٦ | فَيَذَرُها قاعًا صَفصَفًا (١٠٦) ]] }}
«پس آنها را پهن و هموار و تهی از گیاه (و تباه) خواهد کرد،»
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٧ | لا تَرىٰ فيها عِوَجًا وَ لا أَمتًا (١٠٧) ]] }}
«نه در آن کژی می‌بینی و نه ناهمواری.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٨ | يَومَئِذٍ يَتَّبِعونَ الدّاعِىَ لا عِوَجَ لَهُ وَ خَشَعَتِ الأَصواتُ لِلرَّحمٰنِ فَلا تَسمَعُ إِلّا هَمسًا (١٠٨) ]] }}
در چنان روزی (همه‌ی مردم) داعی (حق) را - که هیچ انحرافی برایش نیست - (خواه ناخواه) پیروی می‌کنند. و کل صداها برای (خدای) رحمان فرو کاسته بوده. پس هرگز جز صدایی آهسته نمی‌شنوی.
{{قاب | متن = [[ طه ١٠٩ | يَومَئِذٍ لا تَنفَعُ الشَّفٰعَةُ إِلّا مَن أَذِنَ لَهُ الرَّحمٰنُ وَ رَضِىَ لَهُ قَولًا (١٠٩) ]] }}
در آن هنگام (و هنگامه)، هیچ‌گونه شفاعتی سود نبخشد، مگر کسی را که (خدای) رحمان اجازه داده و سخنش خدا را پسند آمده.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٠ | يَعلَمُ ما بَينَ أَيديهِم وَ ما خَلفَهُم وَ لا يُحيطونَ بِهِ عِلمًا (١١٠) ]] }}
آنچه را که آنان در پیش دارند و آنچه را در پشت (سر)شان دارند می‌داند، و(آنان) هیچ‌گونه احاطه‌ی علمی به او ندارند.
{{قاب | متن = [[ طه ١١١ | وَ عَنَتِ الوُجوهُ لِلحَىِّ القَيّومِ وَ قَد خابَ مَن حَمَلَ ظُلمًا (١١١) ]] }}
و همه‌ی چهره‌ها برای آن (خدای) زنده‌ی پاینده‌ی نگهدارنده توجه کردند، حال آنکه بی‌چون آن کس که ظلمی بر دوش داشته زیان کرده است.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٢ | وَ مَن يَعمَل مِنَ الصّٰلِحٰتِ وَ هُوَ مُؤمِنٌ فَلا يَخافُ ظُلمًا وَ لا هَضمًا (١١٢) ]] }}
و هر کس در حال ایمان کارهای شایسته کند از هیچ ستمی و نه از هیچ کم و کاستی نمی‌هراسد.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٣ | وَ كَذٰلِكَ أَنزَلنٰهُ قُرإنًا عَرَبِيًّا وَ صَرَّفنا فيهِ مِنَ الوَعيدِ لَعَلَّهُم يَتَّقونَ أَو يُحدِثُ لَهُم ذِكرًا (١١٣) ]] }}
و این‌گونه آن را (به صورت) قرآنی (بس) روشن نازل کردیم، و در آن از انواع هشدارها (سخن) آوردیم (تا) شاید آنان تقوا پیشه کنند یا (این کتاب) یاد تازه‌ای برایشان ایجاد کند.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٤ | فَتَعٰلَى اللَّهُ المَلِكُ الحَقُّ وَ لا تَعجَل بِالقُرإنِ مِن قَبلِ أَن يُقضىٰ إِلَيكَ وَحيُهُ وَ قُل رَبِّ زِدنى عِلمًا (١١٤) ]] }}
پس بسی بلندمرتبه است خدا، (آن) فرمانروای (تمام) حق (و حقیقت). و در (خواندن) قرآن- پیش از آنکه وحی آن فراسویت حکم شود (و در رسد)- شتاب مکن، و بگو: «پروردگارم! بر دانشم بیفزای‌.»
{{قاب | متن = [[ طه ١١٥ | وَ لَقَد عَهِدنا إِلىٰ إدَمَ مِن قَبلُ فَنَسِىَ وَ لَم نَجِد لَهُ عَزمًا (١١٥) ]] }}
و همانا به‌راستی پیش از این سوی آدم پیمان بستیم. پس (آن را) فراموش کرد، و برای او عزمی (استوار) نیافتیم.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٦ | وَ إِذ قُلنا لِلمَلٰئِكَةِ اسجُدوا لِإدَمَ فَسَجَدوا إِلّا إِبليسَ أَبىٰ (١١٦) ]] }}
و چون به فرشتگان گفتیم: «برای آدم سجده کنید.» پس (همه) سجده کردند جز ابلیس (که) سر باز زد.
{{قاب | متن = [[ طه ١١٧ | فَقُلنا يٰـٔادَمُ إِنَّ هٰذا عَدُوٌّ لَكَ وَ لِزَوجِكَ فَلا يُخرِجَنَّكُما مِنَ الجَنَّةِ فَتَشقىٰ (١١٧) ]] }}
پس گفتیم: «آدم! بی‌چون این (ابلیس) برای تو و همسرت دشمنی (خطرناک) است. زنهار تا شما را از (این) باغ بی‌چون به در نکند، پس به زحمت افتی،»
{{قاب | متن = [[ طه ١١٨ | إِنَّ لَكَ أَلّا تَجوعَ فيها وَ لا تَعرىٰ (١١٨) ]] }}
«به‌راستی برای تو در آنجا این (امتیاز) است که نه گرسنه می‌شوی و نه برهنه می‌مانی.»
{{قاب | متن = [[ طه ١١٩ | وَ أَنَّكَ لا تَظمَؤُا۟ فيها وَ لا تَضحىٰ (١١٩) ]] }}
«و (هم) اینکه به‌راستی در آن‌جا نه تشنه می‌گردی و نه آفتاب‌زده می‌شوی.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٠ | فَوَسوَسَ إِلَيهِ الشَّيطٰنُ قالَ يٰـٔادَمُ هَل أَدُلُّكَ عَلىٰ شَجَرَةِ الخُلدِ وَ مُلكٍ لا يَبلىٰ (١٢٠) ]] }}
پس شیطان سویش وسوسه افکند. گفت: «آدم! آیا تو را بر درخت جاودانگی و مُلکی کهنه‌ناشدنی راه بنمایم‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢١ | فَأَكَلا مِنها فَبَدَت لَهُما سَوءٰتُهُما وَ طَفِقا يَخصِفانِ عَلَيهِما مِن وَرَقِ الجَنَّةِ وَ عَصىٰ إدَمُ رَبَّهُ فَغَوىٰ (١٢١) ]] }}
پس از آن (درخت ممنوع) خوردند. در نتیجه عورت‌هاشان برایشان نمایان شد و شروع کردند به چسباندن برگ‌های بهشتی بر خودشان. و (این گونه) آدم پروردگارش را عصیان کرد، پس گمراه شد.
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٢ | ثُمَّ اجتَبٰهُ رَبُّهُ فَتابَ عَلَيهِ وَ هَدىٰ (١٢٢) ]] }}
سپس پروردگارش او را برگزید. پس بر او برگشت و (وی را به رسالت) هدایت کرد.
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٣ | قالَ اهبِطا مِنها جَميعًا بَعضُكُم لِبَعضٍ عَدُوٌّ فَإِمّا يَأتِيَنَّكُم مِنّى هُدًى فَمَنِ اتَّبَعَ هُداىَ فَلا يَضِلُّ وَ لا يَشقىٰ (١٢٣) ]] }}
فرمود: «هر دو از این (باغ) فرود آیید، در حالی که بعضی از شما دشمن بعضی دیگرید، تا اگر برای شما از جانب من حتماً رهنمودی در رسد، پس هر کس از هدایتم پیروی کند نه گمراه می‌شود و نه به رنج می‌افتد.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٤ | وَ مَن أَعرَضَ عَن ذِكرى فَإِنَّ لَهُ مَعيشَةً ضَنكًا وَ نَحشُرُهُ يَومَ القِيٰمَةِ أَعمىٰ (١٢٤) ]] }}
«و هر کس از یاد من (دل) بگرداند، در حقیقت برایش زندگی‌ای تنگ (و سخت) است و روز رستاخیز او را نابینا محشور می‌کنیم.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٥ | قالَ رَبِّ لِمَ حَشَرتَنى أَعمىٰ وَ قَد كُنتُ بَصيرًا (١٢٥) ]] }}
گفت: « پروردگارم! چرا مرا نابینا محشور کردی حال آنکه به‌راستی بینا بوده‌ام‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٦ | قالَ كَذٰلِكَ أَتَتكَ إيٰتُنا فَنَسيتَها وَ كَذٰلِكَ اليَومَ تُنسىٰ (١٢٦) ]] }}
(خدا) فرمود: «همان‌گونه که نشانه‌های ما برایت آمد پس آن‌ها را فراموش کردی، و امروز (هم) همان گونه فراموش می‌شوی.»
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٧ | وَ كَذٰلِكَ نَجزى مَن أَسرَفَ وَ لَم يُؤمِن بِـٔايٰتِ رَبِّهِ وَ لَعَذابُ الإخِرَةِ أَشَدُّ وَ أَبقىٰ (١٢٧) ]] }}
و بدین‌سان هر که را به اسراف [:زیاده‌روی] گراییده و به نشانه‌های پروردگارش نگرویده سزا می‌دهیم. و بی‌چون عذاب آخرت سخت‌تر و پایدارتر است.
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٨ | أَفَلَم يَهدِ لَهُم كَم أَهلَكنا قَبلَهُم مِنَ القُرونِ يَمشونَ فى مَسٰكِنِهِم إِنَّ فى ذٰلِكَ لَإيٰتٍ لِأُولِى النُّهىٰ (١٢٨) ]] }}
آیا پس برای هدایتشان کافی نبود که (ببینند) چه اندازه سده‌ها [:نسل‌ها] را پیش از آنان نابود کردیم که (اینان) در جایگاه‌هایشان راه می‌روند؟ به‌راستی برای بازدارندگان عاقلانه از زشتی‌ها در این (امر) نشانه‌هایی (عبرت‌انگیز) است.
{{قاب | متن = [[ طه ١٢٩ | وَ لَولا كَلِمَةٌ سَبَقَت مِن رَبِّكَ لَكانَ لِزامًا وَ أَجَلٌ مُسَمًّى (١٢٩) ]] }}
و اگر سخنی از پروردگارت (برای عذابشان) پیشی نگرفته بود ناگزیر (و ناگریز هلاکت و) سررسیدی یادشده لازمه‌‌ی آنها بود.
{{قاب | متن = [[ طه ١٣٠ | فَاصبِر عَلىٰ ما يَقولونَ وَ سَبِّح بِحَمدِ رَبِّكَ قَبلَ طُلوعِ الشَّمسِ وَ قَبلَ غُروبِها وَ مِن إنائِ الَّيلِ فَسَبِّح وَ أَطرافَ النَّهارِ لَعَلَّكَ تَرضىٰ (١٣٠) ]] }}
پس بر آنچه می‌گویند شکیبایی کن و پیش از برآمدن آفتاب و پیش از فرو شدن آن با ستایش پروردگارت (او را) تسبیح گوی و برخی از ساعات شب و کناره‌های روز را (هم) به نیایش بپرداز، شاید خشنود گردی.
{{قاب | متن = [[ طه ١٣١ | وَ لا تَمُدَّنَّ عَينَيكَ إِلىٰ ما مَتَّعنا بِهِ أَزوٰجًا مِنهُم زَهرَةَ الحَيوٰةِ الدُّنيا لِنَفتِنَهُم فيهِ وَ رِزقُ رَبِّكَ خَيرٌ وَ أَبقىٰ (١٣١) ]] }}
و زنهار سوی آنچه همسرانی از ایشان را از آن برخوردار کردیم -(و فقط) زیور زندگی دنیاست تا ایشان را در آن بیازماییم- هرگز دیدگان خود را مدوز- و روزیِ پروردگارت بهتر و پایدار‌تر است
{{قاب | متن = [[ طه ١٣٢ | وَ أمُر أَهلَكَ بِالصَّلوٰةِ وَ اصطَبِر عَلَيها لا نَسـَٔلُكَ رِزقًا نَحنُ نَرزُقُكَ وَ العٰقِبَةُ لِلتَّقوىٰ (١٣٢) ]] }}
و کسان خود را به نماز وادار و خود بر آن شکیبا باش. ما از تو جویای (هیچ‌گونه) روزی نیستیم. ما به تو روزی می‌دهیم. و فرجام (نیک) برای پرهیزگاری است.
{{قاب | متن = [[ طه ١٣٣ | وَ قالوا لَولا يَأتينا بِـٔايَةٍ مِن رَبِّهِ أَوَلَم تَأتِهِم بَيِّنَةُ ما فِى الصُّحُفِ الأولىٰ (١٣٣) ]] }}
و گفتند: «چرا از جانب پروردگارش نشانه‌ای برای ما نمی‌آورد؟ آیا و روشنای آنچه در صحیفه‌های نخستین است برایشان نیامده است‌؟
{{قاب | متن = [[ طه ١٣٤ | وَ لَو أَنّا أَهلَكنٰهُم بِعَذابٍ مِن قَبلِهِ لَقالوا رَبَّنا لَولا أَرسَلتَ إِلَينا رَسولًا فَنَتَّبِعَ إيٰتِكَ مِن قَبلِ أَن نَذِلَّ وَ نَخزىٰ (١٣٤) ]] }}
و اگر ما آنان را قبل از آن (رسولان) به عذابی هلاک می‌کردیم بی‌گمان می‌گفتند: «پروردگارمان! چرا پیامبری سویمان نفرستادی تا پیش از آنکه خوار و بی‌مقدار و رسوا شویم از آیات تو پیروی کنیم‌؟»
{{قاب | متن = [[ طه ١٣٥ | قُل كُلٌّ مُتَرَبِّصٌ فَتَرَبَّصوا فَسَتَعلَمونَ مَن أَصحٰبُ الصِّرٰطِ السَّوِىِّ وَ مَنِ اهتَدىٰ (١٣٥) ]] }}
بگو: «همگان در انتظارند. پس (شما هم) در انتظار باشید. زودا (که) بدانید صاحبان راه راست کیانند و چه کسی (به آن) راه یافته است.»


==محتوای سوره==
==محتوای سوره==

نسخهٔ کنونی تا ‏۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۱:۳۷

سوره مريم سوره طه سوره الأنبياء
شماره کتابت : ٢٠
جزء :
نزول
ترتيب نزول : ٤٥
محل نزول : مكه
اطلاعات آماری
تعداد آیات : ١٣٥
تعداد کلمات : ١٥١٠
تعداد حروف :
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متن سوره

طه [:ای طاهر هادی!].

ما قرآن را بر تو نازل نکردیم تا به رنج افتی،

جز اینکه برای هر که (از خدا) می‌هراسد یادواره‌ای (بزرگ) باشد.

در حالی که فرود آمده‌ای است به تدریج از جانب کسی که زمین و آسمان‌های بلند را آفریده است.

(خدای) رحمتگر بر آفریدگان بر عرش (ربوبیت ) چیره شده است.

آنچه در آسمان‌ها و آنچه در زمین و آنچه میان آن دو و آنچه زیر خاک است از اوست.

و اگر سخن آشکار گویی پس او نهان و نهان‌تر را می‌داند.

خدایی که جز او معبودی نیست (و) نیکوترین نام‌ها (ونشانه‌ها) ویژه‌ی اوست.

و آیا گزارش (وحیانی) موسی تو را رسید؟

چون آتشی دید، پس به خانواده‌ی خود گفت: «درنگ کنید، همانا من با آتشی مأنوس شدم. امید که شعله‌ای از آن برایتان بیاورم یا در پرتو آتش راهی بیابم.»

پس چون بدان رسید ندا داده شد: «موسی!»

«بی‌گمان منم، من، پروردگارت، پس دو پای‌پوشت را برکن، که در حقیقت تو پیچیده در پوشش وادی مقدسی.»

«و من تو را (برای خودم) برگزیدم. پس برای آنچه (به تو) وحی می‌شود گوش فرادار.»

«(این) منم، من، (همان) خدایی که جز من خدایی نیست. پس مرا بپرست و برای یادم نماز را بر پا بدار.»

«به‌راستی ساعت [:قیامت] آمدنی است. نزدیک است آن را (بر خود هم) پوشیده دارم، تا هر کسی به (موجب) آنچه می‌کوشد جزا یابد.»

«پس هرگز نکند کسی که به آن ایمان ندارد و از هوس خویش پیروی کرده است، تو را از (ایمان به) آن باز دارد، پس سقوط کنی.»

«و ای موسی! این چیست در دست راستت؟»

گفت: «این عصای من است. بر آن تکیه می‌دهم و با آن بر گوسفندانم (برگ) می‌تکانم، و در آن برای من نیازهای مهم دیگری (نیز) هست.»

فرمود: «موسی! (هم) آن را بیفکن.»

پس آن را افکند. پس ناگهان، (هم)آن ماری شد که به سرعت می‌خزد.

فرمود: «آن را برگیر و مترس، به زودی آن را به حال واقعی نخستین‌(اش) باز می‌گردانیم.»

«و دست خود را به پهلویت ببر تا سپیدی بی‌گزند بر آید. حال آنکه (این) نشانه‌ای دیگر (بر رسالت تو) است،»

«برای اینکه به تو از بزرگ‌ترین نشانه‌های (چشمگیر)‌مان بنماییم.»

«سوی فرعون برو که همواره او به سرکشی برخاسته است.»

گفت: «پروردگارم! سینه‌ام را گشاده گردان،»

«و کارم را برایم آسان گردان،»

«و از زبانم گرهی بگشای»

«تا سخنم را با بررسی بفهمند،»

«و برایم دستیاری از کسانم قرار ده:»

«هارون برادرم را.»

«پشتم را به او استوار گردان،»

«و او را در کارم شریک کن،»

«تا تو را فراوان تسبیح کنیم،»

«و بسیار تو را یاد کنیم،»

«بی‌گمان تو همواره به (حال) ما بسی بینا بوده‌ای.»

فرمود: «موسی! به‌راستی خواسته‌ات به تو داده شد.»

«و همواره به‌راستی بار دیگر (هم) بر تو منت نهادیم،»

«چون به مادرت آنچه را که وحی می‌شود وحی کردیم:»

«که او را در صندوق بیفکن، پس در دریایش بینداز. پس (آنگاه) دریا بایستی او را به کرانه و کناره افکند تا دشمنی برای من و دشمنی برای وی، او را برگیرد. و مهری (بزرگ) از خودم بر تو افکندم. و تا زیر نظر من سازمان (و سامان) یابی.»

«چون خواهرت می‌رود پس می‌گوید: آیا شما را بر کسی که او را کفالت کند دلالت کنم‌؟ پس تو را سوی مادرت بازگردانیدیم تا دیده‌اش (با دیدار تو) روشن شود و غم نخورد. و شخصی را کُشتی. پس (ما) تو را از اندوه رهانیدیم، و تو را بارها (به) آزمایش‌هایی آتشبار آزمودیم. پس سالیانی چند در میان اهل مَدْیَن ماندی. سپس، موسی! بر (زمانی) مقدر (و مقتضی برای رسالت) آمدی.»

«و تو را برای خود به شایستگی همی ساختم.»

«تو و برادرت با نشانه‌های (رسالتی) من برو، و در یاد کردن من سستی مکنید.»

«سوی فرعون بروید که او همواره به سرکشی برخاسته‌.»

«پس برایش سخنی نرم بگویید، شاید تذکر یابد یا بهراسد.»

(آن دو) گفتند: «پروردگارمان! ما بی‌گمان می‌ترسیم که (او) در زیان رساندن بر ما زیاده‌روی کند یا که سرکشی نماید.»

فرمود: «مترسید. من همواره با شمایم، می‌شنوم و می‌بینم.»

«پس سوی او بروید و بگویید: “ما به‌راستی دو فرستاده‌ی پروردگار توایم. پس فرزندان اسرائیل را با ما بفرست و عذابشان مکن. به‌راستی ما برای تو از جانب پروردگارت نشانه‌ای (رسالتی)آورده‌ایم، و سلام (و سلامتی) بر کسی است که هدایت را پیروی کند.”»

«به‌راستی سوی ما وحی شده که عذاب محققاً بر کسی است که (حق را) تکذیب کرد و (از آن) روی گردانید.»

(فرعون) گفت: «موسی! پس پروردگار شما دوتن کیست‌؟»

گفت: «پروردگار ما کسی است که آفرینش هر چیزی را بدو بخشود؛ سپس (آن را) هدایت فرمود. »

گفت: «پس نسل‌های گذشته را چه خاطره‌ی مهمی بود (که کافر بوده‌ا‌ند)؟»

گفت: «علمش در کتابی (ربانی) نزد پروردگار من است. پروردگارم نه گمراه می‌شود و نه فراموش می‌کند.»

(همان) کسی که زمین را برایتان گهواره‌ای ساخت و برای شما در آن راه‌هایی (راهوار) گشود و از آسمان آبی فرود آورد. پس با آن رستنی‌های گوناگون، بیرون آوردیم.

بخورید و دام‌هایتان را بچرانید. بی‌گمان در اینها برای بازدارندگان عاقلانه از زشتی‌ها، نشانه‌هایی است.

از این (زمین) شما را آفریدیم و در آن شما را باز می‌گردانیم و بار دیگر شما را از آن بیرون می‌آوریم.

و بی‌چون به‌راستی (ما) همه‌ی آیات (متناسب)مان را به او [:فرعون] نشان دادیم، پس (آنها را) تکذیب نمود و (از پذیرفتنشان) خودداری کرد.

گفت: «موسی! آیا نزد ما آمده‌ای تا با سحرت ما را از سرزمینمان بیرون برانی‌؟»

پس ما همانا برای تو به‌راستی سحری همانند آن خواهیم آورد. پس میان ما و خودت موعدی بگذار که نه ما از آن تخلف کنیم، و نه تو: در مکانی برابر و یکسان.»

(موسی) گفت: «موعد شما روز آرایش (و جشن) عمومی است، و اینکه مردم در روشنایی روز گردآورده شوند.»

پس فرعون پشت کرد. پس نیرنگ خود را گرد آورد. سپس (باز) آمد.

موسی به آنان گفت: «وای بر شما! به خدا دروغ نبندید که شما را به عذابی سخت از بن برمی‌کند. و هر که (به خدا) افترا زد بی‌گمان زیان کرده است.»

پس ساحران میان خود، درباره‌ی کارشان به تبادل رأی برخاستند و نجوا(شان) را پنهان کردند.

(فرعونیان) گفتند: «قطعاً این دو تن ساحرند، (و) می‌خواهند شما را با سحرشان از سرزمینتان بیرون برانند و والاترین راهتان را (از میانتان) بردارند.»

«پس نیرنگتان را گرد آورید، سپس در صفی (پیراسته و آراسته) پیش آیید. حال آنکه به‌راستی امروز هر کس پیروزی جست (همو) رستگار کرده است.»

(ساحران) گفتند: «موسی! یا اینکه تو می‌افکنی یا (ما) نخستین کس باشیم که افکنده است‌؟»

گفت: « (نه،) بلکه شما بیفکنید.» پس ناگهان ریسمان‌ها و چوب‌دستی‌هایشان از (اثر) سحرشان، در خیال او (چنان) می‌نمود که به‌راستی آنها می‌‌شتابند.

پس موسی در درونش بیمی احساس کرد .

گفتیم: «مترس، تو بی‌گمان خود (از اینان) برتری،»

«و آنچه در دست راستت داری بیفکن تا هر چه را ساختند با چالاکی ببلعد. آنچه ساختند تنها مکر افسونگر است، و افسونگر هر جا (و هرگونه) آید رستگار نمی‌کند.»

پس ساحران (بی‌اختیار و بی‌قرار) به سجده افکنده شدند.گفتند: «به پروردگار هارون و موسی ایمان آوردیم.»

(فرعون) گفت: «آیا پیش از آنکه برایتان اجازه دهم به او ایمان آوردید؟ به‌راستی او بزرگِ شماست که به شما سحر آموخته. پس بی‌مهابا دست‌هایتان و پاهایتان را -بی‌چون- بر خلاف (یکدیگر) قطع می‌کنم، و شما را بی‌امان همچنان در شاخسارهای درختان خرما به دار می‌آویزم و همواره به راستی خواهید دانست کدامین (از) ما عذابش سخت‌تر و پایدارتر است.»

گفتند: «ما هرگز تو را بر نشانه‌های روشنی که سویمان آمده و (بر) آن کس که ما را (با فطرت توحیدی) پدید آورده است، ترجیح نخواهیم داد. پس تو هر حکمی (که) می‌خواهی بکن؛ تنها (در این) زندگی دنیاست که (در آن) حکم می‌رانی.»

«ما به‌راستی به پروردگارمان ایمان آوردیم تا خطاهایمان را- و آن سحری که ما را بدان واداشتی- بر ما بپوشاند. و خدا بهتر و پاینده‌تر است.»

حال چنان است (که) بی‌چون هر کس نزد پروردگارش گنهکار آید، بی‌گمان جهنم برای اوست. در آن نه می‌میرد و نه زندگی می‌کند.

و هر کس به حال ایمان نزدش آید که به‌راستی کارهای شایسته‌(ی ایمان) انجام داده باشد، ایشان برایشان عالی‌ترین درجات است.

باغ‌های پای‌برجا که از زیر (درختان)شان نهرها روان است، (جایی است که) جاودانه در آن می‌مانند، و این پاداش کسی است که به پاکی گراید.

و به‌راستی و درستی سوی موسی وحی کردیم که: « بندگانم را شبانه کوچ ده، پس راهی خشک در دریا برایشان (با عصایت) برزن (حال آنکه) نه از فرا رسیدن (دشمن) بترسی و نه از غرق شدن، و نه بیمی داشته باشی.»

پس فرعون با لشکریانش آنها را پی گرفت. پس، از دریا آنچه آنان را فرو پوشانید، فرو پوشانیدشان.

و فرعون قوم خود را گمراه کرد و هدایت نکرد.

«فرزندان اسرائیل! ما بی‌گمان شما را از (دست) دشمنتان رهانیدیم. و در پربرکت‌ترین جانب (کوه) طور با شما وعده نهادیم. و بر شما ترنجبین و امنیت فرو فرستادیم.»

«(و گفتیم) از خوراکی‌های پاکیزه‌ای که روزیتان دادیم بخورید، و در آن طغیان نکنید که خشم من بر شما فرود آید. و هرکس خشم من بر او فرود آید بی‌چون سقوط کرده است.»

و من بی‌گمان برا‌ی کسی که توبه کرده و ایمان آورده و کاری شایسته(ی‌ایمان) انجام داده، سپس راه یافته؛ به‌درستی بسی پوشاننده‌ام.

«موسی! چه چیز تورا از (برابر) قومت (سوی طور) شتابان کرد؟»

گفت: «هم اینان بر پی من‌اند، و - پروردگارم!- سویت شتافتم تا (از من) خشنود شوی.»

فرمود: «پس ما به‌راستی و درستی قوم تو را پس از (عزیمت) تو آزمایشی آتشبار کردیم، و سامری آنها را گمراه ساخت.»

پس موسی خشمگین (و) اندوهناک سوی قومش بازگشت (و) گفت: «ای قوم من! آیا پروردگارتان به شما وعده‌ای نیکو نداد؟ آیا پس این مدت بر شما طولانی بود، یا خواستید خشمی از پروردگارتان بر شما درآید، پس با وعده‌ی من مخالفت کردید؟»

گفتند: «ما به اختیار خود از وعده‌‌ات تخلف نکردیم، ولی از زینت‌آلات قوم، بارهایی سنگین همواره بر دوشمان نهاده شد. پس آنها را افکندیم. پس سامری (هم زینت‌آلاتش را) همین گونه بیفکند.»

پس برایشان پیکر گوساله‌ای که صدای گوساله داشت بیرون آورد. پس (او و پیروانش) گفتند: «این خدای شما و خدای موسی است.» پس (خدا را) فراموش کرد.

پس مگر نمی‌بینند که (گوساله) سخنی فرا سویشان بر نمی‌گرداند، و برایشان سود و زیانی ندارد؟

و به‌راستی بی‌گمان هارون از پیش به آنان گفت: «ای قوم من! جز این نیست (که) شما به وسیله‌ی این (گوساله) مورد آزمایشی آتشین قرار گرفته‌اید، و پروردگارتان به‌راستی خدای رحمتگر بر آفریدگان است، پس از پی من آیید و فرمانم را پیروی کنید.

گفتند: «ما هرگز در پرستشی ماندگار از آن دست برنخواهیم داشت، تا موسی سوی ما بازگردد.»

(موسی) گفت: «هارون! چون دیدی آنها گمراه شدند چه چیز مانع تو شد،»

«که از من پیروی نکنی‌؟ آیا از فرمانم سر باز زدی‌؟»

گفت: «پسر مادرم! نه ریش مرا بگیر و نه سرم را، من به‌راستی ترسیدم که بگویی میان بنی‌اسرائیل تفرقه انداختی، و سخنم را مراقبت نکردی.»

(موسی) گفت: «سامری! پس هدف مهم تو (از این کار) چه بود؟»

گفت: «به چیزی که آنان به آن پی نبردند پی بردم، پس مشتی از اثر (رسالتی آن) رسول [:موسی] برگرفتم، سپس آن را فرو انداختم (که حق را به چهره‌ی باطل نمودم و با این آنان را از توحید به شرک افکندم) و نفس اماره‌ام برایم اینچنین فریبکاری کرد.»

گفت: «پس برو که بهره‌ی تو بی‌گمان در زندگی این باشد که (به هر که نزدیک تو آمد) بگویی (با من) هیچ‌گونه تماسی نیست.” و بی‌گمان برایت وعده‌گاهی است که هرگز از آن بازداشته نخواهی شد. و (اینک) به آن خدایی که پیوسته برایش سر فرود آوردی بنگر. همانا آن را به شدت همی سوزانیم، سپس همانا به خاکسترش همواره تبدیل می‌کنیم، پس آن‌گاه در دریا غباروار فرو می‌پاشیم، فرو پاشیدنی (چشمگیر)

«معبود شما تنها (آن) خدایی است که جز او هرگز معبودی نیست. و علمش همه چیز را در برگرفته است.»

این گونه (ما) از اخبار مهم گذشته، بر تو گزینش می‌کنیم، و بی‌گمان تو را از جانب خودمان یادواره‌ای (روشنگر) دادیم.

هر کس از (پیروی) آن روی گرداند، او بی‌گمان روز قیامت باری گران بر دوش می‌گیرد.

حال آنکه در آن ماندگارند و روز رستاخیز چه بد باری است برایشان.

(همان) روزی که در صور [:بوق جان‌افزا] دمیده می‌شود و در آن روز مجرمان را کبودچشم - بدون برگشت- گردآوری می‌کنیم.

میان خود، پنهانی با یکدیگر می‌گویند: «پیش از این (در برزخ) بیش از ده روز نمانده‌اید.»

ما به آنچه می‌گویند داناتریم. چون شایسته‌ترین (و) راهوارترینشان می‌گوید: «بیش از یک روز نمانده‌اید.»

و از تو درباره‌ی کوه‌ها می‌پرسند. پس بگو: «پروردگارم آنها را (در قیامت) غباری سخت پراکنده خواهد ساخت،»

«پس آنها را پهن و هموار و تهی از گیاه (و تباه) خواهد کرد،»

«نه در آن کژی می‌بینی و نه ناهمواری.»

در چنان روزی (همه‌ی مردم) داعی (حق) را - که هیچ انحرافی برایش نیست - (خواه ناخواه) پیروی می‌کنند. و کل صداها برای (خدای) رحمان فرو کاسته بوده. پس هرگز جز صدایی آهسته نمی‌شنوی.

در آن هنگام (و هنگامه)، هیچ‌گونه شفاعتی سود نبخشد، مگر کسی را که (خدای) رحمان اجازه داده و سخنش خدا را پسند آمده.

آنچه را که آنان در پیش دارند و آنچه را در پشت (سر)شان دارند می‌داند، و(آنان) هیچ‌گونه احاطه‌ی علمی به او ندارند.

و همه‌ی چهره‌ها برای آن (خدای) زنده‌ی پاینده‌ی نگهدارنده توجه کردند، حال آنکه بی‌چون آن کس که ظلمی بر دوش داشته زیان کرده است.

و هر کس در حال ایمان کارهای شایسته کند از هیچ ستمی و نه از هیچ کم و کاستی نمی‌هراسد.

و این‌گونه آن را (به صورت) قرآنی (بس) روشن نازل کردیم، و در آن از انواع هشدارها (سخن) آوردیم (تا) شاید آنان تقوا پیشه کنند یا (این کتاب) یاد تازه‌ای برایشان ایجاد کند.

پس بسی بلندمرتبه است خدا، (آن) فرمانروای (تمام) حق (و حقیقت). و در (خواندن) قرآن- پیش از آنکه وحی آن فراسویت حکم شود (و در رسد)- شتاب مکن، و بگو: «پروردگارم! بر دانشم بیفزای‌.»

و همانا به‌راستی پیش از این سوی آدم پیمان بستیم. پس (آن را) فراموش کرد، و برای او عزمی (استوار) نیافتیم.

و چون به فرشتگان گفتیم: «برای آدم سجده کنید.» پس (همه) سجده کردند جز ابلیس (که) سر باز زد.

پس گفتیم: «آدم! بی‌چون این (ابلیس) برای تو و همسرت دشمنی (خطرناک) است. زنهار تا شما را از (این) باغ بی‌چون به در نکند، پس به زحمت افتی،»

«به‌راستی برای تو در آنجا این (امتیاز) است که نه گرسنه می‌شوی و نه برهنه می‌مانی.»

«و (هم) اینکه به‌راستی در آن‌جا نه تشنه می‌گردی و نه آفتاب‌زده می‌شوی.»

پس شیطان سویش وسوسه افکند. گفت: «آدم! آیا تو را بر درخت جاودانگی و مُلکی کهنه‌ناشدنی راه بنمایم‌؟»

پس از آن (درخت ممنوع) خوردند. در نتیجه عورت‌هاشان برایشان نمایان شد و شروع کردند به چسباندن برگ‌های بهشتی بر خودشان. و (این گونه) آدم پروردگارش را عصیان کرد، پس گمراه شد.

سپس پروردگارش او را برگزید. پس بر او برگشت و (وی را به رسالت) هدایت کرد.

فرمود: «هر دو از این (باغ) فرود آیید، در حالی که بعضی از شما دشمن بعضی دیگرید، تا اگر برای شما از جانب من حتماً رهنمودی در رسد، پس هر کس از هدایتم پیروی کند نه گمراه می‌شود و نه به رنج می‌افتد.»

«و هر کس از یاد من (دل) بگرداند، در حقیقت برایش زندگی‌ای تنگ (و سخت) است و روز رستاخیز او را نابینا محشور می‌کنیم.»

گفت: « پروردگارم! چرا مرا نابینا محشور کردی حال آنکه به‌راستی بینا بوده‌ام‌؟»

(خدا) فرمود: «همان‌گونه که نشانه‌های ما برایت آمد پس آن‌ها را فراموش کردی، و امروز (هم) همان گونه فراموش می‌شوی.»

و بدین‌سان هر که را به اسراف [:زیاده‌روی] گراییده و به نشانه‌های پروردگارش نگرویده سزا می‌دهیم. و بی‌چون عذاب آخرت سخت‌تر و پایدارتر است.

آیا پس برای هدایتشان کافی نبود که (ببینند) چه اندازه سده‌ها [:نسل‌ها] را پیش از آنان نابود کردیم که (اینان) در جایگاه‌هایشان راه می‌روند؟ به‌راستی برای بازدارندگان عاقلانه از زشتی‌ها در این (امر) نشانه‌هایی (عبرت‌انگیز) است.

و اگر سخنی از پروردگارت (برای عذابشان) پیشی نگرفته بود ناگزیر (و ناگریز هلاکت و) سررسیدی یادشده لازمه‌‌ی آنها بود.

پس بر آنچه می‌گویند شکیبایی کن و پیش از برآمدن آفتاب و پیش از فرو شدن آن با ستایش پروردگارت (او را) تسبیح گوی و برخی از ساعات شب و کناره‌های روز را (هم) به نیایش بپرداز، شاید خشنود گردی.

و زنهار سوی آنچه همسرانی از ایشان را از آن برخوردار کردیم -(و فقط) زیور زندگی دنیاست تا ایشان را در آن بیازماییم- هرگز دیدگان خود را مدوز- و روزیِ پروردگارت بهتر و پایدار‌تر است

و کسان خود را به نماز وادار و خود بر آن شکیبا باش. ما از تو جویای (هیچ‌گونه) روزی نیستیم. ما به تو روزی می‌دهیم. و فرجام (نیک) برای پرهیزگاری است.

و گفتند: «چرا از جانب پروردگارش نشانه‌ای برای ما نمی‌آورد؟ آیا و روشنای آنچه در صحیفه‌های نخستین است برایشان نیامده است‌؟

و اگر ما آنان را قبل از آن (رسولان) به عذابی هلاک می‌کردیم بی‌گمان می‌گفتند: «پروردگارمان! چرا پیامبری سویمان نفرستادی تا پیش از آنکه خوار و بی‌مقدار و رسوا شویم از آیات تو پیروی کنیم‌؟»

بگو: «همگان در انتظارند. پس (شما هم) در انتظار باشید. زودا (که) بدانید صاحبان راه راست کیانند و چه کسی (به آن) راه یافته است.»


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