سوره الواقعة: تفاوت میان نسخهها
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{{ سوره | نام =سوره الواقعة | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::46|٤٦]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::56|٥٦]] | آیه = [[تعداد آیات::96|٩٦]] | بعدی = سوره الحديد | قبلی = سوره الرحمن | کلمه = [[تعداد کلمات::440|٤٤٠]] | حرف = }} | {{ سوره | نام =سوره الواقعة | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::46|٤٦]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::56|٥٦]] | آیه = [[تعداد آیات::96|٩٦]] | بعدی = سوره الحديد | قبلی = سوره الرحمن | کلمه = [[تعداد کلمات::440|٤٤٠]] | حرف = }} | ||
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==متن سوره== | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ إِذا وَقَعَتِ الواقِعَةُ (١) ]] }} | |||
هنگامی که (قیامت) واقع شونده وقوع یابد؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢ | لَيسَ لِوَقعَتِها كاذِبَةٌ (٢) ]] }} | |||
در وقوعش هرگز گزافی نیست. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣ | خافِضَةٌ رافِعَةٌ (٣) ]] }} | |||
پستکنندهای بالابرنده است. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤ | إِذا رُجَّتِ الأَرضُ رَجًّا (٤) ]] }} | |||
چون زمین با تکان و اضطراب سختی لرزانده شود؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥ | وَ بُسَّتِ الجِبالُ بَسًّا (٥) ]] }} | |||
و کوهها به گونهای دهشتآور خُرد گردند؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦ | فَكانَت هَباءً مُنبَثًّا (٦) ]] }} | |||
پس غباری پراکنده شوند؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧ | وَ كُنتُم أَزوٰجًا ثَلٰثَةً (٧) ]] }} | |||
و شما سه دسته گردید: | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨ | فَأَصحٰبُ المَيمَنَةِ ما أَصحٰبُ المَيمَنَةِ (٨) ]] }} | |||
پس صاحبان برکت راستین؛ چیست صاحبان برکت؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩ | وَ أَصحٰبُ المَشـَٔمَةِ ما أَصحٰبُ المَشـَٔمَةِ (٩) ]] }} | |||
و صاحبان شوم و رذیلت؛ چیست صاحبان رذیلت؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٠ | وَ السّٰبِقونَ السّٰبِقونَ (١٠) ]] }} | |||
و سبقتگیرندگان (این سرا) همان سبقتگیرندگان (آن سرای)اند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١١ | أُولٰئِكَ المُقَرَّبونَ (١١) ]] }} | |||
همان مقرّبان (به خدای منان). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٢ | فى جَنّٰتِ النَّعيمِ (١٢) ]] }} | |||
در باغستانهای پرنعمت. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٣ | ثُلَّةٌ مِنَ الأَوَّلينَ (١٣) ]] }} | |||
(اینان) گروهی بسیار از پیشینیان، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٤ | وَ قَليلٌ مِنَ الإخِرينَ (١٤) ]] }} | |||
و اندکی از پسینیان(اند). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٥ | عَلىٰ سُرُرٍ مَوضونَةٍ (١٥) ]] }} | |||
بر تختهایی بافته همچون زره. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٦ | مُتَّكِـٔينَ عَلَيها مُتَقٰبِلينَ (١٦) ]] }} | |||
روبهروی هم بر آنها تکیهزنندگانند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٧ | يَطوفُ عَلَيهِم وِلدٰنٌ مُخَلَّدونَ (١٧) ]] }} | |||
نوجوانانی، جاودان بر گردشان میگردند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٨ | بِأَكوابٍ وَ أَباريقَ وَ كَأسٍ مِن مَعينٍ (١٨) ]] }} | |||
با جامها و آبریزها و پیالهای از بادهی ناب روان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ١٩ | لا يُصَدَّعونَ عَنها وَ لا يُنزِفونَ (١٩) ]] }} | |||
(که) نه از آن سردرد گیرند و نه (آن را) پایان دهند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٠ | وَ فٰكِهَةٍ مِمّا يَتَخَيَّرونَ (٢٠) ]] }} | |||
و میوهای از هر چه همیپسندند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢١ | وَ لَحمِ طَيرٍ مِمّا يَشتَهونَ (٢١) ]] }} | |||
و (از) گوشت پرندهای، هر چه اشتها کنند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٢ | وَ حورٌ عينٌ (٢٢) ]] }} | |||
و حوریانی چشمدرشت. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٣ | كَأَمثٰلِ اللُّؤلُؤِ المَكنونِ (٢٣) ]] }} | |||
همانند مروارید (ناسفتهی) پنهان (در صدف). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٤ | جَزاءً بِما كانوا يَعمَلونَ (٢٤) ]] }} | |||
حال آنکه پاداشی است به آنچه میکردهاند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٥ | لا يَسمَعونَ فيها لَغوًا وَ لا تَأثيمًا (٢٥) ]] }} | |||
در آنجا نه بیهودهای میشنوند و نه (سخنی) گناهآلود با پیآمدی بد. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٦ | إِلّا قيلًا سَلٰمًا سَلٰمًا (٢٦) ]] }} | |||
(سخنی) بجز گفتهی سلامی سالم نیست. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٧ | وَ أَصحٰبُ اليَمينِ ما أَصحٰبُ اليَمينِ (٢٧) ]] }} | |||
و صاحبان برکت و راستین. و چیست این صاحبان برکت و راستین؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٨ | فى سِدرٍ مَخضودٍ (٢٨) ]] }} | |||
در (زیر) درختان کُناری بیخار. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٢٩ | وَ طَلحٍ مَنضودٍ (٢٩) ]] }} | |||
و درختهای موز که میوهاش خوشهخوشه روی هم انباشته است. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٠ | وَ ظِلٍّ مَمدودٍ (٣٠) ]] }} | |||
و سایهای پایدار (و کششدار). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣١ | وَ ماءٍ مَسكوبٍ (٣١) ]] }} | |||
و آبی از بلندایی ریزان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٢ | وَ فٰكِهَةٍ كَثيرَةٍ (٣٢) ]] }} | |||
و میوهای فراوان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٣ | لا مَقطوعَةٍ وَ لا مَمنوعَةٍ (٣٣) ]] }} | |||
نه انقطاع یافته و نه ممنوع. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٤ | وَ فُرُشٍ مَرفوعَةٍ (٣٤) ]] }} | |||
و همخوابگانی بالا بلند در بلنداها(ی تختها). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٥ | إِنّا أَنشَأنٰهُنَّ إِنشاءً (٣٥) ]] }} | |||
ما بیگمان آنان را پدید آوردهایم، پدید آوردنی (بس نیکو)! | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٦ | فَجَعَلنٰهُنَّ أَبكارًا (٣٦) ]] }} | |||
پس ایشان را دوشیزه و دستنخورده قرار دادیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٧ | عُرُبًا أَترابًا (٣٧) ]] }} | |||
دارای تمامی زیبایی آشکار زنان؛ همسالان با شوهران. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٨ | لِأَصحٰبِ اليَمينِ (٣٨) ]] }} | |||
برای راستان و برکت یافتگان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٣٩ | ثُلَّةٌ مِنَ الأَوَّلينَ (٣٩) ]] }} | |||
گروهی از پیشینیان، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٠ | وَ ثُلَّةٌ مِنَ الإخِرينَ (٤٠) ]] }} | |||
و گروهی از پسینیان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤١ | وَ أَصحٰبُ الشِّمالِ ما أَصحٰبُ الشِّمالِ (٤١) ]] }} | |||
و چپیهای نکوهیده. چیست چپیهای نکوهیده؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٢ | فى سَمومٍ وَ حَميمٍ (٤٢) ]] }} | |||
غرق شدگان در سمّی فراوان و (مایعی) جوشان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٣ | وَ ظِلٍّ مِن يَحمومٍ (٤٣) ]] }} | |||
و سایهای از دود تار پر خفقان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٤ | لا بارِدٍ وَ لا كَريمٍ (٤٤) ]] }} | |||
نه خنک و نه ملایم. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٥ | إِنَّهُم كانوا قَبلَ ذٰلِكَ مُترَفينَ (٤٥) ]] }} | |||
اینان بودند که همواره پیش از این نازپروردگانی در نعمتی فراوان غرق بودهاند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٦ | وَ كانوا يُصِرّونَ عَلَى الحِنثِ العَظيمِ (٤٦) ]] }} | |||
و بر گناه بزرگِ پیمانشکنی پافشاری میکردهاند؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٧ | وَ كانوا يَقولونَ أَئِذا مِتنا وَ كُنّا تُرابًا وَ عِظٰمًا أَءِنّا لَمَبعوثونَ (٤٧) ]] }} | |||
و میگفتهاند: «آیا هنگامی(که) مردیم و خاک و استخوان شدیم، آیا همین ما (باز هم) همانا برانگیختگانیم؟» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٨ | أَوَإباؤُنَا الأَوَّلونَ (٤٨) ]] }} | |||
«آیا و پدران نخستینمان (نیز)؟!» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٤٩ | قُل إِنَّ الأَوَّلينَ وَ الإخِرينَ (٤٩) ]] }} | |||
بگو: «بیگمان پیشینیان و پسینیان.» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٠ | لَمَجموعونَ إِلىٰ ميقٰتِ يَومٍ مَعلومٍ (٥٠) ]] }} | |||
«بهراستی همگان در موعد روزی معلوم گردآوری شوندگانند.» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥١ | ثُمَّ إِنَّكُم أَيُّهَا الضّالّونَ المُكَذِّبونَ (٥١) ]] }} | |||
سپس بیگمان شما ای گمراهان و تکذیبکنندگان! | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٢ | لَإكِلونَ مِن شَجَرٍ مِن زَقّومٍ (٥٢) ]] }} | |||
همواره از درختی (که) از زقّوم (است) خورندگانید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٣ | فَمالِـٔونَ مِنهَا البُطونَ (٥٣) ]] }} | |||
پس پر کنندگان شکمها(یتان) از آنید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٤ | فَشٰرِبونَ عَلَيهِ مِنَ الحَميمِ (٥٤) ]] }} | |||
پس روی آن از آن مایهی جوشان نوشندگانید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٥ | فَشٰرِبونَ شُربَ الهيمِ (٥٥) ]] }} | |||
پس نوشندگان، (چونان) نوشیدن اشتران تشنه. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٦ | هٰذا نُزُلُهُم يَومَ الدّينِ (٥٦) ]] }} | |||
این است مهمانسرای آنان به روز جزا. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٧ | نَحنُ خَلَقنٰكُم فَلَولا تُصَدِّقونَ (٥٧) ]] }} | |||
ما شما را آفریدیم، پس چرا تصدیقمان نمیکنید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٨ | أَفَرَءَيتُم ما تُمنونَ (٥٨) ]] }} | |||
آیا پس آنچه را (که به صورت نطفه) فرو میجهانید دیدهاید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٥٩ | ءَأَنتُم تَخلُقونَهُ أَم نَحنُ الخٰلِقونَ (٥٩) ]] }} | |||
آیا شما آن را میآفرینید یا ما آفرینندهایم؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٠ | نَحنُ قَدَّرنا بَينَكُمُ المَوتَ وَ ما نَحنُ بِمَسبوقينَ (٦٠) ]] }} | |||
ماییم که میان شما مرگ را مقدّر کردهایم و ما هرگز (درماندگان و) پیشیگرفتهشدگان نیستیم، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦١ | عَلىٰ أَن نُبَدِّلَ أَمثٰلَكُم وَ نُنشِئَكُم فى ما لا تَعلَمونَ (٦١) ]] }} | |||
بر اینکه (شما را به) همانندتان تبدیل کنیم و شما را در آنچه نمیدانید (دیگر بار) پدیدار سازیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٢ | وَ لَقَد عَلِمتُمُ النَّشأَةَ الأولىٰ فَلَولا تَذَكَّرونَ (٦٢) ]] }} | |||
و همواره بیچون پدیدار شدن نخستین خود را شناختید. پس چرا به شایستگی (آن را) یاد نمیکنید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٣ | أَفَرَءَيتُم ما تَحرُثونَ (٦٣) ]] }} | |||
آیا پس آنچه را کشت میکنید، دیدهاید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٤ | ءَأَنتُم تَزرَعونَهُ أَم نَحنُ الزّٰرِعونَ (٦٤) ]] }} | |||
آیا شما آن را (بییاری ما) زراعت میکنید، یا ماییم که زراعتکنندگانیم؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٥ | لَو نَشاءُ لَجَعَلنٰهُ حُطٰمًا فَظَلتُم تَفَكَّهونَ (٦٥) ]] }} | |||
اگر بخواهیم همواره خاشاکش میگردانیم، پس در افسوس (و تعجب) میافتید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٦ | إِنّا لَمُغرَمونَ (٦٦) ]] }} | |||
(و میگویید:) «همانا ما فریبخوردگان و زیاندیدگانیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٧ | بَل نَحنُ مَحرومونَ (٦٧) ]] }} | |||
«بلکه ما محرومانیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٨ | أَفَرَءَيتُمُ الماءَ الَّذى تَشرَبونَ (٦٨) ]] }} | |||
آیا پس آبی را که مینوشید دیدهاید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٦٩ | ءَأَنتُم أَنزَلتُموهُ مِنَ المُزنِ أَم نَحنُ المُنزِلونَ (٦٩) ]] }} | |||
آیا شما آن را از (دلِ) ابر آبستن به آب فرود آوردید، یا ما فرود آورندگانیم؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٠ | لَو نَشاءُ جَعَلنٰهُ أُجاجًا فَلَولا تَشكُرونَ (٧٠) ]] }} | |||
اگر بخواهیم آن را تلخ میگردانیم. پس چرا سپاس نمیدارید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧١ | أَفَرَءَيتُمُ النّارَ الَّتى تورونَ (٧١) ]] }} | |||
آیا پس آتشی را که بر میافروزید نگریستهاید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٢ | ءَأَنتُم أَنشَأتُم شَجَرَتَها أَم نَحنُ المُنشِـٔونَ (٧٢) ]] }} | |||
آیا شما درختش را - بیسابقه- پدیدار کردید یا ما پدید آورندگانیم؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٣ | نَحنُ جَعَلنٰها تَذكِرَةً وَ مَتٰعًا لِلمُقوينَ (٧٣) ]] }} | |||
ما آن را یادواره و برخورداری برای نیازمندان- که نیروی زندگیبخش میخواهند- قرار دادیم. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٤ | فَسَبِّح بِاسمِ رَبِّكَ العَظيمِ (٧٤) ]] }} | |||
پس به نام پروردگار بزرگت (او را) تنزیه کن. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٥ | فَلا أُقسِمُ بِمَوٰقِعِ النُّجومِ (٧٥) ]] }} | |||
پس به فرودگاههای ستارگان [:دلهای فروزان پیمبران] سوگند نمیخورم. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٦ | وَ إِنَّهُ لَقَسَمٌ لَو تَعلَمونَ عَظيمٌ (٧٦) ]] }} | |||
و اگر بدانید، آن سوگندی سخت بزرگ است! | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٧ | إِنَّهُ لَقُرإنٌ كَريمٌ (٧٧) ]] }} | |||
همانا این (پیام وحیانی) همواره قرآنی دارای برکاتی همگانی است. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٨ | فى كِتٰبٍ مَكنونٍ (٧٨) ]] }} | |||
در کتابی (از دستبرد) نگهبانی شده. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٧٩ | لا يَمَسُّهُ إِلَّا المُطَهَّرونَ (٧٩) ]] }} | |||
که جز پاکشدگان بدان دست نیازند. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٠ | تَنزيلٌ مِن رَبِّ العٰلَمينَ (٨٠) ]] }} | |||
فرود آمدهای است تدریجی از جانب پروردگار جهانیان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨١ | أَفَبِهٰذَا الحَديثِ أَنتُم مُدهِنونَ (٨١) ]] }} | |||
آیا شما این گفتار نوین را سبکگیرندگانید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٢ | وَ تَجعَلونَ رِزقَكُم أَنَّكُم تُكَذِّبونَ (٨٢) ]] }} | |||
و تنها نصیب خودتان را همواره در تکذیب (آن) قرار میدهید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٣ | فَلَولا إِذا بَلَغَتِ الحُلقومَ (٨٣) ]] }} | |||
پس چرا نه، آنگاه که (جانتان) به گلویتان رسد. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٤ | وَ أَنتُم حينَئِذٍ تَنظُرونَ (٨٤) ]] }} | |||
و حال آنکه- در این هنگام- خود نظارهگرید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٥ | وَ نَحنُ أَقرَبُ إِلَيهِ مِنكُم وَ لٰكِن لا تُبصِرونَ (٨٥) ]] }} | |||
و ما به آن (محتضر) از شما نزدیکتریم ولی نمیبینید. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٦ | فَلَولا إِن كُنتُم غَيرَ مَدينينَ (٨٦) ]] }} | |||
پس چرا، نه اگر شما جزا نایافتگانید (و حساب و کتابی در کار نیست)، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٧ | تَرجِعونَها إِن كُنتُم صٰدِقينَ (٨٧) ]] }} | |||
چرا اگر راست میگویید، روح را بر نمیگردانید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٨ | فَأَمّا إِن كانَ مِنَ المُقَرَّبينَ (٨٨) ]] }} | |||
پس اما اگر او از مقرّبان باشد، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٨٩ | فَرَوحٌ وَ رَيحانٌ وَ جَنَّتُ نَعيمٍ (٨٩) ]] }} | |||
در نتیجه (در) آسایش و راحت و بهشت پُرنعمت (است). | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٠ | وَ أَمّا إِن كانَ مِن أَصحٰبِ اليَمينِ (٩٠) ]] }} | |||
و اما اگر از راستان و برکتیافتگان باشد؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩١ | فَسَلٰمٌ لَكَ مِن أَصحٰبِ اليَمينِ (٩١) ]] }} | |||
پس، از این راستان برایت سلامی است. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٢ | وَ أَمّا إِن كانَ مِنَ المُكَذِّبينَ الضّالّينَ (٩٢) ]] }} | |||
و اما اگر از تکذیبکنندگان گمراه بوده است، | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٣ | فَنُزُلٌ مِن حَميمٍ (٩٣) ]] }} | |||
پس (برایشان) مهمانخانهای از مایعی جوشان است؛ | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٤ | وَ تَصلِيَةُ جَحيمٍ (٩٤) ]] }} | |||
و (نیز) افروختن آتشی فروزان. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٥ | إِنَّ هٰذا لَهُوَ حَقُّ اليَقينِ (٩٥) ]] }} | |||
بهراستی این همان حقالیقین است. | |||
{{قاب | متن = [[ الواقعة ٩٦ | فَسَبِّح بِاسمِ رَبِّكَ العَظيمِ (٩٦) ]] }} | |||
پس به نام پروردگار بزرگت تسبیح گوی. | |||
==محتوای سوره== | ==محتوای سوره== |
نسخهٔ کنونی تا ۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۱:۳۸
سوره الرحمن | سوره الواقعة | سوره الحديد | |||||||||||||||||||||||
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در حال بارگیری... |
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متن سوره
هنگامی که (قیامت) واقع شونده وقوع یابد؛
در وقوعش هرگز گزافی نیست.
پستکنندهای بالابرنده است.
چون زمین با تکان و اضطراب سختی لرزانده شود؛
و کوهها به گونهای دهشتآور خُرد گردند؛
پس غباری پراکنده شوند؛
و شما سه دسته گردید:
پس صاحبان برکت راستین؛ چیست صاحبان برکت؟
و صاحبان شوم و رذیلت؛ چیست صاحبان رذیلت؟
و سبقتگیرندگان (این سرا) همان سبقتگیرندگان (آن سرای)اند.
همان مقرّبان (به خدای منان).
در باغستانهای پرنعمت.
(اینان) گروهی بسیار از پیشینیان،
و اندکی از پسینیان(اند).
بر تختهایی بافته همچون زره.
روبهروی هم بر آنها تکیهزنندگانند.
نوجوانانی، جاودان بر گردشان میگردند.
با جامها و آبریزها و پیالهای از بادهی ناب روان.
(که) نه از آن سردرد گیرند و نه (آن را) پایان دهند.
و میوهای از هر چه همیپسندند.
و (از) گوشت پرندهای، هر چه اشتها کنند.
و حوریانی چشمدرشت.
همانند مروارید (ناسفتهی) پنهان (در صدف).
حال آنکه پاداشی است به آنچه میکردهاند.
در آنجا نه بیهودهای میشنوند و نه (سخنی) گناهآلود با پیآمدی بد.
(سخنی) بجز گفتهی سلامی سالم نیست.
و صاحبان برکت و راستین. و چیست این صاحبان برکت و راستین؟
در (زیر) درختان کُناری بیخار.
و درختهای موز که میوهاش خوشهخوشه روی هم انباشته است.
و سایهای پایدار (و کششدار).
و آبی از بلندایی ریزان.
و میوهای فراوان.
نه انقطاع یافته و نه ممنوع.
و همخوابگانی بالا بلند در بلنداها(ی تختها).
ما بیگمان آنان را پدید آوردهایم، پدید آوردنی (بس نیکو)!
پس ایشان را دوشیزه و دستنخورده قرار دادیم.
دارای تمامی زیبایی آشکار زنان؛ همسالان با شوهران.
برای راستان و برکت یافتگان.
گروهی از پیشینیان،
و گروهی از پسینیان.
و چپیهای نکوهیده. چیست چپیهای نکوهیده؟
غرق شدگان در سمّی فراوان و (مایعی) جوشان.
و سایهای از دود تار پر خفقان.
نه خنک و نه ملایم.
اینان بودند که همواره پیش از این نازپروردگانی در نعمتی فراوان غرق بودهاند.
و بر گناه بزرگِ پیمانشکنی پافشاری میکردهاند؟
و میگفتهاند: «آیا هنگامی(که) مردیم و خاک و استخوان شدیم، آیا همین ما (باز هم) همانا برانگیختگانیم؟»
«آیا و پدران نخستینمان (نیز)؟!»
بگو: «بیگمان پیشینیان و پسینیان.»
«بهراستی همگان در موعد روزی معلوم گردآوری شوندگانند.»
سپس بیگمان شما ای گمراهان و تکذیبکنندگان!
همواره از درختی (که) از زقّوم (است) خورندگانید.
پس پر کنندگان شکمها(یتان) از آنید.
پس روی آن از آن مایهی جوشان نوشندگانید.
پس نوشندگان، (چونان) نوشیدن اشتران تشنه.
این است مهمانسرای آنان به روز جزا.
ما شما را آفریدیم، پس چرا تصدیقمان نمیکنید؟
آیا پس آنچه را (که به صورت نطفه) فرو میجهانید دیدهاید؟
آیا شما آن را میآفرینید یا ما آفرینندهایم؟
ماییم که میان شما مرگ را مقدّر کردهایم و ما هرگز (درماندگان و) پیشیگرفتهشدگان نیستیم،
بر اینکه (شما را به) همانندتان تبدیل کنیم و شما را در آنچه نمیدانید (دیگر بار) پدیدار سازیم.
و همواره بیچون پدیدار شدن نخستین خود را شناختید. پس چرا به شایستگی (آن را) یاد نمیکنید؟
آیا پس آنچه را کشت میکنید، دیدهاید؟
آیا شما آن را (بییاری ما) زراعت میکنید، یا ماییم که زراعتکنندگانیم؟
اگر بخواهیم همواره خاشاکش میگردانیم، پس در افسوس (و تعجب) میافتید.
(و میگویید:) «همانا ما فریبخوردگان و زیاندیدگانیم.»
«بلکه ما محرومانیم.»
آیا پس آبی را که مینوشید دیدهاید؟
آیا شما آن را از (دلِ) ابر آبستن به آب فرود آوردید، یا ما فرود آورندگانیم؟
اگر بخواهیم آن را تلخ میگردانیم. پس چرا سپاس نمیدارید؟
آیا پس آتشی را که بر میافروزید نگریستهاید؟
آیا شما درختش را - بیسابقه- پدیدار کردید یا ما پدید آورندگانیم؟
ما آن را یادواره و برخورداری برای نیازمندان- که نیروی زندگیبخش میخواهند- قرار دادیم.
پس به نام پروردگار بزرگت (او را) تنزیه کن.
پس به فرودگاههای ستارگان [:دلهای فروزان پیمبران] سوگند نمیخورم.
و اگر بدانید، آن سوگندی سخت بزرگ است!
همانا این (پیام وحیانی) همواره قرآنی دارای برکاتی همگانی است.
در کتابی (از دستبرد) نگهبانی شده.
که جز پاکشدگان بدان دست نیازند.
فرود آمدهای است تدریجی از جانب پروردگار جهانیان.
آیا شما این گفتار نوین را سبکگیرندگانید؟
و تنها نصیب خودتان را همواره در تکذیب (آن) قرار میدهید؟
پس چرا نه، آنگاه که (جانتان) به گلویتان رسد.
و حال آنکه- در این هنگام- خود نظارهگرید.
و ما به آن (محتضر) از شما نزدیکتریم ولی نمیبینید.
پس چرا، نه اگر شما جزا نایافتگانید (و حساب و کتابی در کار نیست)،
چرا اگر راست میگویید، روح را بر نمیگردانید؟
پس اما اگر او از مقرّبان باشد،
در نتیجه (در) آسایش و راحت و بهشت پُرنعمت (است).
و اما اگر از راستان و برکتیافتگان باشد؛
پس، از این راستان برایت سلامی است.
و اما اگر از تکذیبکنندگان گمراه بوده است،
پس (برایشان) مهمانخانهای از مایعی جوشان است؛
و (نیز) افروختن آتشی فروزان.
بهراستی این همان حقالیقین است.
پس به نام پروردگار بزرگت تسبیح گوی.