سوره ص: تفاوت میان نسخهها
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{{ سوره | نام =سوره ص | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::38|٣٨]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::38|٣٨]] | آیه = [[تعداد آیات::88|٨٨]] | بعدی = سوره الزمر | قبلی = سوره الصافات | کلمه = [[تعداد کلمات::824|٨٢٤]] | حرف = }} | {{ سوره | نام =سوره ص | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::38|٣٨]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::38|٣٨]] | آیه = [[تعداد آیات::88|٨٨]] | بعدی = سوره الزمر | قبلی = سوره الصافات | کلمه = [[تعداد کلمات::824|٨٢٤]] | حرف = }} | ||
''' لیست آیات ''' | {| width="75%" | ||
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|''' لیست آیات ''' | |||
[[ ص ١ | ١ ]] [[ ص ٢ | ٢ ]] [[ ص ٣ | ٣ ]] [[ ص ٤ | ٤ ]] [[ ص ٥ | ٥ ]] [[ ص ٦ | ٦ ]] [[ ص ٧ | ٧ ]] [[ ص ٨ | ٨ ]] [[ ص ٩ | ٩ ]] [[ ص ١٠ | ١٠ ]] [[ ص ١١ | ١١ ]] [[ ص ١٢ | ١٢ ]] [[ ص ١٣ | ١٣ ]] [[ ص ١٤ | ١٤ ]] [[ ص ١٥ | ١٥ ]] [[ ص ١٦ | ١٦ ]] [[ ص ١٧ | ١٧ ]] [[ ص ١٨ | ١٨ ]] [[ ص ١٩ | ١٩ ]] [[ ص ٢٠ | ٢٠ ]] [[ ص ٢١ | ٢١ ]] [[ ص ٢٢ | ٢٢ ]] [[ ص ٢٣ | ٢٣ ]] [[ ص ٢٤ | ٢٤ ]] [[ ص ٢٥ | ٢٥ ]] [[ ص ٢٦ | ٢٦ ]] [[ ص ٢٧ | ٢٧ ]] [[ ص ٢٨ | ٢٨ ]] [[ ص ٢٩ | ٢٩ ]] [[ ص ٣٠ | ٣٠ ]] [[ ص ٣١ | ٣١ ]] [[ ص ٣٢ | ٣٢ ]] [[ ص ٣٣ | ٣٣ ]] [[ ص ٣٤ | ٣٤ ]] [[ ص ٣٥ | ٣٥ ]] [[ ص ٣٦ | ٣٦ ]] [[ ص ٣٧ | ٣٧ ]] [[ ص ٣٨ | ٣٨ ]] [[ ص ٣٩ | ٣٩ ]] [[ ص ٤٠ | ٤٠ ]] [[ ص ٤١ | ٤١ ]] [[ ص ٤٢ | ٤٢ ]] [[ ص ٤٣ | ٤٣ ]] [[ ص ٤٤ | ٤٤ ]] [[ ص ٤٥ | ٤٥ ]] [[ ص ٤٦ | ٤٦ ]] [[ ص ٤٧ | ٤٧ ]] [[ ص ٤٨ | ٤٨ ]] [[ ص ٤٩ | ٤٩ ]] [[ ص ٥٠ | ٥٠ ]] [[ ص ٥١ | ٥١ ]] [[ ص ٥٢ | ٥٢ ]] [[ ص ٥٣ | ٥٣ ]] [[ ص ٥٤ | ٥٤ ]] [[ ص ٥٥ | ٥٥ ]] [[ ص ٥٦ | ٥٦ ]] [[ ص ٥٧ | ٥٧ ]] [[ ص ٥٨ | ٥٨ ]] [[ ص ٥٩ | ٥٩ ]] [[ ص ٦٠ | ٦٠ ]] [[ ص ٦١ | ٦١ ]] [[ ص ٦٢ | ٦٢ ]] [[ ص ٦٣ | ٦٣ ]] [[ ص ٦٤ | ٦٤ ]] [[ ص ٦٥ | ٦٥ ]] [[ ص ٦٦ | ٦٦ ]] [[ ص ٦٧ | ٦٧ ]] [[ ص ٦٨ | ٦٨ ]] [[ ص ٦٩ | ٦٩ ]] [[ ص ٧٠ | ٧٠ ]] [[ ص ٧١ | ٧١ ]] [[ ص ٧٢ | ٧٢ ]] [[ ص ٧٣ | ٧٣ ]] [[ ص ٧٤ | ٧٤ ]] [[ ص ٧٥ | ٧٥ ]] [[ ص ٧٦ | ٧٦ ]] [[ ص ٧٧ | ٧٧ ]] [[ ص ٧٨ | ٧٨ ]] [[ ص ٧٩ | ٧٩ ]] [[ ص ٨٠ | ٨٠ ]] [[ ص ٨١ | ٨١ ]] [[ ص ٨٢ | ٨٢ ]] [[ ص ٨٣ | ٨٣ ]] [[ ص ٨٤ | ٨٤ ]] [[ ص ٨٥ | ٨٥ ]] [[ ص ٨٦ | ٨٦ ]] [[ ص ٨٧ | ٨٧ ]] [[ ص ٨٨ | ٨٨ ]] | [[ ص ١ | ١ ]] [[ ص ٢ | ٢ ]] [[ ص ٣ | ٣ ]] [[ ص ٤ | ٤ ]] [[ ص ٥ | ٥ ]] [[ ص ٦ | ٦ ]] [[ ص ٧ | ٧ ]] [[ ص ٨ | ٨ ]] [[ ص ٩ | ٩ ]] [[ ص ١٠ | ١٠ ]] [[ ص ١١ | ١١ ]] [[ ص ١٢ | ١٢ ]] [[ ص ١٣ | ١٣ ]] [[ ص ١٤ | ١٤ ]] [[ ص ١٥ | ١٥ ]] [[ ص ١٦ | ١٦ ]] [[ ص ١٧ | ١٧ ]] [[ ص ١٨ | ١٨ ]] [[ ص ١٩ | ١٩ ]] [[ ص ٢٠ | ٢٠ ]] [[ ص ٢١ | ٢١ ]] [[ ص ٢٢ | ٢٢ ]] [[ ص ٢٣ | ٢٣ ]] [[ ص ٢٤ | ٢٤ ]] [[ ص ٢٥ | ٢٥ ]] [[ ص ٢٦ | ٢٦ ]] [[ ص ٢٧ | ٢٧ ]] [[ ص ٢٨ | ٢٨ ]] [[ ص ٢٩ | ٢٩ ]] [[ ص ٣٠ | ٣٠ ]] [[ ص ٣١ | ٣١ ]] [[ ص ٣٢ | ٣٢ ]] [[ ص ٣٣ | ٣٣ ]] [[ ص ٣٤ | ٣٤ ]] [[ ص ٣٥ | ٣٥ ]] [[ ص ٣٦ | ٣٦ ]] [[ ص ٣٧ | ٣٧ ]] [[ ص ٣٨ | ٣٨ ]] [[ ص ٣٩ | ٣٩ ]] [[ ص ٤٠ | ٤٠ ]] [[ ص ٤١ | ٤١ ]] [[ ص ٤٢ | ٤٢ ]] [[ ص ٤٣ | ٤٣ ]] [[ ص ٤٤ | ٤٤ ]] [[ ص ٤٥ | ٤٥ ]] [[ ص ٤٦ | ٤٦ ]] [[ ص ٤٧ | ٤٧ ]] [[ ص ٤٨ | ٤٨ ]] [[ ص ٤٩ | ٤٩ ]] [[ ص ٥٠ | ٥٠ ]] [[ ص ٥١ | ٥١ ]] [[ ص ٥٢ | ٥٢ ]] [[ ص ٥٣ | ٥٣ ]] [[ ص ٥٤ | ٥٤ ]] [[ ص ٥٥ | ٥٥ ]] [[ ص ٥٦ | ٥٦ ]] [[ ص ٥٧ | ٥٧ ]] [[ ص ٥٨ | ٥٨ ]] [[ ص ٥٩ | ٥٩ ]] [[ ص ٦٠ | ٦٠ ]] [[ ص ٦١ | ٦١ ]] [[ ص ٦٢ | ٦٢ ]] [[ ص ٦٣ | ٦٣ ]] [[ ص ٦٤ | ٦٤ ]] [[ ص ٦٥ | ٦٥ ]] [[ ص ٦٦ | ٦٦ ]] [[ ص ٦٧ | ٦٧ ]] [[ ص ٦٨ | ٦٨ ]] [[ ص ٦٩ | ٦٩ ]] [[ ص ٧٠ | ٧٠ ]] [[ ص ٧١ | ٧١ ]] [[ ص ٧٢ | ٧٢ ]] [[ ص ٧٣ | ٧٣ ]] [[ ص ٧٤ | ٧٤ ]] [[ ص ٧٥ | ٧٥ ]] [[ ص ٧٦ | ٧٦ ]] [[ ص ٧٧ | ٧٧ ]] [[ ص ٧٨ | ٧٨ ]] [[ ص ٧٩ | ٧٩ ]] [[ ص ٨٠ | ٨٠ ]] [[ ص ٨١ | ٨١ ]] [[ ص ٨٢ | ٨٢ ]] [[ ص ٨٣ | ٨٣ ]] [[ ص ٨٤ | ٨٤ ]] [[ ص ٨٥ | ٨٥ ]] [[ ص ٨٦ | ٨٦ ]] [[ ص ٨٧ | ٨٧ ]] [[ ص ٨٨ | ٨٨ ]] | ||
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==متن سوره== | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ ص وَ القُرإنِ ذِى الذِّكرِ (١) ]] }} | |||
ص. سوگند به قرآن دارای یادواره. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢ | بَلِ الَّذينَ كَفَروا فى عِزَّةٍ وَ شِقاقٍ (٢) ]] }} | |||
بلکه آنان که کفر ورزیدند در (ژرفای) بزرگمنشی، (مخالفت) و جداسازی (از حقّ)اند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣ | كَم أَهلَكنا مِن قَبلِهِم مِن قَرنٍ فَنادَوا وَ لاتَ حينَ مَناصٍ (٣) ]] }} | |||
چه بسیار از نسلها (که) پیش از ایشان هلاک(شان) کردیم. پس (ما را) به فریاد خواندند، حال آنکه دیگر مجال گریزی نبود. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤ | وَ عَجِبوا أَن جاءَهُم مُنذِرٌ مِنهُم وَ قالَ الكٰفِرونَ هٰذا سٰحِرٌ كَذّابٌ (٤) ]] }} | |||
و از اینکه هشداردهندهای از خودشان برایشان آمد در شگفت شدند، و کافران گفتند: «این ساحری بس دروغپرداز است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥ | أَجَعَلَ الإلِهَةَ إِلٰهًا وٰحِدًا إِنَّ هٰذا لَشَيءٌ عُجابٌ (٥) ]] }} | |||
«آیا خدایان (متعدّد) را خدایی یکتا قرار داده؟ این بهراستی چیزی بس شگفتانگیز است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦ | وَ انطَلَقَ المَلَأُ مِنهُم أَنِ امشوا وَ اصبِروا عَلىٰ إلِهَتِكُم إِنَّ هٰذا لَشَيءٌ يُرادُ (٦) ]] }} | |||
و بزرگانشان (از این گیرودار خستند و) رستند (و گفتند:) «بروید و بر خدایان خود شکیبایی کنید. این (انحصارطلبی) همواره چیزی است (که بر ضد ما) اراده میشود.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧ | ما سَمِعنا بِهٰذا فِى المِلَّةِ الإخِرَةِ إِن هٰذا إِلَّا اختِلٰقٌ (٧) ]] }} | |||
«ما این را در گروه دیگر نشنیدیم. این بجز (بافتهای) جعلی نیست.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨ | أَءُنزِلَ عَلَيهِ الذِّكرُ مِن بَينِنا بَل هُم فى شَكٍّ مِن ذِكرى بَل لَمّا يَذوقوا عَذابِ (٨) ]] }} | |||
«آیا از میان ما یادواره [:قرآن] تنها بر او نازل شده؟» بلکه آنان دربارهی یادوارهی من دودلاند. بلکه هنوز عذاب مرا نچشیدهاند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٩ | أَم عِندَهُم خَزائِنُ رَحمَةِ رَبِّكَ العَزيزِ الوَهّابِ (٩) ]] }} | |||
(آیا اینان خود خدایانند؟) یا گنجینههای رحمت پروردگار باعزت و عظمتِ بخشایشگرت نزد ایشان است؟ | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٠ | أَم لَهُم مُلكُ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ وَ ما بَينَهُما فَليَرتَقوا فِى الأَسبٰبِ (١٠) ]] }} | |||
یا فرمانروایی آسمانها و زمین و آنچه میان آن دو است از آنان است؟ پس باید در اسباب (آسمانی و) بالا روند (تا هر چه خواهند دریابند)! | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١١ | جُندٌ ما هُنالِكَ مَهزومٌ مِنَ الأَحزابِ (١١) ]] }} | |||
(این) سپاهکی از دستههای دشمن در آنجا (اسباب) در هم شکستنیاند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٢ | كَذَّبَت قَبلَهُم قَومُ نوحٍ وَ عادٌ وَ فِرعَونُ ذُو الأَوتادِ (١٢) ]] }} | |||
پیش از ایشان (هم) قوم نوح و عاد و فرعونِ صاحب بنیانها و نیروها و میخبنها، (پیامبران را) تکذیب کردند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٣ | وَ ثَمودُ وَ قَومُ لوطٍ وَ أَصحٰبُ لـَٔيكَةِ أُولٰئِكَ الأَحزابُ (١٣) ]] }} | |||
و ثمودیان و لوطیان و اصحاب اَیْکَه (نیز به تکذیب پرداختند). اینان احزاب (تکذیبکننده)اند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٤ | إِن كُلٌّ إِلّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقابِ (١٤) ]] }} | |||
هیچ کدام نبودند جز اینکه پیامبران (ما) را تکذیب کردند. پس عقوبت من (بر آنان) بجا و پایبرجا آمد. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٥ | وَ ما يَنظُرُ هٰؤُلاءِ إِلّا صَيحَةً وٰحِدَةً ما لَها مِن فَواقٍ (١٥) ]] }} | |||
و اینان جز یک فریاد (مرگبار) را انتظار نمیبرند و نمینگرند (که) هیچ راحت و برگشتی ندارد. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٦ | وَ قالوا رَبَّنا عَجِّل لَنا قِطَّنا قَبلَ يَومِ الحِسابِ (١٦) ]] }} | |||
و گفتند: «پروردگارمان! پیش از (رسیدنِ) روز حساب، باشتاب بهرهی قطعی (از عذابمان) را برایمان برسان.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٧ | اصبِر عَلىٰ ما يَقولونَ وَ اذكُر عَبدَنا داوۥدَ ذَا الأَيدِ إِنَّهُ أَوّابٌ (١٧) ]] }} | |||
بر آنچه میگویند شکیبایی کن و داوود، بندهی ما را (که) دارای امکانات و نیروهای گوناگون بود به یاد آور؛ (آری) او بسیار بازگشتکننده (سوی خدا) بود. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٨ | إِنّا سَخَّرنَا الجِبالَ مَعَهُ يُسَبِّحنَ بِالعَشِىِّ وَ الإِشراقِ (١٨) ]] }} | |||
ما همواره کوهها را با او مسخّر ساختیم. حال آنکه شامگاهان و بامدادان خدا را نیایش میکنند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ١٩ | وَ الطَّيرَ مَحشورَةً كُلٌّ لَهُ أَوّابٌ (١٩) ]] }} | |||
و پرندگان را (نیز با او مسخّر کردیم) که بر گِردش گردآورده شدهاند (و) همگان برایش بسی بازگشتکنندگانند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٠ | وَ شَدَدنا مُلكَهُ وَ إتَينٰهُ الحِكمَةَ وَ فَصلَ الخِطابِ (٢٠) ]] }} | |||
و پادشاهیش را استوار کردیم و او را حکمت و خطابهی فیصلهدهنده دادیم. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢١ | وَ هَل أَتىٰكَ نَبَؤُا۟ الخَصمِ إِذ تَسَوَّرُوا المِحرابَ (٢١) ]] }} | |||
و آیا خَبرِ مهم دشمنان، چون از محراب (داوود به سختی) بالا رفتند، به تو رسید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٢ | إِذ دَخَلوا عَلىٰ داوۥدَ فَفَزِعَ مِنهُم قالوا لا تَخَف خَصمانِ بَغىٰ بَعضُنا عَلىٰ بَعضٍ فَاحكُم بَينَنا بِالحَقِّ وَ لا تُشطِط وَ اهدِنا إِلىٰ سَواءِ الصِّرٰطِ (٢٢) ]] }} | |||
چون (ناگهان) بر داوود درآمدند، پس او از آنان به هراس افتاد. گفتند: «مترس (ما) دو دشمنیم؛ یکی از ما بر دیگری تجاوز کرده. پس میان ما به حقّ داوری کن و افراط و پراکندهگویی مکن و ما را به میانهی راه راست رهبری کن.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٣ | إِنَّ هٰذا أَخى لَهُ تِسعٌ وَ تِسعونَ نَعجَةً وَ لِىَ نَعجَةٌ وٰحِدَةٌ فَقالَ أَكفِلنيها وَ عَزَّنى فِى الخِطابِ (٢٣) ]] }} | |||
«بهراستی این برادر من است. او را نَودونُه میش و مرا یک میش است. پس (به من) گفت آن (یک) را (هم) به من واگذار و در سخن(اش) با من چیرگی و زورگویی کرد.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٤ | قالَ لَقَد ظَلَمَكَ بِسُؤالِ نَعجَتِكَ إِلىٰ نِعاجِهِ وَ إِنَّ كَثيرًا مِنَ الخُلَطاءِ لَيَبغى بَعضُهُم عَلىٰ بَعضٍ إِلَّا الَّذينَ إمَنوا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَ قَليلٌ ما هُم وَ ظَنَّ داوۥدُ أَنَّما فَتَنّٰهُ فَاستَغفَرَ رَبَّهُ وَ خَرَّ راكِعًا وَ أَنابَ (٢٤) ]] }} | |||
(داوود) گفت: «همانا او در مطالبهی میش تو - (اضافه) بر میشهای خودش - بر تو همواره ستم کرده. و بیگمان بسیاری از شریکان به همدیگر بیچون ستم روا میدارند؛ جز کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته کردهاند و اینان اندکند.» و داوود گمان (درستی) برد که ما او را بیگمان سخت آزمایش کردهایم. پس از پروردگارش پوشش خواست و در حال رکوعش (به سجده) فرو افتاد و (سوی پروردگار) پیاپی بازگشت. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٥ | فَغَفَرنا لَهُ ذٰلِكَ وَ إِنَّ لَهُ عِندَنا لَزُلفىٰ وَ حُسنَ مَـٔابٍ (٢٥) ]] }} | |||
پس برای او این (ماجرا) را پوشاندیم. و بهراستی برای او پیش ما بسی تقرّب و بازگشتی خوش است. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٦ | يٰداوۥدُ إِنّا جَعَلنٰكَ خَليفَةً فِى الأَرضِ فَاحكُم بَينَ النّاسِ بِالحَقِّ وَ لا تَتَّبِعِ الهَوىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبيلِ اللَّهِ إِنَّ الَّذينَ يَضِلّونَ عَن سَبيلِ اللَّهِ لَهُم عَذابٌ شَديدٌ بِما نَسوا يَومَ الحِسابِ (٢٦) ]] }} | |||
(به او گفتیم:) «داوود! ما تو را در زمین جانشینی (رسالتی از رسولان) گردانیدیم؛ پس میان مردمان بحقّ حکم کن و از هوا(ی نفس) پیروی مکن، که از راه خدا گمراهت کند.» بیگمان کسانی که از راه خدا به در میروند - به (سزای) آنکه روز حساب را فراموش کردهاند - برایشان عذابی سخت است! | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٧ | وَ ما خَلَقنَا السَّماءَ وَ الأَرضَ وَ ما بَينَهُما بٰطِلًا ذٰلِكَ ظَنُّ الَّذينَ كَفَروا فَوَيلٌ لِلَّذينَ كَفَروا مِنَ النّارِ (٢٧) ]] }} | |||
و ما آسمان و زمین و آنچه را که میان این دو است باطل نیافریدیم. این گمان کسانی است که کافر شدند. پس وای از آتش برای کسانی که کافر شدند! | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٨ | أَم نَجعَلُ الَّذينَ إمَنوا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ كَالمُفسِدينَ فِى الأَرضِ أَم نَجعَلُ المُتَّقينَ كَالفُجّارِ (٢٨) ]] }} | |||
یا (مگر) کسانی را که گرویده و کارهای شایسته کردند، چون مفسدانِ در زمین مینهیم، یا پرهیزگاران را چون فاجران قرار میدهیم؟ | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٢٩ | كِتٰبٌ أَنزَلنٰهُ إِلَيكَ مُبٰرَكٌ لِيَدَّبَّروا إيٰتِهِ وَ لِيَتَذَكَّرَ أُولُوا الأَلبٰبِ (٢٩) ]] }} | |||
کتابی که آن را سوی تو نازل کردیم مبارک است، تا آیاتش را بیندیشند، و برای اینکه خردمندان ویژه (بدان) پند گیرند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٠ | وَ وَهَبنا لِداوۥدَ سُلَيمٰنَ نِعمَ العَبدُ إِنَّهُ أَوّابٌ (٣٠) ]] }} | |||
و سلیمان را به داوود بخشیدیم. چه نیکو بندهای است. بهراستی او (سوی آفریدگار) بسی رهسپار است. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣١ | إِذ عُرِضَ عَلَيهِ بِالعَشِىِّ الصّٰفِنٰتُ الجِيادُ (٣١) ]] }} | |||
چون شباهنگام، اسبهای اصیل صفاندرصف برایش به نمایش گذارده شدند، | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٢ | فَقالَ إِنّى أَحبَبتُ حُبَّ الخَيرِ عَن ذِكرِ رَبّى حَتّىٰ تَوارَت بِالحِجابِ (٣٢) ]] }} | |||
پس (سلیمان) گفت: «من بهراستی دوستی آن خیر [:اسبهای جهاد] را دوست داشتهام [:برگزیدهام] (که) نشأتگرفته و برخاسته از یاد پروردگار من است. تا اینکه (آن اسبان) در پرده(ی شب) پنهان گشتند.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٣ | رُدّوها عَلَىَّ فَطَفِقَ مَسحًا بِالسّوقِ وَ الأَعناقِ (٣٣) ]] }} | |||
(گفت: ) «اسبها را نزد من باز آورید.» پس شروع کرد به دست کشیدن بر ساقها و گردنهایشان. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٤ | وَ لَقَد فَتَنّا سُلَيمٰنَ وَ أَلقَينا عَلىٰ كُرسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنابَ (٣٤) ]] }} | |||
و همواره سلیمان را بسی آزمودیم و بر تختش جسدی بیفکندیم ؛ سپس (به ما) پیدرپی برگشت. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٥ | قالَ رَبِّ اغفِر لى وَهَب لى مُلكًا لا يَنبَغى لِأَحَدٍ مِن بَعدى إِنَّكَ أَنتَ الوَهّابُ (٣٥) ]] }} | |||
گفت: «پروردگارم! پوششی برایم بنه و مُلکی به من ببخش که هیچ کس را پس از من سزاوار نباشد. بهدرستی تو (همین) تو بسی بخشندهای.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٦ | فَسَخَّرنا لَهُ الرّيحَ تَجرى بِأَمرِهِ رُخاءً حَيثُ أَصابَ (٣٦) ]] }} | |||
پس باد را در اختیار او قرار دادیم، حال آنکه هر جا بهدرستی برفت به فرمان او به نرمی و راهواری روان میشد. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٧ | وَ الشَّيٰطينَ كُلَّ بَنّاءٍ وَ غَوّاصٍ (٣٧) ]] }} | |||
و شیطانها(ی رام) را (نیز که) هر یک را بنّا و غوّاصند؛ | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٨ | وَ إخَرينَ مُقَرَّنينَ فِى الأَصفادِ (٣٨) ]] }} | |||
و دیگرانی (از شیطانها) را که با زنجیرها سخت بسته شده بودند (تحت فرمانش درآوردیم). | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٣٩ | هٰذا عَطاؤُنا فَامنُن أَو أَمسِك بِغَيرِ حِسابٍ (٣٩) ]] }} | |||
(گفتیم:) «این بخشش ماست. پس (آن را) بیشمار منّت بگذار یا نگاه دار.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٠ | وَ إِنَّ لَهُ عِندَنا لَزُلفىٰ وَ حُسنَ مَـٔابٍ (٤٠) ]] }} | |||
و بیگمان برای او در پیشگاهمان بهراستی تقرب و فرجامی نیکوست. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤١ | وَ اذكُر عَبدَنا أَيّوبَ إِذ نادىٰ رَبَّهُ أَنّى مَسَّنِىَ الشَّيطٰنُ بِنُصبٍ وَ عَذابٍ (٤١) ]] }} | |||
و بندهی ما ایّوب را به یاد آر، چون پروردگارش را ندا در داد: «شیطان همواره مرا به رنجها و عذابی بزرگ مبتلا کرده.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٢ | اركُض بِرِجلِكَ هٰذا مُغتَسَلٌ بارِدٌ وَ شَرابٌ (٤٢) ]] }} | |||
(به او گفتیم:) «با پای خود روان شو (که) این، شستنگاهی سرد و آشامیدنی است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٣ | وَ وَهَبنا لَهُ أَهلَهُ وَ مِثلَهُم مَعَهُم رَحمَةً مِنّا وَ ذِكرىٰ لِأُولِى الأَلبٰبِ (٤٣) ]] }} | |||
و (دوباره) کسانش و مانندشان را، همراهشان بدو بخشیدیم، تا رحمتی از جانبمان و یادوارهای برای خردمندان باشد. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٤ | وَ خُذ بِيَدِكَ ضِغثًا فَاضرِب بِهِ وَ لا تَحنَث إِنّا وَجَدنٰهُ صابِرًا نِعمَ العَبدُ إِنَّهُ أَوّابٌ (٤٤) ]] }} | |||
و (به او گفتیم:) «یک بسته ترکهی نازک نرم به دستت بگیر. پس (همسرت را) با آن (به نرمی) بزن و سوگند(ت) را مشکن.» ما همواره او را شکیبا یافتیم. چه نیکو بندهای! بهراستی او بسیار بازگشتکننده (سوی ما) است. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٥ | وَ اذكُر عِبٰدَنا إِبرٰهيمَ وَ إِسحٰقَ وَ يَعقوبَ أُولِى الأَيدى وَ الأَبصٰرِ (٤٥) ]] }} | |||
و بندگانمان ابراهیم و اسحاق و یعقوب را - که نیرومندان و دیدهوران بودند- به یاد آور. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٦ | إِنّا أَخلَصنٰهُم بِخالِصَةٍ ذِكرَى الدّارِ (٤٦) ]] }} | |||
ما همواره آنان را با پاکسازی ویژهای - (که) یادآوریِ سرای (دنیا و آخرت است) - خالص گردانیدیم. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٧ | وَ إِنَّهُم عِندَنا لَمِنَ المُصطَفَينَ الأَخيارِ (٤٧) ]] }} | |||
و آنان بهراستی در پیشگاهمان بیگمان از برگزیدگان (و) نیکانند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٨ | وَ اذكُر إِسمٰعيلَ وَ اليَسَعَ وَ ذَا الكِفلِ وَ كُلٌّ مِنَ الأَخيارِ (٤٨) ]] }} | |||
و اسماعیل و یَسَع و ذالکفل را به یاد آور و (اینان) همگان از نیکانند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٤٩ | هٰذا ذِكرٌ وَ إِنَّ لِلمُتَّقينَ لَحُسنَ مَـٔابٍ (٤٩) ]] }} | |||
این یادوارهای است (بزرگ) و همواره برای پرهیزگاران بیگمان بازگشتی پیاپی و بس نیک است: | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٠ | جَنّٰتِ عَدنٍ مُفَتَّحَةً لَهُمُ الأَبوٰبُ (٥٠) ]] }} | |||
باغهای با درختان سردرهم جاودان، حال آنکه دربها(شان) برایشان بس گشودهاست. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥١ | مُتَّكِـٔينَ فيها يَدعونَ فيها بِفٰكِهَةٍ كَثيرَةٍ وَ شَرابٍ (٥١) ]] }} | |||
در آنجا تکیهزنان، میوههای فراوان و نوشیدنی(شان را) بخواهند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٢ | وَ عِندَهُم قٰصِرٰتُ الطَّرفِ أَترابٌ (٥٢) ]] }} | |||
و در نزدشان (همسرانی) با چشمان فروهشته، همسال و همسانند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٣ | هٰذا ما توعَدونَ لِيَومِ الحِسابِ (٥٣) ]] }} | |||
این است آنچه برای روز حساب وعده داده میشوید. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٤ | إِنَّ هٰذا لَرِزقُنا ما لَهُ مِن نَفادٍ (٥٤) ]] }} | |||
(میگویند:) «همواره، این بهراستی روزیِ ماست. آن را هیچ نابودی نیست.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٥ | هٰذا وَ إِنَّ لِلطّٰغينَ لَشَرَّ مَـٔابٍ (٥٥) ]] }} | |||
این است (حال بهشتیان) و (امّا) برای طغیانگران بیگمان بدترین بازگشتی است، | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٦ | جَهَنَّمَ يَصلَونَها فَبِئسَ المِهادُ (٥٦) ]] }} | |||
جهنم (که) میافروزندش. پس چه بد آرامگاهی است. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٧ | هٰذا فَليَذوقوهُ حَميمٌ وَ غَسّاقٌ (٥٧) ]] }} | |||
این جوشاب و چرکابی بس گلوگیر است. پس باید آن را بچشند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٨ | وَ إخَرُ مِن شَكلِهِ أَزوٰجٌ (٥٨) ]] }} | |||
و از همینگونه، نوعی دیگر همانندهاست! | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٥٩ | هٰذا فَوجٌ مُقتَحِمٌ مَعَكُم لا مَرحَبًا بِهِم إِنَّهُم صالُوا النّارِ (٥٩) ]] }} | |||
این گروهی است که با شما ناگزیر (در آتش) درمیآیند (و) هیچگونه شادباشی برایشان نیست. بیگمان آنان آتشافروزانند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٠ | قالوا بَل أَنتُم لا مَرحَبًا بِكُم أَنتُم قَدَّمتُموهُ لَنا فَبِئسَ القَرارُ (٦٠) ]] }} | |||
گفتند: «بلکه شما هرگز شادباشی برایتان نیست، به سبب آنچه پیش فرستادید. پس چه بد قرارگاهی است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦١ | قالوا رَبَّنا مَن قَدَّمَ لَنا هٰذا فَزِدهُ عَذابًا ضِعفًا فِى النّارِ (٦١) ]] }} | |||
گفتند: «پروردگارمان! هر کس این (عذاب) را برای ما پیش فرستاد، عذابش را در آتش چندان کن.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٢ | وَ قالوا ما لَنا لا نَرىٰ رِجالًا كُنّا نَعُدُّهُم مِنَ الأَشرارِ (٦٢) ]] }} | |||
و گفتند: «ما را چه شده است، که مردانی را که ما آنان را از (زمرهی) اشرار برمیشمردهایم (اینجا) نمیبینیم؟» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٣ | أَتَّخَذنٰهُم سِخرِيًّا أَم زاغَت عَنهُمُ الأَبصٰرُ (٦٣) ]] }} | |||
«آیا آنان را (در دنیا) به ریشخند میگرفتیم یا چشمها(یمان) از آنان منحرف و منصرف شده است؟» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٤ | إِنَّ ذٰلِكَ لَحَقٌّ تَخاصُمُ أَهلِ النّارِ (٦٤) ]] }} | |||
این (ذلت) بهراستی راست و بسی پایبرجاست: مجادلهی اهل آتش. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٥ | قُل إِنَّما أَنا۠ مُنذِرٌ وَ ما مِن إِلٰهٍ إِلَّا اللَّهُ الوٰحِدُ القَهّارُ (٦٥) ]] }} | |||
بگو: «من تنها هشداردهندهای هستم و جز خدای یگانهی قهّار معبودی دگر نیست.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٦ | رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ وَ ما بَينَهُمَا العَزيزُ الغَفّٰرُ (٦٦) ]] }} | |||
«پروردگار آسمانها و زمین و آنچه میان آن دو است. (همان) عزیزِ بسی پوشنده.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٧ | قُل هُوَ نَبَؤٌا۟ عَظيمٌ (٦٧) ]] }} | |||
بگو: «آن خبری مهم (و) بزرگ است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٨ | أَنتُم عَنهُ مُعرِضونَ (٦٨) ]] }} | |||
«شما از آن روی برمیتابید.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٦٩ | ما كانَ لِىَ مِن عِلمٍ بِالمَلَإِ الأَعلىٰ إِذ يَختَصِمونَ (٦٩) ]] }} | |||
«مرا دربارهی ملأ اعلی هیچ آگاهی نبوده است، چون با هم مجادله میکردند.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٠ | إِن يوحىٰ إِلَىَّ إِلّا أَنَّما أَنا۠ نَذيرٌ مُبينٌ (٧٠) ]] }} | |||
«به من هیچ (چیز) وحی نمیشود، جز اینکه تنها من بهراستی هشداردهندهای روشنگرم.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧١ | إِذ قالَ رَبُّكَ لِلمَلٰئِكَةِ إِنّى خٰلِقٌ بَشَرًا مِن طينٍ (٧١) ]] }} | |||
چون پروردگارت به فرشتگان گفت: «من بیگمان آفرینندهی بشری از گل هستم.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٢ | فَإِذا سَوَّيتُهُ وَ نَفَختُ فيهِ مِن روحى فَقَعوا لَهُ سٰجِدينَ (٧٢) ]] }} | |||
«پس هنگامیکه درستش کردم و از روح برگزیده(ی آفرینش)ام در او دمیدم، سجدهکنان برای او (در برابر من) فرو اُفتید.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٣ | فَسَجَدَ المَلٰئِكَةُ كُلُّهُم أَجمَعونَ (٧٣) ]] }} | |||
پس فرشتگان همگان با هم سجده کردند. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٤ | إِلّا إِبليسَ استَكبَرَ وَ كانَ مِنَ الكٰفِرينَ (٧٤) ]] }} | |||
مگر ابلیس (که) تکبّر جُست و از کافران بود. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٥ | قالَ يٰإِبليسُ ما مَنَعَكَ أَن تَسجُدَ لِما خَلَقتُ بِيَدَىَّ أَستَكبَرتَ أَم كُنتَ مِنَ العالينَ (٧٥) ]] }} | |||
فرمود: «ای ابلیس! چه چیز تو را مانع شد برای چیزی که به دو دست (قدرت) خویش آفریدم سجده آوری؟ آیا تکبّر نمودی یا از مهتران و برجستگان بودهای؟» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٦ | قالَ أَنا۠ خَيرٌ مِنهُ خَلَقتَنى مِن نارٍ وَ خَلَقتَهُ مِن طينٍ (٧٦) ]] }} | |||
گفت: «من از او بهترم؛ مرا از آتش آفریدی و او را از گل آفریدی.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٧ | قالَ فَاخرُج مِنها فَإِنَّكَ رَجيمٌ (٧٧) ]] }} | |||
فرمود: «پس، از آن (باغ) برون شو، پس تو بیگمان رانده شدهای.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٨ | وَ إِنَّ عَلَيكَ لَعنَتى إِلىٰ يَومِ الدّينِ (٧٨) ]] }} | |||
«و تا روز بُروز طاعت [:قیامت] همواره بر تو لعنت و دورباش من است.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٧٩ | قالَ رَبِّ فَأَنظِرنى إِلىٰ يَومِ يُبعَثونَ (٧٩) ]] }} | |||
گفت: «پروردگارم! پس مرا تا روزی که برانگیخته میشوند مهلت ده.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٠ | قالَ فَإِنَّكَ مِنَ المُنظَرينَ (٨٠) ]] }} | |||
فرمود: «پس بیگمان، تو از مهلتیافتگانی» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨١ | إِلىٰ يَومِ الوَقتِ المَعلومِ (٨١) ]] }} | |||
«تا روز وقت معلوم» [:قیامت مرگ]. | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٢ | قالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغوِيَنَّهُم أَجمَعينَ (٨٢) ]] }} | |||
گفت: «پس به عزّتت سوگند (که) همگان را بیگمان بس گمراه میکنم.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٣ | إِلّا عِبادَكَ مِنهُمُ المُخلَصينَ (٨٣) ]] }} | |||
«مگر بندگان اخلاصیافتهات را.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٤ | قالَ فَالحَقُّ وَ الحَقَّ أَقولُ (٨٤) ]] }} | |||
فرمود: «پس (من تمامی) حق (هستم) و (همهی) حقّ را میگویم (که)،» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٥ | لَأَملَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَ مِمَّن تَبِعَكَ مِنهُم أَجمَعينَ (٨٥) ]] }} | |||
«همواره جهنّم را از تو و از هر کس از آنان که تو را پیروی کرد، از همگیشان، بیگمان خواهم انباشت.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٦ | قُل ما أَسـَٔلُكُم عَلَيهِ مِن أَجرٍ وَ ما أَنا۠ مِنَ المُتَكَلِّفينَ (٨٦) ]] }} | |||
بگو: «(من) هیچ مزدی بر این (قرآن) از شما نمیخواهم. و من از کسانی نیستم که خود را (برای شما) به زحمت و رنج طاقتفرسا افکنم.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٧ | إِن هُوَ إِلّا ذِكرٌ لِلعٰلَمينَ (٨٧) ]] }} | |||
«این (قرآن) جز یادوارهای برای جهانیان نیست.» | |||
{{قاب | متن = [[ ص ٨٨ | وَ لَتَعلَمُنَّ نَبَأَهُ بَعدَ حينٍ (٨٨) ]] }} | |||
«و همواره پس از چندی خبر بزرگش را بهراستی خواهید دانست.» | |||
==محتوای سوره== | ==محتوای سوره== |
نسخهٔ کنونی تا ۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۱:۳۸
سوره الصافات | سوره ص | سوره الزمر | |||||||||||||||||||||||
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متن سوره
ص. سوگند به قرآن دارای یادواره.
بلکه آنان که کفر ورزیدند در (ژرفای) بزرگمنشی، (مخالفت) و جداسازی (از حقّ)اند.
چه بسیار از نسلها (که) پیش از ایشان هلاک(شان) کردیم. پس (ما را) به فریاد خواندند، حال آنکه دیگر مجال گریزی نبود.
و از اینکه هشداردهندهای از خودشان برایشان آمد در شگفت شدند، و کافران گفتند: «این ساحری بس دروغپرداز است.»
«آیا خدایان (متعدّد) را خدایی یکتا قرار داده؟ این بهراستی چیزی بس شگفتانگیز است.»
و بزرگانشان (از این گیرودار خستند و) رستند (و گفتند:) «بروید و بر خدایان خود شکیبایی کنید. این (انحصارطلبی) همواره چیزی است (که بر ضد ما) اراده میشود.»
«ما این را در گروه دیگر نشنیدیم. این بجز (بافتهای) جعلی نیست.»
«آیا از میان ما یادواره [:قرآن] تنها بر او نازل شده؟» بلکه آنان دربارهی یادوارهی من دودلاند. بلکه هنوز عذاب مرا نچشیدهاند.
(آیا اینان خود خدایانند؟) یا گنجینههای رحمت پروردگار باعزت و عظمتِ بخشایشگرت نزد ایشان است؟
یا فرمانروایی آسمانها و زمین و آنچه میان آن دو است از آنان است؟ پس باید در اسباب (آسمانی و) بالا روند (تا هر چه خواهند دریابند)!
(این) سپاهکی از دستههای دشمن در آنجا (اسباب) در هم شکستنیاند.
پیش از ایشان (هم) قوم نوح و عاد و فرعونِ صاحب بنیانها و نیروها و میخبنها، (پیامبران را) تکذیب کردند.
و ثمودیان و لوطیان و اصحاب اَیْکَه (نیز به تکذیب پرداختند). اینان احزاب (تکذیبکننده)اند.
هیچ کدام نبودند جز اینکه پیامبران (ما) را تکذیب کردند. پس عقوبت من (بر آنان) بجا و پایبرجا آمد.
و اینان جز یک فریاد (مرگبار) را انتظار نمیبرند و نمینگرند (که) هیچ راحت و برگشتی ندارد.
و گفتند: «پروردگارمان! پیش از (رسیدنِ) روز حساب، باشتاب بهرهی قطعی (از عذابمان) را برایمان برسان.»
بر آنچه میگویند شکیبایی کن و داوود، بندهی ما را (که) دارای امکانات و نیروهای گوناگون بود به یاد آور؛ (آری) او بسیار بازگشتکننده (سوی خدا) بود.
ما همواره کوهها را با او مسخّر ساختیم. حال آنکه شامگاهان و بامدادان خدا را نیایش میکنند.
و پرندگان را (نیز با او مسخّر کردیم) که بر گِردش گردآورده شدهاند (و) همگان برایش بسی بازگشتکنندگانند.
و پادشاهیش را استوار کردیم و او را حکمت و خطابهی فیصلهدهنده دادیم.
و آیا خَبرِ مهم دشمنان، چون از محراب (داوود به سختی) بالا رفتند، به تو رسید؟
چون (ناگهان) بر داوود درآمدند، پس او از آنان به هراس افتاد. گفتند: «مترس (ما) دو دشمنیم؛ یکی از ما بر دیگری تجاوز کرده. پس میان ما به حقّ داوری کن و افراط و پراکندهگویی مکن و ما را به میانهی راه راست رهبری کن.»
«بهراستی این برادر من است. او را نَودونُه میش و مرا یک میش است. پس (به من) گفت آن (یک) را (هم) به من واگذار و در سخن(اش) با من چیرگی و زورگویی کرد.»
(داوود) گفت: «همانا او در مطالبهی میش تو - (اضافه) بر میشهای خودش - بر تو همواره ستم کرده. و بیگمان بسیاری از شریکان به همدیگر بیچون ستم روا میدارند؛ جز کسانی که ایمان آورده و کارهای شایسته کردهاند و اینان اندکند.» و داوود گمان (درستی) برد که ما او را بیگمان سخت آزمایش کردهایم. پس از پروردگارش پوشش خواست و در حال رکوعش (به سجده) فرو افتاد و (سوی پروردگار) پیاپی بازگشت.
پس برای او این (ماجرا) را پوشاندیم. و بهراستی برای او پیش ما بسی تقرّب و بازگشتی خوش است.
(به او گفتیم:) «داوود! ما تو را در زمین جانشینی (رسالتی از رسولان) گردانیدیم؛ پس میان مردمان بحقّ حکم کن و از هوا(ی نفس) پیروی مکن، که از راه خدا گمراهت کند.» بیگمان کسانی که از راه خدا به در میروند - به (سزای) آنکه روز حساب را فراموش کردهاند - برایشان عذابی سخت است!
و ما آسمان و زمین و آنچه را که میان این دو است باطل نیافریدیم. این گمان کسانی است که کافر شدند. پس وای از آتش برای کسانی که کافر شدند!
یا (مگر) کسانی را که گرویده و کارهای شایسته کردند، چون مفسدانِ در زمین مینهیم، یا پرهیزگاران را چون فاجران قرار میدهیم؟
کتابی که آن را سوی تو نازل کردیم مبارک است، تا آیاتش را بیندیشند، و برای اینکه خردمندان ویژه (بدان) پند گیرند.
و سلیمان را به داوود بخشیدیم. چه نیکو بندهای است. بهراستی او (سوی آفریدگار) بسی رهسپار است.
چون شباهنگام، اسبهای اصیل صفاندرصف برایش به نمایش گذارده شدند،
پس (سلیمان) گفت: «من بهراستی دوستی آن خیر [:اسبهای جهاد] را دوست داشتهام [:برگزیدهام] (که) نشأتگرفته و برخاسته از یاد پروردگار من است. تا اینکه (آن اسبان) در پرده(ی شب) پنهان گشتند.»
(گفت: ) «اسبها را نزد من باز آورید.» پس شروع کرد به دست کشیدن بر ساقها و گردنهایشان.
و همواره سلیمان را بسی آزمودیم و بر تختش جسدی بیفکندیم ؛ سپس (به ما) پیدرپی برگشت.
گفت: «پروردگارم! پوششی برایم بنه و مُلکی به من ببخش که هیچ کس را پس از من سزاوار نباشد. بهدرستی تو (همین) تو بسی بخشندهای.»
پس باد را در اختیار او قرار دادیم، حال آنکه هر جا بهدرستی برفت به فرمان او به نرمی و راهواری روان میشد.
و شیطانها(ی رام) را (نیز که) هر یک را بنّا و غوّاصند؛
و دیگرانی (از شیطانها) را که با زنجیرها سخت بسته شده بودند (تحت فرمانش درآوردیم).
(گفتیم:) «این بخشش ماست. پس (آن را) بیشمار منّت بگذار یا نگاه دار.»
و بیگمان برای او در پیشگاهمان بهراستی تقرب و فرجامی نیکوست.
و بندهی ما ایّوب را به یاد آر، چون پروردگارش را ندا در داد: «شیطان همواره مرا به رنجها و عذابی بزرگ مبتلا کرده.»
(به او گفتیم:) «با پای خود روان شو (که) این، شستنگاهی سرد و آشامیدنی است.»
و (دوباره) کسانش و مانندشان را، همراهشان بدو بخشیدیم، تا رحمتی از جانبمان و یادوارهای برای خردمندان باشد.
و (به او گفتیم:) «یک بسته ترکهی نازک نرم به دستت بگیر. پس (همسرت را) با آن (به نرمی) بزن و سوگند(ت) را مشکن.» ما همواره او را شکیبا یافتیم. چه نیکو بندهای! بهراستی او بسیار بازگشتکننده (سوی ما) است.
و بندگانمان ابراهیم و اسحاق و یعقوب را - که نیرومندان و دیدهوران بودند- به یاد آور.
ما همواره آنان را با پاکسازی ویژهای - (که) یادآوریِ سرای (دنیا و آخرت است) - خالص گردانیدیم.
و آنان بهراستی در پیشگاهمان بیگمان از برگزیدگان (و) نیکانند.
و اسماعیل و یَسَع و ذالکفل را به یاد آور و (اینان) همگان از نیکانند.
این یادوارهای است (بزرگ) و همواره برای پرهیزگاران بیگمان بازگشتی پیاپی و بس نیک است:
باغهای با درختان سردرهم جاودان، حال آنکه دربها(شان) برایشان بس گشودهاست.
در آنجا تکیهزنان، میوههای فراوان و نوشیدنی(شان را) بخواهند.
و در نزدشان (همسرانی) با چشمان فروهشته، همسال و همسانند.
این است آنچه برای روز حساب وعده داده میشوید.
(میگویند:) «همواره، این بهراستی روزیِ ماست. آن را هیچ نابودی نیست.»
این است (حال بهشتیان) و (امّا) برای طغیانگران بیگمان بدترین بازگشتی است،
جهنم (که) میافروزندش. پس چه بد آرامگاهی است.
این جوشاب و چرکابی بس گلوگیر است. پس باید آن را بچشند.
و از همینگونه، نوعی دیگر همانندهاست!
این گروهی است که با شما ناگزیر (در آتش) درمیآیند (و) هیچگونه شادباشی برایشان نیست. بیگمان آنان آتشافروزانند.
گفتند: «بلکه شما هرگز شادباشی برایتان نیست، به سبب آنچه پیش فرستادید. پس چه بد قرارگاهی است.»
گفتند: «پروردگارمان! هر کس این (عذاب) را برای ما پیش فرستاد، عذابش را در آتش چندان کن.»
و گفتند: «ما را چه شده است، که مردانی را که ما آنان را از (زمرهی) اشرار برمیشمردهایم (اینجا) نمیبینیم؟»
«آیا آنان را (در دنیا) به ریشخند میگرفتیم یا چشمها(یمان) از آنان منحرف و منصرف شده است؟»
این (ذلت) بهراستی راست و بسی پایبرجاست: مجادلهی اهل آتش.
بگو: «من تنها هشداردهندهای هستم و جز خدای یگانهی قهّار معبودی دگر نیست.»
«پروردگار آسمانها و زمین و آنچه میان آن دو است. (همان) عزیزِ بسی پوشنده.»
بگو: «آن خبری مهم (و) بزرگ است.»
«شما از آن روی برمیتابید.»
«مرا دربارهی ملأ اعلی هیچ آگاهی نبوده است، چون با هم مجادله میکردند.»
«به من هیچ (چیز) وحی نمیشود، جز اینکه تنها من بهراستی هشداردهندهای روشنگرم.»
چون پروردگارت به فرشتگان گفت: «من بیگمان آفرینندهی بشری از گل هستم.»
«پس هنگامیکه درستش کردم و از روح برگزیده(ی آفرینش)ام در او دمیدم، سجدهکنان برای او (در برابر من) فرو اُفتید.»
پس فرشتگان همگان با هم سجده کردند.
مگر ابلیس (که) تکبّر جُست و از کافران بود.
فرمود: «ای ابلیس! چه چیز تو را مانع شد برای چیزی که به دو دست (قدرت) خویش آفریدم سجده آوری؟ آیا تکبّر نمودی یا از مهتران و برجستگان بودهای؟»
گفت: «من از او بهترم؛ مرا از آتش آفریدی و او را از گل آفریدی.»
فرمود: «پس، از آن (باغ) برون شو، پس تو بیگمان رانده شدهای.»
«و تا روز بُروز طاعت [:قیامت] همواره بر تو لعنت و دورباش من است.»
گفت: «پروردگارم! پس مرا تا روزی که برانگیخته میشوند مهلت ده.»
فرمود: «پس بیگمان، تو از مهلتیافتگانی»
«تا روز وقت معلوم» [:قیامت مرگ].
گفت: «پس به عزّتت سوگند (که) همگان را بیگمان بس گمراه میکنم.»
«مگر بندگان اخلاصیافتهات را.»
فرمود: «پس (من تمامی) حق (هستم) و (همهی) حقّ را میگویم (که)،»
«همواره جهنّم را از تو و از هر کس از آنان که تو را پیروی کرد، از همگیشان، بیگمان خواهم انباشت.»
بگو: «(من) هیچ مزدی بر این (قرآن) از شما نمیخواهم. و من از کسانی نیستم که خود را (برای شما) به زحمت و رنج طاقتفرسا افکنم.»
«این (قرآن) جز یادوارهای برای جهانیان نیست.»
«و همواره پس از چندی خبر بزرگش را بهراستی خواهید دانست.»