سوره النمل: تفاوت میان نسخه‌ها

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{{قاب | متن = [[ النمل ١ | طس‌ تِلْکَ‌ آيَاتُ‌ الْقُرْآنِ‌ وَ کِتَابٍ‌ مُبِينٍ‌ (١)]] [[ النمل ٢ | هُدًى‌ وَ بُشْرَى‌ لِلْمُؤْمِنِينَ‌ (٢)]] [[ النمل ٣ | الَّذِينَ‌ يُقِيمُونَ‌ الصَّلاَةَ وَ يُؤْتُونَ‌... (٣)]] [[ النمل ٤ | إِنَ‌ الَّذِينَ‌ لاَ يُؤْمِنُونَ‌ بِالْآخِرَةِ... (٤)]] [[ النمل ٥ | أُولٰئِکَ‌ الَّذِينَ‌ لَهُمْ‌ سُوءُ الْعَذَابِ‌ وَ... (٥)]] [[ النمل ٦ | وَ إِنَّکَ‌ لَتُلَقَّى‌ الْقُرْآنَ‌ مِنْ‌ لَدُنْ‌... (٦)]] [[ النمل ٧ | إِذْ قَالَ‌ مُوسَى‌ لِأَهْلِهِ‌ إِنِّي‌ آنَسْتُ‌... (٧)]] [[ النمل ٨ | ... ]]  }} {{سخ}}
__TOC__
  {{ سوره | نام =سوره النمل | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::48|٤٨]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::27|٢٧]]  | آیه = [[تعداد آیات::93|٩٣]] | بعدی = سوره القصص | قبلی = سوره الشعراء | کلمه = [[تعداد کلمات::1300|١٣٠٠]] | حرف =  }}
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|''' لیست آیات '''
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==متن سوره==
{{قاب | متن = [[ النمل ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ طس تِلكَ إيٰتُ القُرإنِ وَ كِتابٍ مُبينٍ (١) ]] }}
طس. این‌هاست آیات قرآن و کتابی روشنگر.
{{قاب | متن = [[ النمل ٢ | هُدًى وَ بُشرىٰ لِلمُؤمِنينَ (٢) ]] }}
حال آنکه هدایت و بشارتی است برای مؤمنان.
{{قاب | متن = [[ النمل ٣ | الَّذينَ يُقيمونَ الصَّلوٰةَ وَ يُؤتونَ الزَّكوٰةَ وَ هُم بِالإخِرَةِ هُم يوقِنونَ (٣) ]] }}
کسانی که نماز را بر پا می‌دارند و زکات را می‌دهند و آنان، (هم)آنان به آخرت یقین می‌آورند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٤ | إِنَّ الَّذينَ لا يُؤمِنونَ بِالإخِرَةِ زَيَّنّا لَهُم أَعمٰلَهُم فَهُم يَعمَهونَ (٤) ]] }}
بی‌گمان کسانی که به آخرت ایمان نمی‌آورند، کردارهایشان را برایشان بیاراستیم؛ پس ایشان سرگشته می‌گردند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥ | أُولٰئِكَ الَّذينَ لَهُم سوءُ العَذابِ وَ هُم فِى الإخِرَةِ هُمُ الأَخسَرونَ (٥) ]] }}
آنان کسانی‌اند که بدی عذاب برایشان است و آنان در آخرت، همانا زیانکارترین (مکلفان)اند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٦ | وَ إِنَّكَ لَتُلَقَّى القُرإنَ مِن لَدُن حَكيمٍ عَليمٍ (٦) ]] }}
و همواره تو قرآن را به‌راستی از نزد حکیمی بس دانا به‌درستی - به گونه‌ای مماس - دریافت می‌داری.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧ | إِذ قالَ موسىٰ لِأَهلِهِ إِنّى إنَستُ نارًا سَـٔاتيكُم مِنها بِخَبَرٍ أَو إتيكُم بِشِهابٍ قَبَسٍ لَعَلَّكُم تَصطَلونَ (٧) ]] }}
چون موسی به خانواده‌ی خود گفت: «من به‌راستی با آتشی انس گرفتم، به زودی برای شما خبری از آن خواهم آورد، یا شعله‌ی آتشی برای شما می‌آورم، شاید گیرانه‌ای (از آن) برگیرید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٨ | فَلَمّا جاءَها نودِىَ أَن بورِكَ مَن فِى النّارِ وَ مَن حَولَها وَ سُبحٰنَ اللَّهِ رَبِّ العٰلَمينَ (٨) ]] }}
پس چون نزد آن آتش آمد، آوازی بلند در رسیدش: «مبارک گردید آن که در این آتش [:نور وحی] و آن که پیرامون آن است و منزّه است خدا، پروردگار جهانیان.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٩ | يٰموسىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ العَزيزُ الحَكيمُ (٩) ]] }}
«ای موسی! همانا او، منم؛ خدای عزیز حکیم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٠ | وَ أَلقِ عَصاكَ فَلَمّا رَإها تَهتَزُّ كَأَنَّها جانٌّ وَ لّىٰ مُدبِرًا وَ لَم يُعَقِّب يٰموسىٰ لا تَخَف إِنّى لا يَخافُ لَدَىَّ المُرسَلونَ (١٠) ]] }}
«و اینکه عصایت را بیفکن.» پس چون آن را همچون ماری کوچک بدید که می‌جنبد، (بدان) پشت گردانید و به عقب (هم نگاهِ خود را) باز نگردانید: «ای موسی! مترس که فرستادگان (من) هرگز نزد من نمی‌ترسند؛»
{{قاب | متن = [[ النمل ١١ | إِلّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسنًا بَعدَ سوءٍ فَإِنّى غَفورٌ رَحيمٌ (١١) ]] }}
«مگر کسی که ستم کرد. سپس - بعد از بدی - نیکی را جایگزین (آن) گردانید، پس من همواره بسی پوشنده‌ی رحمتگر بر ویژگانم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٢ | وَ أَدخِل يَدَكَ فى جَيبِكَ تَخرُج بَيضاءَ مِن غَيرِ سوءٍ فى تِسعِ إيٰتٍ إِلىٰ فِرعَونَ وَ قَومِهِ إِنَّهُم كانوا قَومًا فٰسِقينَ (١٢) ]] }}
«و دستت را در گریبانت ببر تا سپیدی بی‌عیب برون آید؛ در نشانه‌های نُه‌گانه‌ای (که باید) سوی فرعون و قومش (ببری). آنان بی‌گمان مردمی نافرمان بوده‌اند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٣ | فَلَمّا جاءَتهُم إيٰتُنا مُبصِرَةً قالوا هٰذا سِحرٌ مُبينٌ (١٣) ]] }}
پس چون نشانه‌‌های ما -بینا کننده- برایشان آمد گفتند: «این سحری آشکارگر است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٤ | وَ جَحَدوا بِها وَ استَيقَنَتها أَنفُسُهُم ظُلمًا وَ عُلُوًّا فَانظُر كَيفَ كانَ عٰقِبَةُ المُفسِدينَ (١٤) ]] }}
و حال آنکه (از عمق) جان‌هایشان به آن (نشانه‌های ربانی) یقین داشتند، از روی ظلم و تکبّر آنها را انکار (و انگار) کردند. پس بنگر (که) فرجام افسادگران چگونه بود.
{{قاب | متن = [[ النمل ١٥ | وَ لَقَد إتَينا داوۥدَ وَ سُلَيمٰنَ عِلمًا وَ قالَا الحَمدُ لِلَّهِ الَّذى فَضَّلَنا عَلىٰ كَثيرٍ مِن عِبادِهِ المُؤمِنينَ (١٥) ]] }}
و همواره به داوود و سلیمان به‌راستی علمی (وحیانی) دادیم، و آن دو گفتند: «تمام ستایش‌ها در انحصار خدایی است که ما را بر بسیاری از بندگانِ باایمانش برتری داده است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٦ | وَ وَرِثَ سُلَيمٰنُ داوۥدَ وَ قالَ يٰأَيُّهَا النّاسُ عُلِّمنا مَنطِقَ الطَّيرِ وَ أوتينا مِن كُلِّ شَيءٍ إِنَّ هٰذا لَهُوَ الفَضلُ المُبينُ (١٦) ]] }}
و سلیمان از داوود میراث یافت و گفت: «ای مردمان! ما زبان پرندگان را آموخته‌ایم و از هر چیزی (همانندش) داده شده‌ایم. به‌راستی این همانا فضلیت روشنگر است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٧ | وَ حُشِرَ لِسُلَيمٰنَ جُنودُهُ مِنَ الجِنِّ وَ الإِنسِ وَ الطَّيرِ فَهُم يوزَعونَ (١٧) ]] }}
و برای سلیمان، سپاهیانش - از جنّ و انس و پرندگان- جمع‌آوری شدند، پس آنان (از پراکندگی) نگهبانی می‌شوند]: متفرق نمی‌شوند[.
{{قاب | متن = [[ النمل ١٨ | حَتّىٰ إِذا أَتَوا عَلىٰ وادِ النَّملِ قالَت نَملَةٌ يٰأَيُّهَا النَّملُ ادخُلوا مَسٰكِنَكُم لا يَحطِمَنَّكُم سُلَيمٰنُ وَ جُنودُهُ وَ هُم لا يَشعُرونَ (١٨) ]] }}
تا آن‌گاه که به مکان مورچگان رسیدند. مورچه‌ای (از فرماندهان مورچگان) گفت: «ای مورچگان! به جایگاه‌هایتان داخل شوید، مبادا سلیمان و سپاهیانش - ندیده و ندانسته - به سختی شما را پایمال کنند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ١٩ | فَتَبَسَّمَ ضاحِكًا مِن قَولِها وَ قالَ رَبِّ أَوزِعنى أَن أَشكُرَ نِعمَتَكَ الَّتى أَنعَمتَ عَلَىَّ وَ عَلىٰ وٰلِدَىَّ وَ أَن أَعمَلَ صٰلِحًا تَرضىٰهُ وَ أَدخِلنى بِرَحمَتِكَ فى عِبادِكَ الصّٰلِحينَ (١٩) ]] }}
پس (سلیمان) از گفتارش- در حال خنده‌اش- تبسمی کرد و گفت: «پروردگارم! مرا از گسیختگی نگه‌دار تا نعمتی را که به من و پدر و مادرم داده‌ای سپاس بگزارم و به کار شایسته‌ای که آن را می‌پسندی بپردازم و مرا به رحمت خویش در میان شایستگانِ (از) بندگانت داخل گردان.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٠ | وَ تَفَقَّدَ الطَّيرَ فَقالَ ما لِىَ لا أَرَى الهُدهُدَ أَم كانَ مِنَ الغائِبينَ (٢٠) ]] }}
و در جستجوی پرندگان برآمد. پس گفت: «مرا چه شده که هدهد را نمی‌بینم‌؟ یا (اینکه) از غایبان بوده است‌؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢١ | لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذابًا شَديدًا أَو لَأَا۟ذبَحَنَّهُ أَو لَيَأتِيَنّى بِسُلطٰنٍ مُبينٍ (٢١) ]] }}
«بی‌گمان او را به عذابی سخت همواره عذاب می‌کنم یا سرش را همی بی‌چون می‌برم، مگر آنکه به‌راستی دلیلی روشنگر به‌درستی (بر غیبت خود) برایم بیاورد.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٢ | فَمَكَثَ غَيرَ بَعيدٍ فَقالَ أَحَطتُ بِما لَم تُحِط بِهِ وَ جِئتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقينٍ (٢٢) ]] }}
پس دیری نپایید (که هدهد آمد). پس گفت: «از چیزی آگاهی یافتم که (تو) بدان آگاهی نیافته‌ای و برایت از (کشور) سبا گزارشی مهم (و) یقینی آورده‌ام.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٣ | إِنّى وَجَدتُ امرَأَةً تَملِكُهُم وَ أوتِيَت مِن كُلِّ شَيءٍ وَ لَها عَرشٌ عَظيمٌ (٢٣) ]] }}
«من به‌راستی زنی را یافتم که مالک (و اختیاردار) آنهاست و از هر چیزی (از مال و منال دنیا) به او داده شده، و برای او تخت (پادشاهی) بزرگی است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٤ | وَجَدتُها وَ قَومَها يَسجُدونَ لِلشَّمسِ مِن دونِ اللَّهِ وَ زَيَّنَ لَهُمُ الشَّيطٰنُ أَعمٰلَهُم فَصَدَّهُم عَنِ السَّبيلِ فَهُم لا يَهتَدونَ (٢٤) ]] }}
«او و قومش را چنان یافتم که به جای خدا برای خورشید سجده می‌کنند، حال آنکه شیطان اعمالشان را برایشان آراسته، در نتیجه آنان را از راه (راست) باز داشته، پس ایشان راه (حق) را نمی‌یابند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٥ | أَلّا يَسجُدوا لِلَّهِ الَّذى يُخرِجُ الخَبءَ فِى السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ وَ يَعلَمُ ما تُخفونَ وَ ما تُعلِنونَ (٢٥) ]] }}
(آری، شیطان چنین کرده بود) تا برای خدایی که نهان را در آسمان‌ها و زمین بیرون می‌آورد و آنچه را پنهان می‌دارید و آنچه را آشکار می‌نمایید می‌داند، سجده نکنند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٦ | اللَّهُ لا إِلٰهَ إِلّا هُوَ رَبُّ العَرشِ العَظيمِ (٢٦) ]] }}
خدا -هیچ معبودی جز او نیست- پروردگار عرشِ بزرگ است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٧ | قالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقتَ أَم كُنتَ مِنَ الكٰذِبينَ (٢٧) ]] }}
گفت: «خواهیم دید آیا راست گفتی یا از دروغگویان بوده‌ای.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٨ | اذهَب بِكِتٰبى هٰذا فَأَلقِه إِلَيهِم ثُمَّ تَوَلَّ عَنهُم فَانظُر ماذا يَرجِعونَ (٢٨) ]] }}
«این نامه‌ی مرا ببر. پس آن را سویشان بیفکن. سپس از ایشان روی بگردان، تا بنگری (که) چه بازگشتی (و پیامدی) دارند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٢٩ | قالَت يٰأَيُّهَا المَلَؤُا۟ إِنّى أُلقِىَ إِلَىَّ كِتٰبٌ كَريمٌ (٢٩) ]] }}
(ملکه‌ی سبا) گفت: «هان ای سران چشمگیر (کشور)! بی‌گمان نامه‌ای ارجمند سویم افکنده شده است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٠ | إِنَّهُ مِن سُلَيمٰنَ وَ إِنَّهُ بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ (٣٠) ]] }}
«به‌راستی این نامه از طرف سلیمان است و به‌درستی (مضمونش این است): به نام خدای رحمتگر بر آفریدگان، رحمتگر بر ویژگان.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣١ | أَلّا تَعلوا عَلَىَّ وَ أتونى مُسلِمينَ (٣١) ]] }}
«اینکه بر من برتری مجویید و با حالت تسلیم نزد من آیید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٢ | قالَت يٰأَيُّهَا المَلَؤُا۟ أَفتونى فى أَمرى ما كُنتُ قاطِعَةً أَمرًا حَتّىٰ تَشهَدونِ (٣٢) ]] }}
(ملکه‌ی سبا) گفت: «ای سران چشمگیر (کشورم)! مرا در کارم (با مشورت) رأیی تازه و شایسته دهید، بی‌گواهیتان به نزدم کاری را (هرگز) فیصله نمی‌داده‌ام.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٣ | قالوا نَحنُ أُولوا قُوَّةٍ وَ أُولوا بَأسٍ شَديدٍ وَ الأَمرُ إِلَيكِ فَانظُرى ماذا تَأمُرينَ (٣٣) ]] }}
گفتند: «ما سخت نیرومند و دلاوریم و (اما) کل فرمان (تنها) سوی توست. پس بنگر چه فرمان می‌دهی‌؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٤ | قالَت إِنَّ المُلوكَ إِذا دَخَلوا قَريَةً أَفسَدوها وَ جَعَلوا أَعِزَّةَ أَهلِها أَذِلَّةً وَ كَذٰلِكَ يَفعَلونَ (٣٤) ]] }}
(ملکه) گفت: «همواره پادشاهان چون به مجتمعی درآیند، آن را تباه و بی‌مقدار و عزیزانش را خوار می‌گردانند و همین‌گونه (ویرانی) می‌کنند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٥ | وَ إِنّى مُرسِلَةٌ إِلَيهِم بِهَدِيَّةٍ فَناظِرَةٌ بِمَ يَرجِعُ المُرسَلونَ (٣٥) ]] }}
«و من حتماً فرستنده‌ی هدیه‌ای سویشان هستم. پس نگرانم (که) فرستادگان با چه (حالی) باز می‌گردند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٦ | فَلَمّا جاءَ سُلَيمٰنَ قالَ أَتُمِدّونَنِ بِمالٍ فَما إتىٰنِۦَ اللَّهُ خَيرٌ مِمّا إتىٰكُم بَل أَنتُم بِهَدِيَّتِكُم تَفرَحونَ (٣٦) ]] }}
پس هنگامی که (فرستاده‌اش) نزد سلیمان آمد، (سلیمان) گفت: «آیا مرا با مالی (سوی خود) می‌کشید و کمک می‌کنید؟ پس آنچه خدا به من داده، بهتر است از آنچه به شما داده. (نه،) بلکه به ارمغان خود شادمانی می‌کنید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٧ | ارجِع إِلَيهِم فَلَنَأتِيَنَّهُم بِجُنودٍ لا قِبَلَ لَهُم بِها وَ لَنُخرِجَنَّهُم مِنها أَذِلَّةً وَ هُم صٰغِرونَ (٣٧) ]] }}
«به سویشان بازگرد تا بی‌چون (و) بی‌گمان با سپاهیانی سویشان روان می‌شویم که در برابر آنان تاب ایستادگی نداشته باشند و بی‌امان از آن (دیار) همواره به خواری و بی‌مقداری بیرونشان می‌کنیم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٨ | قالَ يٰأَيُّهَا المَلَؤُا۟ أَيُّكُم يَأتينى بِعَرشِها قَبلَ أَن يَأتونى مُسلِمينَ (٣٨) ]] }}
(سپس) گفت: «ای سران (کشور)! کدام یک از شما تخت او را - پیش از آنکه مطیعانه نزدم آیند - برایم می‌آورد؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٣٩ | قالَ عِفريتٌ مِنَ الجِنِّ أَنا۠ إتيكَ بِهِ قَبلَ أَن تَقومَ مِن مَقامِكَ وَ إِنّى عَلَيهِ لَقَوِىٌّ أَمينٌ (٣٩) ]] }}
بزرگواری از جنیان گفت: «من آن را پیش از آنکه از جایگاه خود برخیزی برایت می‌‌آورم. همانا من بر این(کار) سخت توانا و امانت‌دارم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٠ | قالَ الَّذى عِندَهُ عِلمٌ مِنَ الكِتٰبِ أَنا۠ إتيكَ بِهِ قَبلَ أَن يَرتَدَّ إِلَيكَ طَرفُكَ فَلَمّا رَإهُ مُستَقِرًّا عِندَهُ قالَ هٰذا مِن فَضلِ رَبّى لِيَبلُوَنى ءَأَشكُرُ أَم أَكفُرُ وَ مَن شَكَرَ فَإِنَّما يَشكُرُ لِنَفسِهِ وَ مَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبّى غَنِىٌّ كَريمٌ (٤٠) ]] }}
کسی که نزد او دانشی از کتاب (ربانی) بود، گفت: «من آن را پیش از آنکه چشم خود را بر هم زنی برایت آورنده‌ام.» پس چون (سلیمان) آن (تخت) را نزد خود مستقر دید، گفت: «این از فضل پروردگار من است، تا مرا بیازماید (که) آیا شکر می‌گزارم یا کفران می‌ورزم. و هر که سپاس گزارد، تنها به سود خویش سپاس می‌گزارد و هر که ناسپاسی کند، پس همانا پروردگارم بسی بی‌نیاز کریم است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤١ | قالَ نَكِّروا لَها عَرشَها نَنظُر أَتَهتَدى أَم تَكونُ مِنَ الَّذينَ لا يَهتَدونَ (٤١) ]] }}
گفت: «تخت (ملکه) را برایش ناشناس گردانید تا ببینیم آیا (بدان) رهنمون می‌شود یا از کسانی است که (به آن) راه نمی‌یابند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٢ | فَلَمّا جاءَت قيلَ أَهٰكَذا عَرشُكِ قالَت كَأَنَّهُ هُوَ وَ أوتينَا العِلمَ مِن قَبلِها وَ كُنّا مُسلِمينَ (٤٢) ]] }}
پس چون (ملکه) آمد، (بدو) گفته شد: «آیا تخت تو همین‌گونه است‌؟» گفت: «گویا این همان است و پیش از این هم ما آگاه شده و از تسلیم‌شدگان بوده‌ایم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٣ | وَ صَدَّها ما كانَت تَعبُدُ مِن دونِ اللَّهِ إِنَّها كانَت مِن قَومٍ كٰفِرينَ (٤٣) ]] }}
و آنچه را غیر از خدا می‌پرستید مانع (ایمان) او شده بود. همانا او از گروه کافران بود.
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٤ | قيلَ لَهَا ادخُلِى الصَّرحَ فَلَمّا رَأَتهُ حَسِبَتهُ لُجَّةً وَ كَشَفَت عَن ساقَيها قالَ إِنَّهُ صَرحٌ مُمَرَّدٌ مِن قَواريرَ قالَت رَبِّ إِنّى ظَلَمتُ نَفسى وَ أَسلَمتُ مَعَ سُلَيمٰنَ لِلَّهِ رَبِّ العٰلَمينَ (٤٤) ]] }}
به او گفته شد: «وارد ساحت کاخ (پادشاهی) شو.» پس چون دیدش، آن را برکه‌ای پنداشت و ساق‌های پایش را برگشود. سلیمان گفت: «بی‌گمان این کاخی مفروش از آبگینه‌هایی است.» (بلقیس) گفت: «من بی‌گمان به خود ستم کردم، و با (همراهی) سلیمان به پروردگار جهانیان (ایمان و) اسلام آوردم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٥ | وَ لَقَد أَرسَلنا إِلىٰ ثَمودَ أَخاهُم صٰلِحًا أَنِ اعبُدُوا اللَّهَ فَإِذا هُم فَريقانِ يَختَصِمونَ (٤٥) ]] }}
و همانا سوی ثمود، برادرشان صالح را به‌راستی فرستادیم که: «خدا را بپرستید.» پس به ناگهان آنان دو دسته‌اند (که) با هم بسی دشمنی می‌کنند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٦ | قالَ يٰقَومِ لِمَ تَستَعجِلونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبلَ الحَسَنَةِ لَولا تَستَغفِرونَ اللَّهَ لَعَلَّكُم تُرحَمونَ (٤٦) ]] }}
(صالح) گفت: «ای قوم من! چرا پیش از نیکی، به بدی شتاب می‌جویید؟ چرا از خدا پوشش نمی‌خواهید؟ شاید شما مورد رحمت قرار گیرید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٧ | قالُوا اطَّيَّرنا بِكَ وَ بِمَن مَعَكَ قالَ طٰئِرُكُم عِندَ اللَّهِ بَل أَنتُم قَومٌ تُفتَنونَ (٤٧) ]] }}
گفتند: «ما به تو و به هر کس (که) با تو است شگونِ (بد) زده‌ایم‌». گفت: «شگونتان نزد خداست. بلکه شما مردمی هستید که مورد آزمایشی آتشبار [:دشوار] قرار می‌گیرید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٨ | وَ كانَ فِى المَدينَةِ تِسعَةُ رَهطٍ يُفسِدونَ فِى الأَرضِ وَ لا يُصلِحونَ (٤٨) ]] }}
و در (آن) شهر نُه دسته بودند، که در آن سرزمین فساد می‌کردند و اصلاح نمی‌نمودند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٤٩ | قالوا تَقاسَموا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَ أَهلَهُ ثُمَّ لَنَقولَنَّ لِوَلِيِّهِ ما شَهِدنا مَهلِكَ أَهلِهِ وَ إِنّا لَصٰدِقونَ (٤٩) ]] }}
(با هم) گفتند: «با همدیگر به خدا سوگند یاد کنید که حتماً به او [:صالح] و کسانش شبیخون زنیم. سپس بی‌چون به ولیِّ (دم و وارث) او همی خواهیم گفت: ما در محلّ هلاکت اهلش [:صالحیان] حاضر نبودیم. و به‌راستی ما همواره راستگویانیم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٠ | وَ مَكَروا مَكرًا وَ مَكَرنا مَكرًا وَ هُم لا يَشعُرونَ (٥٠) ]] }}
و دست به نیرنگی (بزرگ) زدند و (ما نیز) دست به نیرنگی (بزرگ) زدیم در حالی‌که (آنان) باریک‌بینی نمی‌کنند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥١ | فَانظُر كَيفَ كانَ عٰقِبَةُ مَكرِهِم أَنّا دَمَّرنٰهُم وَ قَومَهُم أَجمَعينَ (٥١) ]] }}
پس بنگر فرجام نیرنگشان چگونه بود، که ما بی‌گمان آنان و قومشان، همگی را هلاک کردیم.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٢ | فَتِلكَ بُيوتُهُم خاوِيَةً بِما ظَلَموا إِنَّ فى ذٰلِكَ لَإيَةً لِقَومٍ يَعلَمونَ (٥٢) ]] }}
پس آنها (همان) خانه‌های آنان است که به (سزای) بیدادگریشان ویران است. به‌راستی در این (کیفر) برای مردمی که می‌دانند همواره نشانه‌ای است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٣ | وَ أَنجَينَا الَّذينَ إمَنوا وَ كانوا يَتَّقونَ (٥٣) ]] }}
و کسانی را که ایمان آورده‌اند و پرهیزگاری می‌کرده‌اند رهانیدیم.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٤ | وَ لوطًا إِذ قالَ لِقَومِهِ أَتَأتونَ الفٰحِشَةَ وَ أَنتُم تُبصِرونَ (٥٤) ]] }}
و (یاد کن) لوط را چون به قومش گفت: «آیا در حالی (که) می‌نگرید مرتکب (این) عمل ناشایست تجاوزگر می‌شوید؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٥ | أَئِنَّكُم لَتَأتونَ الرِّجالَ شَهوَةً مِن دونِ النِّساءِ بَل أَنتُم قَومٌ تَجهَلونَ (٥٥) ]] }}
«آیا شما بی‌گمان به جای زنان، همواره از روی شهوت با مردان در می‌آمیزید؟ بلکه شما مردمی هستید (که) نادانی می‌کنید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٦ | فَما كانَ جَوابَ قَومِهِ إِلّا أَن قالوا أَخرِجوا إلَ لوطٍ مِن قَريَتِكُم إِنَّهُم أُناسٌ يَتَطَهَّرونَ (٥٦) ]] }}
پس پاسخ قومش غیر از این نبود که گفتند: «خاندان لوط را از مجتمعتان بیرون کنید. آنها مردمانی هستند که سخت به پاکیز‌گی تظاهر می‌نمایند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٧ | فَأَنجَينٰهُ وَ أَهلَهُ إِلَّا امرَأَتَهُ قَدَّرنٰها مِنَ الغٰبِرينَ (٥٧) ]] }}
پس او و خانواده‌اش را نجات دادیم، جز زنش را که مقدّر کردیم از بازماندگان در غبار کفر باشد.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٨ | وَ أَمطَرنا عَلَيهِم مَطَرًا فَساءَ مَطَرُ المُنذَرينَ (٥٨) ]] }}
و بارانی (شدید از سنگ گل) بر سر (و سامان)‌شان فرو بارانیدیم. پس بارانِ هشدارداده‌شدگان چه بد بود.
{{قاب | متن = [[ النمل ٥٩ | قُلِ الحَمدُ لِلَّهِ وَ سَلٰمٌ عَلىٰ عِبادِهِ الَّذينَ اصطَفىٰ إللَّهُ خَيرٌ أَمّا يُشرِكونَ (٥٩) ]] }}
بگو: «همه‌ی سپاس‌ها برای خداست و درودی (فراوان) بر بندگان ویژه‌اش که آنان را به شایستگی برگزید.» آیا خدا بهتر است یا آنچه (با او) شریک می‌گردانند؟
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٠ | أَمَّن خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضَ وَ أَنزَلَ لَكُم مِنَ السَّماءِ ماءً فَأَنبَتنا بِهِ حَدائِقَ ذاتَ بَهجَةٍ ما كانَ لَكُم أَن تُنبِتوا شَجَرَها أَءِلٰهٌ مَعَ اللَّهِ بَل هُم قَومٌ يَعدِلونَ (٦٠) ]] }}
(آیا آنچه شریک می‌پندارند بهتر است) یا کسی که آسمان‌ها و زمین را آفرید و برای شما آبی از آسمان فرود آورد؛ پس با آن بستان‌هایی فرح‌انگیز به بار آورد؟ برای شما (هرگز چنان) نبوده است که درختش را برویانید. آیا با خدا، خدایی است؟ بلکه اینان گروهی می‌باشند که برای خدا همتا برمی‌گزینند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٦١ | أَمَّن جَعَلَ الأَرضَ قَرارًا وَ جَعَلَ خِلٰلَها أَنهٰرًا وَ جَعَلَ لَها رَوٰسِىَ وَ جَعَلَ بَينَ البَحرَينِ حاجِزًا أَءِلٰهٌ مَعَ اللَّهِ بَل أَكثَرُهُم لا يَعلَمونَ (٦١) ]] }}
(آیا شریکانی که می‌پندارند بهترند) یا آن کس که زمین را قرارگاهی ساخت و در جایاجایش رودهایی پدید آورد و برای آن (زمین کشتی‌وار) کوه‌هایی همچون میخ‌ها (مانند لنگرها) قرار داد و میان دو دریا پرده‌ای (ناپیدا) گذاشت‌؟ آیا معبودی با خداست‌؟ (نه) بلکه بیشترشان نمی‌دانند [:نادانی می‌کنند].
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٢ | أَمَّن يُجيبُ المُضطَرَّ إِذا دَعاهُ وَ يَكشِفُ السّوءَ وَ يَجعَلُكُم خُلَفاءَ الأَرضِ أَءِلٰهٌ مَعَ اللَّهِ قَليلًا ما تَذَكَّرونَ (٦٢) ]] }}
آیا کیست (کسی) که درمانده را - چون وی را بخواند - (به خوبی) اجابت می‌کند و گرفتاری(اش) را برطرف می‌گرداند و شما را جانشینان (دیگران در) زمین قرار می‌دهد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ چه کم است آنچه را یادآور می‌شوید.
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٣ | أَمَّن يَهديكُم فى ظُلُمٰتِ البَرِّ وَ البَحرِ وَ مَن يُرسِلُ الرِّيٰحَ بُشرًا بَينَ يَدَى رَحمَتِهِ أَءِلٰهٌ مَعَ اللَّهِ تَعٰلَى اللَّهُ عَمّا يُشرِكونَ (٦٣) ]] }}
یا کیست (آن‌که) شما را در (دل) تاریکی‌های خشکی و دریا راه می‌نماید و آن کس که بادها(ی رحمت‌زا) را پیشاپیش رحمتش به بشارتگری می‌فرستد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ خدا برتر (و بزرگ‌تر) است از آنچه (با او) شریک می‌گردانند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٤ | أَمَّن يَبدَؤُا۟ الخَلقَ ثُمَّ يُعيدُهُ وَ مَن يَرزُقُكُم مِنَ السَّماءِ وَ الأَرضِ أَءِلٰهٌ مَعَ اللَّهِ قُل هاتوا بُرهٰنَكُم إِن كُنتُم صٰدِقينَ (٦٤) ]] }}
یا کیست (که) آفرینش را آغاز می‌کند، سپس آن را باز می‌گرداند؟ و کیست (که) از آسمان و زمین به شما روزی می‌دهد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ بگو: «اگر (از) راستان بوده‌اید برهانتان را بیاورید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٥ | قُل لا يَعلَمُ مَن فِى السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ الغَيبَ إِلَّا اللَّهُ وَ ما يَشعُرونَ أَيّانَ يُبعَثونَ (٦٥) ]] }}
بگو: «هر (که) در آسمان‌ها و زمین است - جز خدا غیب (ویژه‌ی خدا) را نمی‌داند و هرگز نمی‌‌‌فهمند کی برانگیخته می‌شوند.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٦ | بَلِ ادّٰرَكَ عِلمُهُم فِى الإخِرَةِ بَل هُم فى شَكٍّ مِنها بَل هُم مِنها عَمونَ (٦٦) ]] }}
(نه،) بلکه علم آنان در آخرت تدارک یافته ! (که درآن جهل از روی عنادشان برطرف می‌شود)، بلکه ایشان در ژرفای شکی از آنند. بلکه آنان در مورد آن کور(دلان‌)اند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٧ | وَ قالَ الَّذينَ كَفَروا أَءِذا كُنّا تُرٰبًا وَ إباؤُنا أَئِنّا لَمُخرَجونَ (٦٧) ]] }}
و کسانی که کافر شدند، گفتند: «آیا وقتی ما خاک باشیم و پدرانمان (نیز خاک باشند) آیا به‌راستی همی (زنده از گور) بیرون‌شوندگانیم‌؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٨ | لَقَد وُعِدنا هٰذا نَحنُ وَ إباؤُنا مِن قَبلُ إِن هٰذا إِلّا أَسٰطيرُ الأَوَّلينَ (٦٨) ]] }}
بی‌گمان، ما و پدرانمان از پیش بی‌چون (به) این (رستاخیز) وعده داده شدیم. این جز افسانه و بافته‌های پیشینیان نیست.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٦٩ | قُل سيروا فِى الأَرضِ فَانظُروا كَيفَ كانَ عٰقِبَةُ المُجرِمينَ (٦٩) ]] }}
بگو: «در زمین سیر (و نگرش) کنید؛ پس بنگرید فرجام مجرمان چگونه بوده است.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٠ | وَ لا تَحزَن عَلَيهِم وَ لا تَكُن فى ضَيقٍ مِمّا يَمكُرونَ (٧٠) ]] }}
و بر آنان غم مخور و از آنچه مکر می‌کنند (هرگز) در تنگنایی مباش.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧١ | وَ يَقولونَ مَتىٰ هٰذَا الوَعدُ إِن كُنتُم صٰدِقينَ (٧١) ]] }}
و می‌گویند: «اگر (از) راستان بوده‌اید، این وعده کی خواهد بود؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٢ | قُل عَسىٰ أَن يَكونَ رَدِفَ لَكُم بَعضُ الَّذى تَستَعجِلونَ (٧٢) ]] }}
بگو: «شاید برخی از آنچه را به شتاب همی خواهید، برایتان ردیف (و) پیاپی بیاید.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٣ | وَ إِنَّ رَبَّكَ لَذو فَضلٍ عَلَى النّاسِ وَ لٰكِنَّ أَكثَرَهُم لا يَشكُرونَ (٧٣) ]] }}
و به‌راستی پروردگارت بی‌گمان بر مردمان کانون فضیلت است ولی بیشترشان سپاس نمی‌گزارند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٤ | وَ إِنَّ رَبَّكَ لَيَعلَمُ ما تُكِنُّ صُدورُهُم وَ ما يُعلِنونَ (٧٤) ]] }}
و همانا پروردگار تو آنچه را در سینه‌هایشان نهفته دارند و آنچه را آشکار می‌دارند همواره می‌داند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٥ | وَ ما مِن غائِبَةٍ فِى السَّماءِ وَ الأَرضِ إِلّا فى كِتٰبٍ مُبينٍ (٧٥) ]] }}
و هیچ (حالتی) پنهانی در آسمان و زمین نیست، مگر اینکه در کتابی روشنگر است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٦ | إِنَّ هٰذَا القُرإنَ يَقُصُّ عَلىٰ بَنى إِسرٰءيلَ أَكثَرَ الَّذى هُم فيهِ يَختَلِفونَ (٧٦) ]] }}
بی‌گمان، این قرآن بر فرزندان اسرائیل بیشترِ آنچه را که آنان درباره‌اش اختلاف دارند گزارش [:و برش تاریخی پیگیر] می‌دهد.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٧ | وَ إِنَّهُ لَهُدًى وَ رَحمَةٌ لِلمُؤمِنينَ (٧٧) ]] }}
و به‌راستی این (قرآن) برای مؤمنان همواره هدایت و رحمتی (کامل) است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٨ | إِنَّ رَبَّكَ يَقضى بَينَهُم بِحُكمِهِ وَ هُوَ العَزيزُ العَليمُ (٧٨) ]] }}
به‌درستی پروردگارت به حکم خود میان آنان داوری قطعی می‌کند. و اوست همان عزیز حکیم.
{{قاب | متن = [[ النمل ٧٩ | فَتَوَكَّل عَلَى اللَّهِ إِنَّكَ عَلَى الحَقِّ المُبينِ (٧٩) ]] }}
پس بر خدا توکّل کن که تو همواره بر(سرو سامان) تمامی حقِ آشکارگری.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٠ | إِنَّكَ لا تُسمِعُ المَوتىٰ وَ لا تُسمِعُ الصُّمَّ الدُّعاءَ إِذا وَلَّوا مُدبِرينَ (٨٠) ]] }}
البته تو مردگان را نمی‌شنوانی و خواسته‌ات را به کران - چون پشت گردانند - نمی‌شنوانی.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨١ | وَ ما أَنتَ بِهٰدِى العُمىِ عَن ضَلٰلَتِهِم إِن تُسمِعُ إِلّا مَن يُؤمِنُ بِـٔايٰتِنا فَهُم مُسلِمونَ (٨١) ]] }}
و تو راهبر کوردلان (و بازگرداننده‌ی آنان) از گمراهیشان نیستی. تو جز کسانی را که به نشانه‌های ما ایمان می‌آورند پس (برابر خدا) تسلیمند، نمی‌توانی بشنوانی.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٢ | وَ إِذا وَقَعَ القَولُ عَلَيهِم أَخرَجنا لَهُم دابَّةً مِنَ الأَرضِ تُكَلِّمُهُم أَنَّ النّاسَ كانوا بِـٔايٰتِنا لا يوقِنونَ (٨٢) ]] }}
و چون سخن (عذاب) بر ایشان فرود آید، جنبنده‌ای را از زمین برایشان بیرون می‌آوریم، در حالی‌که با ایشان (این‌گونه) سخن می‌گوید؛ مردمان بی‌گمان به نشانه‌های ما یقین نمی‌آورده‌اند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٣ | وَ يَومَ نَحشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ فَوجًا مِمَّن يُكَذِّبُ بِـٔايٰتِنا فَهُم يوزَعونَ (٨٣) ]] }}
و روزی از هر امّتی گروهی شتابان (در تکذیب حق) از کسانی را که با نشانه‌های ما (همان‌ها و ما را) تکذیب می‌کنند محشور می‌گردانیم ، تا آنان، همگان، با نگهبانی (ربانی) گردآوری شوند؛ پس پراکنده نگردند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٤ | حَتّىٰ إِذا جاءو قالَ أَكَذَّبتُم بِـٔايٰتى وَ لَم تُحيطوا بِها عِلمًا أَمّاذا كُنتُم تَعمَلونَ (٨٤) ]] }}
تا چون (آن تکذیب‌کنندگان) بیایند، فرماید: «آیا با نشانه‌هایم (همان‌ها و ما را) تکذیب کردید، در حالی که احاطه‌ی علمی به آنها نداشتید؟ یا چه می‌کرده‌اید؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٥ | وَ وَقَعَ القَولُ عَلَيهِم بِما ظَلَموا فَهُم لا يَنطِقونَ (٨٥) ]] }}
و به (کیفر) آنچه ستم کردند، (آن) گفته و وعده(ی عذاب) بر آنان فرود آید. پس ایشان دم برنیاورند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٦ | أَلَم يَرَوا أَنّا جَعَلنَا الَّيلَ لِيَسكُنوا فيهِ وَ النَّهارَ مُبصِرًا إِنَّ فى ذٰلِكَ لَإيٰتٍ لِقَومٍ يُؤمِنونَ (٨٦) ]] }}
آیا ندیده‌اند که ما شب را قرار داده‌ایم تا در آن بیاسایند و روز را روشنی‌بخش (گردانیدیم)؟ همانا در آن (جریان) برای مردمی که ایمان می‌آورند بی‌گمان نشانه‌هایی (بزرگ) است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٧ | وَ يَومَ يُنفَخُ فِى الصّورِ فَفَزِعَ مَن فِى السَّمٰوٰتِ وَ مَن فِى الأَرضِ إِلّا مَن شاءَ اللَّهُ وَ كُلٌّ أَتَوهُ دٰخِرينَ (٨٧) ]] }}
و روزی که در صور [:بوق جان‌فرسا] دمیده شود، پس هر کس در آسمان‌ها و زمین است (سخت) به هراس (و بی‌هوشی) اُفتد - مگر آن کس که خدا خواسته - و جملگی با زبونی رو سوی او آوردند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٨ | وَ تَرَى الجِبالَ تَحسَبُها جامِدَةً وَ هِىَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحابِ صُنعَ اللَّهِ الَّذى أَتقَنَ كُلَّ شَيءٍ إِنَّهُ خَبيرٌ بِما تَفعَلونَ (٨٨) ]] }}
و کوه‌ها را می‌بینی در حالی‌که آنها را بی‌حرکت می‌پنداری، حال آنکه آنها (همچون) مرور ابر حرکت می‌کنند. ساخته‌ی خدا را (ببینید) که هر چیز را سازوار کرده. او بی‌گمان به آنچه انجام می‌دهید بسی آگاه است.
{{قاب | متن = [[ النمل ٨٩ | مَن جاءَ بِالحَسَنَةِ فَلَهُ خَيرٌ مِنها وَ هُم مِن فَزَعٍ يَومَئِذٍ إمِنونَ (٨٩) ]] }}
کسانی که با نیکی بیایند، در نتیجه پاداشی بهتر از آن برایشان است و حال آنکه آنان از هراسی بزرگ در چنان روزی در امانند.
{{قاب | متن = [[ النمل ٩٠ | وَ مَن جاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّت وُجوهُهُم فِى النّارِ هَل تُجزَونَ إِلّا ما كُنتُم تَعمَلونَ (٩٠) ]] }}
و کسانی که با بدی بیایند، در نتیجه به رو در آتش (دوزخ) سرنگون شوند، (و به آنان گفته شود:) «آیا جز آنچه می‌کرده‌اید سزا داده می‌شوید؟»
{{قاب | متن = [[ النمل ٩١ | إِنَّما أُمِرتُ أَن أَعبُدَ رَبَّ هٰذِهِ البَلدَةِ الَّذى حَرَّمَها وَ لَهُ كُلُّ شَيءٍ وَ أُمِرتُ أَن أَكونَ مِنَ المُسلِمينَ (٩١) ]] }}
«جز این نیست که من مأمور شدم تنها پروردگار این مجتمع را -که محرّم و محترم و قُرُق‌گاه شمرده و هر چیزی از اوست – بپرستم و فرمان یافتم (در برابرش) از تسلیم‌کنندگان (خود و دیگران) باشم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٩٢ | وَ أَن أَتلُوَا۟ القُرإنَ فَمَنِ اهتَدىٰ فَإِنَّما يَهتَدى لِنَفسِهِ وَ مَن ضَلَّ فَقُل إِنَّما أَنا۠ مِنَ المُنذِرينَ (٩٢) ]] }}
«و اینکه قرآن را بخوانم و (آن را) پیروی کنم.» پس هر کس راه یابد در نتیجه تنها به سود خود راه می‌یابد و هر کس گمراه شود پس بگو: «من تنها از هشداردهندگانم.»
{{قاب | متن = [[ النمل ٩٣ | وَ قُلِ الحَمدُ لِلَّهِ سَيُريكُم إيٰتِهِ فَتَعرِفونَها وَ ما رَبُّكَ بِغٰفِلٍ عَمّا تَعمَلونَ (٩٣) ]] }}
و بگو: «تمام ستایش‌ها برای خداست. به زودی آیاتش را به شما نشان خواهد داد، پس آنها را خواهید شناخت.» و پروردگارت از آنچه می‌کنید غافل نیست.


==محتوای سوره==
==محتوای سوره==

نسخهٔ کنونی تا ‏۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۱:۳۷

سوره الشعراء سوره النمل سوره القصص
شماره کتابت : ٢٧
جزء :
نزول
ترتيب نزول : ٤٨
محل نزول : مكه
اطلاعات آماری
تعداد آیات : ٩٣
تعداد کلمات : ١٣٠٠
تعداد حروف :
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متن سوره

طس. این‌هاست آیات قرآن و کتابی روشنگر.

حال آنکه هدایت و بشارتی است برای مؤمنان.

کسانی که نماز را بر پا می‌دارند و زکات را می‌دهند و آنان، (هم)آنان به آخرت یقین می‌آورند.

بی‌گمان کسانی که به آخرت ایمان نمی‌آورند، کردارهایشان را برایشان بیاراستیم؛ پس ایشان سرگشته می‌گردند.

آنان کسانی‌اند که بدی عذاب برایشان است و آنان در آخرت، همانا زیانکارترین (مکلفان)اند.

و همواره تو قرآن را به‌راستی از نزد حکیمی بس دانا به‌درستی - به گونه‌ای مماس - دریافت می‌داری.

چون موسی به خانواده‌ی خود گفت: «من به‌راستی با آتشی انس گرفتم، به زودی برای شما خبری از آن خواهم آورد، یا شعله‌ی آتشی برای شما می‌آورم، شاید گیرانه‌ای (از آن) برگیرید.»

پس چون نزد آن آتش آمد، آوازی بلند در رسیدش: «مبارک گردید آن که در این آتش [:نور وحی] و آن که پیرامون آن است و منزّه است خدا، پروردگار جهانیان.»

«ای موسی! همانا او، منم؛ خدای عزیز حکیم.»

«و اینکه عصایت را بیفکن.» پس چون آن را همچون ماری کوچک بدید که می‌جنبد، (بدان) پشت گردانید و به عقب (هم نگاهِ خود را) باز نگردانید: «ای موسی! مترس که فرستادگان (من) هرگز نزد من نمی‌ترسند؛»

«مگر کسی که ستم کرد. سپس - بعد از بدی - نیکی را جایگزین (آن) گردانید، پس من همواره بسی پوشنده‌ی رحمتگر بر ویژگانم.»

«و دستت را در گریبانت ببر تا سپیدی بی‌عیب برون آید؛ در نشانه‌های نُه‌گانه‌ای (که باید) سوی فرعون و قومش (ببری). آنان بی‌گمان مردمی نافرمان بوده‌اند.»

پس چون نشانه‌‌های ما -بینا کننده- برایشان آمد گفتند: «این سحری آشکارگر است.»

و حال آنکه (از عمق) جان‌هایشان به آن (نشانه‌های ربانی) یقین داشتند، از روی ظلم و تکبّر آنها را انکار (و انگار) کردند. پس بنگر (که) فرجام افسادگران چگونه بود.

و همواره به داوود و سلیمان به‌راستی علمی (وحیانی) دادیم، و آن دو گفتند: «تمام ستایش‌ها در انحصار خدایی است که ما را بر بسیاری از بندگانِ باایمانش برتری داده است.»

و سلیمان از داوود میراث یافت و گفت: «ای مردمان! ما زبان پرندگان را آموخته‌ایم و از هر چیزی (همانندش) داده شده‌ایم. به‌راستی این همانا فضلیت روشنگر است.»

و برای سلیمان، سپاهیانش - از جنّ و انس و پرندگان- جمع‌آوری شدند، پس آنان (از پراکندگی) نگهبانی می‌شوند]: متفرق نمی‌شوند[.

تا آن‌گاه که به مکان مورچگان رسیدند. مورچه‌ای (از فرماندهان مورچگان) گفت: «ای مورچگان! به جایگاه‌هایتان داخل شوید، مبادا سلیمان و سپاهیانش - ندیده و ندانسته - به سختی شما را پایمال کنند.»

پس (سلیمان) از گفتارش- در حال خنده‌اش- تبسمی کرد و گفت: «پروردگارم! مرا از گسیختگی نگه‌دار تا نعمتی را که به من و پدر و مادرم داده‌ای سپاس بگزارم و به کار شایسته‌ای که آن را می‌پسندی بپردازم و مرا به رحمت خویش در میان شایستگانِ (از) بندگانت داخل گردان.»

و در جستجوی پرندگان برآمد. پس گفت: «مرا چه شده که هدهد را نمی‌بینم‌؟ یا (اینکه) از غایبان بوده است‌؟»

«بی‌گمان او را به عذابی سخت همواره عذاب می‌کنم یا سرش را همی بی‌چون می‌برم، مگر آنکه به‌راستی دلیلی روشنگر به‌درستی (بر غیبت خود) برایم بیاورد.»

پس دیری نپایید (که هدهد آمد). پس گفت: «از چیزی آگاهی یافتم که (تو) بدان آگاهی نیافته‌ای و برایت از (کشور) سبا گزارشی مهم (و) یقینی آورده‌ام.»

«من به‌راستی زنی را یافتم که مالک (و اختیاردار) آنهاست و از هر چیزی (از مال و منال دنیا) به او داده شده، و برای او تخت (پادشاهی) بزرگی است.»

«او و قومش را چنان یافتم که به جای خدا برای خورشید سجده می‌کنند، حال آنکه شیطان اعمالشان را برایشان آراسته، در نتیجه آنان را از راه (راست) باز داشته، پس ایشان راه (حق) را نمی‌یابند.»

(آری، شیطان چنین کرده بود) تا برای خدایی که نهان را در آسمان‌ها و زمین بیرون می‌آورد و آنچه را پنهان می‌دارید و آنچه را آشکار می‌نمایید می‌داند، سجده نکنند.

خدا -هیچ معبودی جز او نیست- پروردگار عرشِ بزرگ است.

گفت: «خواهیم دید آیا راست گفتی یا از دروغگویان بوده‌ای.»

«این نامه‌ی مرا ببر. پس آن را سویشان بیفکن. سپس از ایشان روی بگردان، تا بنگری (که) چه بازگشتی (و پیامدی) دارند.»

(ملکه‌ی سبا) گفت: «هان ای سران چشمگیر (کشور)! بی‌گمان نامه‌ای ارجمند سویم افکنده شده است.»

«به‌راستی این نامه از طرف سلیمان است و به‌درستی (مضمونش این است): به نام خدای رحمتگر بر آفریدگان، رحمتگر بر ویژگان.»

«اینکه بر من برتری مجویید و با حالت تسلیم نزد من آیید.»

(ملکه‌ی سبا) گفت: «ای سران چشمگیر (کشورم)! مرا در کارم (با مشورت) رأیی تازه و شایسته دهید، بی‌گواهیتان به نزدم کاری را (هرگز) فیصله نمی‌داده‌ام.»

گفتند: «ما سخت نیرومند و دلاوریم و (اما) کل فرمان (تنها) سوی توست. پس بنگر چه فرمان می‌دهی‌؟»

(ملکه) گفت: «همواره پادشاهان چون به مجتمعی درآیند، آن را تباه و بی‌مقدار و عزیزانش را خوار می‌گردانند و همین‌گونه (ویرانی) می‌کنند.»

«و من حتماً فرستنده‌ی هدیه‌ای سویشان هستم. پس نگرانم (که) فرستادگان با چه (حالی) باز می‌گردند.»

پس هنگامی که (فرستاده‌اش) نزد سلیمان آمد، (سلیمان) گفت: «آیا مرا با مالی (سوی خود) می‌کشید و کمک می‌کنید؟ پس آنچه خدا به من داده، بهتر است از آنچه به شما داده. (نه،) بلکه به ارمغان خود شادمانی می‌کنید.»

«به سویشان بازگرد تا بی‌چون (و) بی‌گمان با سپاهیانی سویشان روان می‌شویم که در برابر آنان تاب ایستادگی نداشته باشند و بی‌امان از آن (دیار) همواره به خواری و بی‌مقداری بیرونشان می‌کنیم.»

(سپس) گفت: «ای سران (کشور)! کدام یک از شما تخت او را - پیش از آنکه مطیعانه نزدم آیند - برایم می‌آورد؟»

بزرگواری از جنیان گفت: «من آن را پیش از آنکه از جایگاه خود برخیزی برایت می‌‌آورم. همانا من بر این(کار) سخت توانا و امانت‌دارم.»

کسی که نزد او دانشی از کتاب (ربانی) بود، گفت: «من آن را پیش از آنکه چشم خود را بر هم زنی برایت آورنده‌ام.» پس چون (سلیمان) آن (تخت) را نزد خود مستقر دید، گفت: «این از فضل پروردگار من است، تا مرا بیازماید (که) آیا شکر می‌گزارم یا کفران می‌ورزم. و هر که سپاس گزارد، تنها به سود خویش سپاس می‌گزارد و هر که ناسپاسی کند، پس همانا پروردگارم بسی بی‌نیاز کریم است.»

گفت: «تخت (ملکه) را برایش ناشناس گردانید تا ببینیم آیا (بدان) رهنمون می‌شود یا از کسانی است که (به آن) راه نمی‌یابند.»

پس چون (ملکه) آمد، (بدو) گفته شد: «آیا تخت تو همین‌گونه است‌؟» گفت: «گویا این همان است و پیش از این هم ما آگاه شده و از تسلیم‌شدگان بوده‌ایم.»

و آنچه را غیر از خدا می‌پرستید مانع (ایمان) او شده بود. همانا او از گروه کافران بود.

به او گفته شد: «وارد ساحت کاخ (پادشاهی) شو.» پس چون دیدش، آن را برکه‌ای پنداشت و ساق‌های پایش را برگشود. سلیمان گفت: «بی‌گمان این کاخی مفروش از آبگینه‌هایی است.» (بلقیس) گفت: «من بی‌گمان به خود ستم کردم، و با (همراهی) سلیمان به پروردگار جهانیان (ایمان و) اسلام آوردم.»

و همانا سوی ثمود، برادرشان صالح را به‌راستی فرستادیم که: «خدا را بپرستید.» پس به ناگهان آنان دو دسته‌اند (که) با هم بسی دشمنی می‌کنند.

(صالح) گفت: «ای قوم من! چرا پیش از نیکی، به بدی شتاب می‌جویید؟ چرا از خدا پوشش نمی‌خواهید؟ شاید شما مورد رحمت قرار گیرید.»

گفتند: «ما به تو و به هر کس (که) با تو است شگونِ (بد) زده‌ایم‌». گفت: «شگونتان نزد خداست. بلکه شما مردمی هستید که مورد آزمایشی آتشبار [:دشوار] قرار می‌گیرید.»

و در (آن) شهر نُه دسته بودند، که در آن سرزمین فساد می‌کردند و اصلاح نمی‌نمودند.

(با هم) گفتند: «با همدیگر به خدا سوگند یاد کنید که حتماً به او [:صالح] و کسانش شبیخون زنیم. سپس بی‌چون به ولیِّ (دم و وارث) او همی خواهیم گفت: ما در محلّ هلاکت اهلش [:صالحیان] حاضر نبودیم. و به‌راستی ما همواره راستگویانیم.»

و دست به نیرنگی (بزرگ) زدند و (ما نیز) دست به نیرنگی (بزرگ) زدیم در حالی‌که (آنان) باریک‌بینی نمی‌کنند.

پس بنگر فرجام نیرنگشان چگونه بود، که ما بی‌گمان آنان و قومشان، همگی را هلاک کردیم.

پس آنها (همان) خانه‌های آنان است که به (سزای) بیدادگریشان ویران است. به‌راستی در این (کیفر) برای مردمی که می‌دانند همواره نشانه‌ای است.

و کسانی را که ایمان آورده‌اند و پرهیزگاری می‌کرده‌اند رهانیدیم.

و (یاد کن) لوط را چون به قومش گفت: «آیا در حالی (که) می‌نگرید مرتکب (این) عمل ناشایست تجاوزگر می‌شوید؟»

«آیا شما بی‌گمان به جای زنان، همواره از روی شهوت با مردان در می‌آمیزید؟ بلکه شما مردمی هستید (که) نادانی می‌کنید.»

پس پاسخ قومش غیر از این نبود که گفتند: «خاندان لوط را از مجتمعتان بیرون کنید. آنها مردمانی هستند که سخت به پاکیز‌گی تظاهر می‌نمایند.»

پس او و خانواده‌اش را نجات دادیم، جز زنش را که مقدّر کردیم از بازماندگان در غبار کفر باشد.

و بارانی (شدید از سنگ گل) بر سر (و سامان)‌شان فرو بارانیدیم. پس بارانِ هشدارداده‌شدگان چه بد بود.

بگو: «همه‌ی سپاس‌ها برای خداست و درودی (فراوان) بر بندگان ویژه‌اش که آنان را به شایستگی برگزید.» آیا خدا بهتر است یا آنچه (با او) شریک می‌گردانند؟

(آیا آنچه شریک می‌پندارند بهتر است) یا کسی که آسمان‌ها و زمین را آفرید و برای شما آبی از آسمان فرود آورد؛ پس با آن بستان‌هایی فرح‌انگیز به بار آورد؟ برای شما (هرگز چنان) نبوده است که درختش را برویانید. آیا با خدا، خدایی است؟ بلکه اینان گروهی می‌باشند که برای خدا همتا برمی‌گزینند.

(آیا شریکانی که می‌پندارند بهترند) یا آن کس که زمین را قرارگاهی ساخت و در جایاجایش رودهایی پدید آورد و برای آن (زمین کشتی‌وار) کوه‌هایی همچون میخ‌ها (مانند لنگرها) قرار داد و میان دو دریا پرده‌ای (ناپیدا) گذاشت‌؟ آیا معبودی با خداست‌؟ (نه) بلکه بیشترشان نمی‌دانند [:نادانی می‌کنند].

آیا کیست (کسی) که درمانده را - چون وی را بخواند - (به خوبی) اجابت می‌کند و گرفتاری(اش) را برطرف می‌گرداند و شما را جانشینان (دیگران در) زمین قرار می‌دهد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ چه کم است آنچه را یادآور می‌شوید.

یا کیست (آن‌که) شما را در (دل) تاریکی‌های خشکی و دریا راه می‌نماید و آن کس که بادها(ی رحمت‌زا) را پیشاپیش رحمتش به بشارتگری می‌فرستد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ خدا برتر (و بزرگ‌تر) است از آنچه (با او) شریک می‌گردانند.

یا کیست (که) آفرینش را آغاز می‌کند، سپس آن را باز می‌گرداند؟ و کیست (که) از آسمان و زمین به شما روزی می‌دهد؟ آیا معبودی با خداست‌؟ بگو: «اگر (از) راستان بوده‌اید برهانتان را بیاورید.»

بگو: «هر (که) در آسمان‌ها و زمین است - جز خدا غیب (ویژه‌ی خدا) را نمی‌داند و هرگز نمی‌‌‌فهمند کی برانگیخته می‌شوند.»

(نه،) بلکه علم آنان در آخرت تدارک یافته ! (که درآن جهل از روی عنادشان برطرف می‌شود)، بلکه ایشان در ژرفای شکی از آنند. بلکه آنان در مورد آن کور(دلان‌)اند.

و کسانی که کافر شدند، گفتند: «آیا وقتی ما خاک باشیم و پدرانمان (نیز خاک باشند) آیا به‌راستی همی (زنده از گور) بیرون‌شوندگانیم‌؟»

بی‌گمان، ما و پدرانمان از پیش بی‌چون (به) این (رستاخیز) وعده داده شدیم. این جز افسانه و بافته‌های پیشینیان نیست.»

بگو: «در زمین سیر (و نگرش) کنید؛ پس بنگرید فرجام مجرمان چگونه بوده است.»

و بر آنان غم مخور و از آنچه مکر می‌کنند (هرگز) در تنگنایی مباش.

و می‌گویند: «اگر (از) راستان بوده‌اید، این وعده کی خواهد بود؟»

بگو: «شاید برخی از آنچه را به شتاب همی خواهید، برایتان ردیف (و) پیاپی بیاید.»

و به‌راستی پروردگارت بی‌گمان بر مردمان کانون فضیلت است ولی بیشترشان سپاس نمی‌گزارند.

و همانا پروردگار تو آنچه را در سینه‌هایشان نهفته دارند و آنچه را آشکار می‌دارند همواره می‌داند.

و هیچ (حالتی) پنهانی در آسمان و زمین نیست، مگر اینکه در کتابی روشنگر است.

بی‌گمان، این قرآن بر فرزندان اسرائیل بیشترِ آنچه را که آنان درباره‌اش اختلاف دارند گزارش [:و برش تاریخی پیگیر] می‌دهد.

و به‌راستی این (قرآن) برای مؤمنان همواره هدایت و رحمتی (کامل) است.

به‌درستی پروردگارت به حکم خود میان آنان داوری قطعی می‌کند. و اوست همان عزیز حکیم.

پس بر خدا توکّل کن که تو همواره بر(سرو سامان) تمامی حقِ آشکارگری.

البته تو مردگان را نمی‌شنوانی و خواسته‌ات را به کران - چون پشت گردانند - نمی‌شنوانی.

و تو راهبر کوردلان (و بازگرداننده‌ی آنان) از گمراهیشان نیستی. تو جز کسانی را که به نشانه‌های ما ایمان می‌آورند پس (برابر خدا) تسلیمند، نمی‌توانی بشنوانی.

و چون سخن (عذاب) بر ایشان فرود آید، جنبنده‌ای را از زمین برایشان بیرون می‌آوریم، در حالی‌که با ایشان (این‌گونه) سخن می‌گوید؛ مردمان بی‌گمان به نشانه‌های ما یقین نمی‌آورده‌اند.

و روزی از هر امّتی گروهی شتابان (در تکذیب حق) از کسانی را که با نشانه‌های ما (همان‌ها و ما را) تکذیب می‌کنند محشور می‌گردانیم ، تا آنان، همگان، با نگهبانی (ربانی) گردآوری شوند؛ پس پراکنده نگردند.

تا چون (آن تکذیب‌کنندگان) بیایند، فرماید: «آیا با نشانه‌هایم (همان‌ها و ما را) تکذیب کردید، در حالی که احاطه‌ی علمی به آنها نداشتید؟ یا چه می‌کرده‌اید؟»

و به (کیفر) آنچه ستم کردند، (آن) گفته و وعده(ی عذاب) بر آنان فرود آید. پس ایشان دم برنیاورند.

آیا ندیده‌اند که ما شب را قرار داده‌ایم تا در آن بیاسایند و روز را روشنی‌بخش (گردانیدیم)؟ همانا در آن (جریان) برای مردمی که ایمان می‌آورند بی‌گمان نشانه‌هایی (بزرگ) است.

و روزی که در صور [:بوق جان‌فرسا] دمیده شود، پس هر کس در آسمان‌ها و زمین است (سخت) به هراس (و بی‌هوشی) اُفتد - مگر آن کس که خدا خواسته - و جملگی با زبونی رو سوی او آوردند.

و کوه‌ها را می‌بینی در حالی‌که آنها را بی‌حرکت می‌پنداری، حال آنکه آنها (همچون) مرور ابر حرکت می‌کنند. ساخته‌ی خدا را (ببینید) که هر چیز را سازوار کرده. او بی‌گمان به آنچه انجام می‌دهید بسی آگاه است.

کسانی که با نیکی بیایند، در نتیجه پاداشی بهتر از آن برایشان است و حال آنکه آنان از هراسی بزرگ در چنان روزی در امانند.

و کسانی که با بدی بیایند، در نتیجه به رو در آتش (دوزخ) سرنگون شوند، (و به آنان گفته شود:) «آیا جز آنچه می‌کرده‌اید سزا داده می‌شوید؟»

«جز این نیست که من مأمور شدم تنها پروردگار این مجتمع را -که محرّم و محترم و قُرُق‌گاه شمرده و هر چیزی از اوست – بپرستم و فرمان یافتم (در برابرش) از تسلیم‌کنندگان (خود و دیگران) باشم.»

«و اینکه قرآن را بخوانم و (آن را) پیروی کنم.» پس هر کس راه یابد در نتیجه تنها به سود خود راه می‌یابد و هر کس گمراه شود پس بگو: «من تنها از هشداردهندگانم.»

و بگو: «تمام ستایش‌ها برای خداست. به زودی آیاتش را به شما نشان خواهد داد، پس آنها را خواهید شناخت.» و پروردگارت از آنچه می‌کنید غافل نیست.


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